लॉकडाउन का अट्ठारहवाँ दिन और दुनिया को सुचिता, सहयोग और संयम सिखाता भारतवर्ष

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डॉ भुवनेश्वर गर्ग

कोरोना महामारी के दौरान अमेरिका ही नहीं पूरी दुनिया के लिए अपनी अथिति देवो भव: की नीति, सुचिता और मिलबांट कर ग्रहण करने की नीतियों के चलते आज भारत ‘देवदूत’ की महती उपाधि में हैं और यह उपाधि उसके प्रधानमंत्री को, उसके लोगों ने नहीं, वरन विश्व के अन्य देशों ने दी है।

और इसीलिए आज सारे विश्व में मची त्राहि के बीच जहां भारत में रह रहे विदेशी, खास तौर पर अमेरिकी तक, वापिस अपने देश अमेरिका नहीं जाना चाहते, हर तरफ से सब लोग भारत आना चाहते हैं, पाकिस्तान मे भी भारी अव्यवस्था फैली हुई है। बीमारू बम बने जमाती पूरी दुनिया से भारत में घुसे चले आ रहे हैं और भारत इस संकट में भी उन्हें भोजन, इलाज, शेल्टर और शरण दे रहा है। क्या यह सब, इस मानसिकता के लोगों के साथ किसी दूसरे देश में सम्भव होता? सोच के देखिये कि चीन, अमेरिका, रूस, आस्ट्रेलिया और यहाँ तक कि पाकिस्तान तक अपने यहाँ घुसने का प्रयास कर रहे इन करोनाई बमो के साथ केसा व्यव्हार करता जबकि वो खुद अपने नागरिकों का ही भला नहीं कर पा रहे हैं ?

निःसंदेह प्रधानमंत्री मोदी की अगुआई में, कोरोना वायरस से लड़ाई में भारत एक बार फिर देवदूत के रूप में दुनिया के सामने आया है जो अपनी १३५ करोड़ जनसंख्या की जरूरतों को भी समझता है और वसुदेव कुटुंबकम के मायने हर बार दुनिया को बताता समझाता रहा है और आज जब पूरी मानवजाति एक भयावह दौर से गुजर रही है तो इसने अपना दिल ही नहीं बल्कि मदद के, दवाइयों के भंडार भी खोल दिए हैं । अमेरिका जैसी महाशक्ति हो या यूरोपीय देश या सार्क के सहयोगी देश, भारत ने हर देश को अपने यहां उपलब्ध दवाई भेजी है, मकसद सिर्फ इतना ही है कि इस भयावह बवंडर से मानव समुदाय को बचाया जाए।

जबकि ताकत, सम्पन्नता के गलत पैमानों खड़े चीन ने इतना बड़ा संकट दुनिया पर थोपने के बावजूद, अपनी नीचता और कुत्सित व्यापारिक कुचेष्टाओं को जगजाहिर कर, विलेन का दर्जा पा लिया है, यहाँ तक कि उसने जिस भी देश को मेडिकल सप्लाई बेचीं, सभी में भारी खामियां पाई गईं और उन्हें लौटाने की भी नौबत आ गई।

चीन जहां बाधाएं पैदा करने में व्यस्त रहा, भारत दूरगामी दृष्टिकोण के साथ बड़े भाई की तरह पूरी दुनिया को एकजुट करने में लगा हुआ है। पीएम नरेंद्र मोदी ने पहले दक्षेस देशों की वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए बैठक बुलाई, तो इसके बाद जी20 देशों को एकजुट करने में जुट गए और उनकी पहल पर बैठक भी हुई। कभी अमेरिका के राष्ट्रपति भारत पर आंखें तरेरते थे लेकिन आज हालत यह है कि भारतीय पीएम दुनिया के एकमात्र वर्ल्ड लीडर हैं जिन्हें राष्ट्रपति का कार्यालय ट्विटर पर फॉलो करता है।

सारे विश्व को अपने अदृश्य रूप से नेस्तंबूद कर देने वाला, ये कोरोना भी न, पता नही और क्या क्या खत्म करेगा, इस महामारी की वजह से देशो की अकड़ टूट गई, किसी की राजनीति, किसी का वंश, किन्ही खास लोगो की नियत, तो किसी की कट्टरता सामने आई, तो लाखों साल पुरानी सनातनी सभ्यता को तोड़ने की साजिश भी जगजाहिर हो गई।

रही सही कसर, जमातियों ने पूरी कर दी, आखिर प्राचीन काल में असुर और करते भी क्या थे ?
ऊपर से सरकार ने भी महाभारत और रामायण का फिर से प्रसारण करवा के बचेखुचे लोंगो की कुत्सित राजनैतिक सोच, वोटबेंकिय तुष्टिकरण और कदाचरण को भी सामने ला खड़ा किया है ।
लूटने वाले नामदार, जो सदैव से ये बताते आए कि राम कल्पनिक हैं, भारत में जातिगत भेद भाव बहुत था, लेकिन छूआछूत वर्णव्यवस्था का इनका झूठ, रामायण ने एक बार फिर सबके सामने ला पटका है, महर्षि वाल्मीकि कौन थे ? निषाद राज कौन थे, शबरी कौन थी ? और यहाँ तक कि रामायण ने यह भी सुस्थापित कर दिया कि कौन कब इस दुनिया में आया, किस कट्टर अवधारणा की कबीलाई हकीकत कितनी पुरानी है।

महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखा गया सत्य इतिहास है, जिसके समस्त वैज्ञानिक प्रमाण आज उपलब्ध हैं । और सबसे बड़ी बात, जब रामायण काल में ना तो संचार तंत्र था और ना ही गूगल मेप, फिर अयोध्या से प्रयागराज होते हुए चित्रकूट और फिर वहां से पंचवटी नासिक होते हुए, हम्पी, लेपक्षी और श्रीलंका बिलकुल एक सीधी लाइन में प्रभुश्रीराम सीता और लक्ष्मण कैसे पहुंचे ? सोचिये उस समय ये कैसे पता किया गया होगा कि सबसे छोटा और सीधा मार्ग कौन सा है ?

हनुमान चालीसा सैकड़ों साल पहले गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रची गई थी और उसी समय उन्होंने इसमें यह बता दिया था कि सूर्य और पृथ्वी के बीच लगभग कितनी दूरी है।
(जुग (युग) सहस्त्र जोजन (योजन) पर भानु। लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।) जबकि नासा और विज्ञान अब बता रहा है कि सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी 149,600,000 किलो मीटर है।

आज रामायण की वास्तविकताएं एक बार फिर से भारतीय जनमानस को उसकी जड़ों की और लौटा लाई है, हजारो हजार साल से भारत और इसका ज्ञान दुनिया को राह दिखाता रहा और सूर्य नमस्कार, गुरुकुल परम्पराओं की महत्ता एक बार फिर से सबके सामने है ।

रामायण ने जहाँ सुचिता, मर्यादा, गुरुकुल परम्पराएं दुनिया को दीं, वहीँ महाभारत ने गीतासार दिया, कर्म की प्रधानता और राष्ट्रप्रेम को सर्वोच्च पुण्यकर्म बताया।
अब इस सबमे आपकी ज़िम्मेदारी क्या है ? आपके हिस्से की ज़िम्मेदारी ये है कि अब जब टीवी पर रामायण देखें तो ये ना सोचें कि कोई सीरियल या कथा चल रही है बल्कि निरंतर ये ध्यान रखें कि ये हमारा इतिहास चल रहा है । इस दृष्टि से रामायण देखें और समझें ।

विशेष आवश्यक ये है कि यही दृष्टि अपने बच्चों को भी दें, बच्चों को बताएं कि ये हमारा इतिहास है, जिसको कांग्रेसियों, वामपंथियों ने बार बार मिटाने की कोशिश की है । उन्हें यह भी बतायें कि आज जब उन्होंने लॉकडाउन का महत्त्व, आनंद और नियम देख समझ लिया है तो पशु पक्षियों का जीवन आत्मसार करें। वो तो लॉकडाउन का पालन अनंत काल से कर रहे है और आज भी उनका आचरण जस का तस है।

उन्हें कब किसी ने प्रकृति के, सूर्य चन्द्रमा गति के नियम तोड़ते, आलस करते देखा ? लूट खसोट संग्रह करते देखा? ये तो सूर्य के साथ दिनचर्या तब भी शुरू करते थे, आज भी कर रहे हें ।
सुबह उठ कर वर्जिश करना, घूमना, दैनिक नित्यक्रिया से फ़ारिग होकर भोजन तलाशना, उसके लिए संघर्ष भी करना और फिर जो मिले उससे अपना पेट भरकर आराम करना ।
लेकिन इँसां क्या कर सकता था और क्या करने लगा ? सोचिए और कोशिश कीजिये कि आपकी आने वाली नस्ल भी इसे देखे, समझे, स्वस्थ सुखी संयमी रहने, इसका अनुसरण करे ।
इस आपदा में तो कम से कम बेज़ुबानो से तो ज़िंदगी के नियम सीखे ही जा सकते हैं, तो सीखिए और सबको सीखने के लिए प्रेरित भी कीजिए ।

और जब आज जबरिया तालाबंदी से मनुष्य ने इतना बड़ा सबक सीख लिया है और उसके घरों में रहने मात्र से अगर प्रदूषण इतना कम हो गया है, इतनी स्वच्छ हवा, इतना शुद्ध पानी, इतनी शांति स्थापित हो गई है तो क्या यह हमसब हमेशा के लिए नहीं कर सकते ? करोना काल ख़तम होने के बाद फिर से वही दुर्दशा ना हो इसके लिए हम सब कम से कम हफ्ते के दो दिन तो सेल्फ लॉकडाउन कर ही सकते हैं और प्रकृति को बर्बाद करने वाले साधनों को ताले में डाल सकते हैं ?

इन दिनों में कोई भी प्रदूषण फैलाने वाला वाहन सड़कों पर ना निकले, साइकिलें, इलेक्ट्रिक वाहन से काम किये जा सकते हैं। सब मिलकर त्योहार और सब चीज़ें ध्यान में रखकर प्लानिंग कर सकते हैं । उससे सब इंडस्ट्रीज़ स्कूल काॅलेज पहले से ही अपने काम प्लान कर सकेंगे । अति आवश्यक सेवाएँ भी प्लान कर सकते हैं । टूरिस्ट जगहों पर भी कोई गाड़ी नहीं चलेगी, हाँ पैदल आप कहीं भी घूम सकेंगे, सच्चाई और विश्वास से किया तो ये संभव हो सकता हैं ।

हम भारतीय इस अध्भुत दूरगामी पुण्यकर्म का आरंभ कर सकते हैं और विश्व के सामने एक अच्छा उदाहरण रख सकते हैं ? आखिर क्यों नहीं, दुनिया को रास्ता तो हमेशा से भारत ही दिखाता आया है, तो चलिए करते हैं, एक नई शुरुआत।

तो बोलिये जोर से, हम होंगे कामयाब, भारत माता की जय। जय हिन्द ।


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