मीडिया के प्रति अविश्वास बढ़ाता ‘फ़ेक न्यूज़’ का बढ़ता चलन

Share:

मीडिया देश व समाज के सभी वर्गों व अंगों को एक दूसरे से बाख़बर करने का दायित्व निभाता आ रहा है।  जन मानस मीडिया द्वारा प्रकाशित /प्रसारित ख़बरों पर न केवल विश्वास करता है बल्कि इसके माध्यम से सामने आने वाले विषयों व मुद्दों को बहस,चर्चा व जानकारी का सशक्त ज़रीया भी समझता है। परन्तु दुर्भाग्यवश हमारे देश में लालची,सत्ताभोगी तथा व्यवसायिक सोच रखने वाले मीडिया से ही संबद्ध एक बड़े वर्ग ने मीडिया के सिद्धांतों से समझौता कर इसे कलंकित करने का गोया बीड़ा उठा रखा है। और इसी ग़ैर ज़िम्मेदार व अनैतिक रास्ते पर चलते हुए मीडिया ने अपनी साख पर ऐसा बट्टा लगाया है कि पाठकों व दर्शकों के लिए अब इस बात का भेद कर पाना मुश्किल हो गया है कि कौन सी ख़बर सच्ची है कौन सी झूठी ? कौन सी ख़बर ‘पेड न्यूज़ ‘ है और कौन सी पत्रकारिता के मापदंडों को पूरा करने वाली ? कौन सी ‘फ़ेक न्यूज़’ है और कौन सी सच्ची ख़बर ? मीडिया द्वारा अपनी ज़िम्मेदारी से मुंह मोड़ने का सिलसिला वैसे तो गत 6-7 वर्षों से जारी है। परन्तु विगत कुछ महीनों में यानी कोरोना काल के समय से मीडिया ने फ़ेक न्यूज़ व पूर्वाग्रह आधारित समाचारों तथा कपोल कल्पनाओं पर आधारित ‘रेत पर क़िले’ बनाने का जो सिलसिला शुरू किया उसने मीडिया व उसकी विश्वसनीयता से करोड़ों देशवासियों का मोह भंग कर दिया। भारतीय मीडिया ने कोरोना काल में सत्ता संरक्षण में कभी तब्लीग़ी जमाअत को ऐसे बदनाम करने की कोशिश की गोया भारत में कोरोना के वाहक व विस्तारक की मुख्य भूमिका जमाअतियों की ही रही हो। मुंबई में लॉक डाउन के दौरान अपने घर गांव की वापसी के लिए रेलवे स्टेशन के बाहर जब हज़ारों कामगार इकठ्ठा हुए तो हमारे देश का’ दूरदर्शी’ व  ‘क़ाबिल मीडिया ‘ उन असहाय लोगों की भीड़ इकट्ठी होने का कारण,उनकी चिंताओं या मजबूरियों पर अपना ध्यान केंद्रित करने के बजाए यह देख रहा था कि स्टेशन के बाहर स्थित मस्जिद का इस इकट्ठी भीड़ से क्या संबंध हो सकता है ? उसके बाद सिलसिला शुरू हुआ बदनसीब फ़िल्म कलाकार सुशांत सिंह राजपूत व रिया चक्रवर्ती के ‘मीडिया ट्रायल ‘ का। इस विषय ने लगभग तीन महीने तक न चाहते हुए भी जनता को मीडिया का वह ‘नागिन डांस’ दिखाया जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। बदतमीज़,बेहूदे व असंस्कारी एंकर्स ने सत्ता का रहम-ो-करम हासिल करने व धन व लाभ अर्जित करने के लिए स्वयं को सत्ता का ऐसा भोंपू बना डाला कि कल तक अच्छी नज़रों से देखे जाने वाले अनेक प्रसिद्ध एंकर व समाचार वाचक सत्ता के दलाल कहे जाने लगे।

गत दिनों फ़ेक न्यूज़ का एक और करिश्मा नज़रों के सामने आया। गत 19 नवंबर को देश की विश्वसनीय समाचार एजेंसी पी टी आई के हवाले से यह ख़बर प्रसारित की गयी कि भारतीय सेना ने पाक अधिकृत कश्मीर के इलाक़े में घुस कर आतंकियों के कई लाँचिंग पैड ध्वस्त कर डाले। समाचार पत्रों व टी वी चैनल्स को जैसे ही यह आधी अधूरी व अपुष्ट ख़बर हाथ लगी ,भारतीय मीडिया अपने ‘सबसे तेज़’ के दावे को सच करने के लिए इसी ख़बर को लेकर उड़ने लगा। तरह तरह के आकर्षक शीर्षक गढ़े जाने लगे। किसी ने लिखा ‘घुस कर मारा’ तो किसी ने लिखा ‘चुन चुनकर मारा’,किसी ने लिखा ‘पाक पर हमला’ तो कोई बता रहा था ‘ग़ुलाम कश्मीर पर भारतीय एयर स्ट्राइक’ आदि आदि। अभी यह अपुष्ट व ग़ैर ज़िम्मेदाराना ख़बर प्रसारित हो ही रही थी कि इस ख़बर के चाँद घंटों के भीतर ही भारतीय सेना की ओर से इसी ख़बर से संबंधित एक स्पष्टीकरण जारी किया गया। भारतीय सेना की ओर से जारी खंडन एक दूसरी न्यूज़ एजेंसी ए एन आई ने जारी करते हुए भारतीय सेना के सैन्य अभियान के महानिदेशक लेफ़्टिनेंट जनरल परमजीत सिंह के हवाले से यह स्पष्ट किया कि नियंत्रण रेखा के उस पार यानी पाक अधिकृत कश्मीर में भारतीय सेना द्वारा किसी तरह की कार्रवाई किये जाने की ख़बर पूरी तरह फ़र्ज़ी है। सेना ने गुरुवार (19 नवंबर) को पाक अधिकृत कश्मीर क्षेत्र में कोई भी कार्रवाई नहीं की। परन्तु इस खंडन के जारी होने से पहले ही अनेक टी वी चैनल इस फ़र्ज़ी ख़बर पर तड़का लगाना शुरू कर चुके थे। यहाँ तक कि देश के सैकड़ों समाचार पत्रों ने भी पाक अधिकृत कश्मीर में एयर स्ट्राइक की झूठी ख़बर अपने पहले पन्ने पर बैनर न्यूज़ के रूप में प्रकाशित की। यह घटना इस बात का भी प्रमाण है कि मीडिया को अपने ‘सबसे तेज़’ के कथन से हटकर सबसे विश्वसनीय के कथन पर अमल करना चाहिए।
बहरहाल, इसके पहले भी स्वयं को देश का नंबर वन बताने वाले टी वी चैनल्स अपने ऐसे ही आचरण के चलते कई बार अदालतों की घुड़कियाँ सुन चुके हैं। कई बार इन्हें माफ़ी मांगनी पड़ी है। परन्तु अपनी ज़िम्मेदारियों के विपरीत अपने निर्धारित एजेंडे पर चलने की इनकी ज़िद व सनक के चलते गोया इन्होंने मीडिया के सिद्धांतों की बलि चढ़ाने की ‘सुपारी’ ले रखी है। टी आर पी बढ़ाने का फ़र्ज़ी खेल खेलने वाले यह ‘फ़र्ज़ी एंकर व ‘पत्थरकार’ कभी स्टूडियो में मौलवी-पंडित को भिड़ा कर ख़ुद तो मज़े लेते हैं और देश में तनाव पैदा करते हैं।कभी स्टूडियो में भारत व पाक में बैठा मीडिया का ही कोई मोहरा रुपी अतिथि एक दूसरे को राकेट व मिसाइल के कट आउट दिखा कर दोनों देशों का माहौल ख़राब करता है। जिस तरह एंकर व पत्रकार फ़ेक व फ़र्ज़ी होते हैं ठीक उसी तरह इनके अनेक अतिथि भी फ़र्ज़ी व फ़ेक होते हैं। इनकी जल्दबाज़ी व एजेंडा पत्रकारिता का  ही नतीजा है कि फ़ेक न्यूज़ का चलन दिन प्रति दिन बढ़ता ही जा रहा है। और इसमें कोई संदेह नहीं कि ‘फ़ेक न्यूज़’ के इस बढ़ते  चलन से आम लोगों का मीडिया के प्रति अविश्वास भी और अधिक बढ़ेगा। 


Share:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *