मध्य प्रदेश में दलबदल बेधड़क

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देवदत्त दुबे ।
प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस और भाजपा की सरकार आती जाती रही है । दोनों ही दलों का रुतबा इतना था की पार्टी नेता सब कुछ सह कर भी पार्टी में ही रहना पसंद करते थे क्योंकि ना तो विरोधी दल में और ना ही तीसरे कोईं दलबदल करने के बाद महत्त्व मिलता था । यहां तक कि राजनीतिक दल भी अपने विधायकों को कठपुतली बनाकर रखते थे । किसी की मजाल नहीं होती थी कि दल बदल कर जाए । प्रदेश की राजनीति में विद्याचरण शुक्ल ही एकमात्र अपवाद वाले नेता रहे जो दल बदल कर कर सफल होते रहे । वैसे तो राष्ट्रीय राजनीति में रामविलास पासवान के दलबदल का उदाहरण दिया जाता रहा है । लेकिन अब तो प्रदेश में यह सामान्य सी बात होती जा रही है । कौन कब दल बदल लेगा कहा नहीं जा सकता है । बल्कि जो जितनी सिद्धांतों और आदर्शों की बातें करता है उसकी उतनी ही ज्यादा दलबदल की संभावनाएं बन जाती हैं । भाजपा ने दलबदल करके सरकार बनाई तब से ही कांग्रेस भाजपा पर दलबदल का और विधायकों पर बिकने का आरोप लगाती रही है । लेकिन खुद कांग्रेस ने 28 सीटों में से लगभग 8 सीटों पर दलबदल करने वाले प्रत्याशियों को मैदान में उतारकर दलबदल के आरोप की धार को बोथरा कर दिया है ।
प्रदेश में अब दो पार्टियों की राजनीति अब अंतिम सांसे गिन रही है । भाजपा और कांग्रेस में जिस तरह से बेधड़क दलबदल को तवज्जो मिल रही है, उससे दली य निष्ठा ए तो खंडित हो ही रही है दलों की अनुशासन के नाम पर चलने वाली तानाशाही भी कम होगी और देर सबेर तीसरे दल की संभावनाएं भी उज्जवल हो रही हैं ।
बहरहाल प्रदेश में उपचुनाव के बीच दलबदल की और भी सूचनाएं आ सकती हैं । यहां तक कहा जा रहा है कि प्रदेश के कुछ विधायक प्रदेश से बाहर जा सकते हैं और वे 10 नवंबर के परिणाम के बाद प्रदेश में लौटकर देखेंगे कि किस तरह पलड़ा भारी है । किसकी सरकार बन रही है । उसी तरह अपना रुख कर लेंगे । यही कारण है कि सत्ताधारी दल भाजपा कांग्रेस जैसी गलती नहीं करना चाहती कि सरकार में रहकर सरकार गिर जाए वह पहले से ही इतने विधायकों की व्यवस्था कर ले रही है जिसमें की सरकार को कोई खतरा ना हो । इससे जहां एक और वह कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ रही है, वही आम जनता का ध्रुवीकरण भी स्थाई सरकार देने के बहाने भाजपा की ओर कर रही है । लेकिन प्रदेश में दलबदल कि जो बेधड़क शुरुआत हो चुकी है उससे अब कोई भी दल सुरक्षित नहीं है ।
बहरहाल रविवार को दमोह के कांग्रेसी विधायक राहुल लोधी ने कांगरे से त्यागपत्र देकर भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर एक बार फिर प्रदेश में दलबदल पर बहस शुरू कर दि है । क्योंकि इस समय प्रदेश में 28 सीटों पर विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं और कुछ दिन पहले ही राहुल लोधी बड़ा मलहरा विधानसभा क्षेत्र में चुनाव प्रचार करते हुए पहले दल बदल कर चुके विधायकों पर बिकने का आरोप लगा रहे थे और उन्होंने जब त्यागपत्र दिया तब जैसे नेताओं से अब विश्वास ही उठने लगा है और अब यह माना जा रहा है कि प्रदेश में दलबदल पर प्रतिष्ठा आड़े नहीं आती है । राजनीतिक दलों ने भी कई बार टिकट वितरण में मंत्रिमंडल गठन में कितने भेदभाव किए की आम जनता भी कहने लगती है पार्टी यह गलत कर रही है ।वरिष्ठता, योग्यता, दक्षता, क्षमता, से ज्यादा राजनीतिक दल अपने-पराए के आधार पर निर्णय करते हैं । यही कारण है कि अब विधायक भी बेधड़क दलबदल करने लगे हैं। पता नहीं अगली बार टिकट मिला या नहीं अगली बार चुनाव जीते ही या नहीं जो कुछ है जैसे भी इसी बार में फायदा उठा लो ।


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