कच्चे तेल की कीमतों में सतत कमी भारतीय इकोनॉमी के लिए संजीवनी

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ललित मोहन बंसल

कोविड-19 के कारण आधी दुनिया में लॉकडाउन से कच्चे तेल की खपत में निरंतर कमी आ रही है। माँग और आपूर्ति में असंतुलन होने से तेल उत्पादक देशों को भारी आर्थिक क्षति हो रही है, वहीं तेल आयातक देशों को कच्चे तेल की क़ीमतों में सतत कमी से लाभ हो रहा है। यह भारतीय इकोनॉमी के लिए संजीवनी सिद्ध हो रही है। इससे मुद्रा स्फीति में कमी आ रही है, वहीं करंट अकाउंट में वृद्धि से भारत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार घाटे में कमी से इकोनॉमी में सुधार की उम्मीदें लगाई जा रही हैं। हाँ, इससे राज्य सरकारों को तेल की बिक्री पर जीएसटी नहीं मिल पाने से अवश्य करोड़ों रुपए की क्षति हो रही है, जिसकी भरपाई के लिए आवाज़ें उठनी शुरू हो गई हैं। चीन और अमेरिका के बाद भारत तीसरा बड़ा तेल उपभोक्ता देश है, जो कच्चे तेल की ज़रूरत खाड़ी सहित अन्यान्य देशों से पूरी करता है। डब्ल्यूएचओ सहित महामारी रोग विशेषज्ञों का मत है कि इस नए संक्रामक रोग पर जल्दी क़ाबू पाना सहज नहीं है।भारत ने अपनी ज़रूरत के अस्सी प्रतिशत तेल के लिए पिछले वर्ष 95.69 अरब डॉलर दिए थे, जबकि 2017-18 में 87.37 अरब डॉलर व्यय किए थे। लेकिन तीन सप्ताह के लॉकडाउन में तेल की आपूर्ति में कमी पिछले दस वर्षों में न्यूनतम सिद्ध हुई। ‘ब्लूमबर्ग न्यूज़’ के अनुसार भारत में इस 21 दिनों के लॉकडाउन के दौरान 31 लाख बैरल कच्चे तेल की खपत कम हुई, जिससे भारत को तेल की क़ीमतों में असाधारण कमी से भारी लाभ मिला। अधिकृत आँकड़ों के अनुसार लॉकडाउन के कारण मार्च में पेट्रोल आपूर्ति में 17.06%, डीज़ल में 26% तथा विमान ईंधन में 31॰6% की कमी आई। आर्थिक जानकारों का मत है कि यह भारत के कुल देय राशि में 21 प्रतिशत कमी दर्शाता है, जो आर्थिक विकास के मद्देनज़र महत्वपूर्ण है। इसी तरह कोविड-19 के कारण चीन, दक्षिण कोरिया, जापान, टर्की सहित अनेक देशों में कच्चे तेल की माँग में कमी के कारण कच्चे तेल की क़ीमतें पिछले अठारह वर्षों में अपने निम्नतम स्तर पर पहुँच गई। इस सारी क़वायद के बावजूद गुरुवार को तेल की क़ीमतों में गिरावट जारी रही। वेस्ट टेक्सास इंटरनेशनल की क़ीमतें 9.19 प्रतिशत कम अर्थात 22.76 डालर प्रति बैरल रहीं, जबकि ब्रेंट क्रूड में 4.14 प्रतिशत की गिरावट से 31.48 डॉलर प्रति बैरल रहा।

ग्रुप-बीस देशों की तेल मंत्री स्तरीय वार्ता : तेल उत्पादक देशों के बेताज बादशाह सऊदी अरब के नेतृत्व में पिछले सप्ताह ओपेक देशों का नेतृत्व कर रहे रूस के बीच जब कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती पर कोई फ़ैसला नहीं हुआ तो गुरुवार को ओपेक प्लस और सऊदी अरब के बीच एक करोड़ बैरल प्रतिदिन अर्थात कुल उत्पादन में दस प्रतिशत कटौती पर सहमति हो गई। लेकिन मैक्सिको चार लाख बैरल की जगह एक लाख बैरल प्रतिदिन से अधिक कटौती करने को तैयार नहीं हुआ। शुक्रवार को ग्रुप बीस देशों के बीच इस मुद्दे पर अंतिम फ़ैसले के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंस का आयोजन हुआ। कच्चे तेल के उत्पादन में कमी का एकमात्र उद्देश्य कच्चे तेल की क़ीमतों में स्थिरता लाना और उन छोटे तेल उत्पादक देशों को आर्थिक बदहाली से बचाना था, जो कच्चे तेल उत्पादन में अपनी लागत मूल्य भी नहीं निकाल पा रहे थे।इस अवसर पर भारतीय तेल और गैस मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि तेल की क़ीमतों में स्थिरता आनी चाहिए। साथ ही ओपेक देशों से उन्होंने यह भी आग्रह किया कि तेल की क़ीमतें ऐसे ग्राह्य स्तर पर रखी जानी चाहिए ताकि उपभोक्ता की माँग में सुधार हो। उन्होंने कहा कि भारत ने सदैव ग्राह्य क़ीमतों के आधार पर वैश्विक राय की सराहना की है। भारत अस्सी प्रतिशत तेल का आयात करता है। तेल के उत्पादन में कटौती होती है, तो इसका परोक्ष रूप से भारत के ऊर्जा संरक्षण उपायों पर असर पड़ता है। भारत के पास डेढ़ करोड़ बैरल अतिरिक्त रिज़र्व की क्षमता है। इसके लिए तीन बड़ी-बड़ी रिफ़ाइनरी हैं। सऊदी अरब के तेल मंत्री अब्दुल अज़ीज़ बिन सलमान की अध्यक्षता में विडियो कॉन्फ्रेस के दौरान श्री प्रधान ने तेल मार्केट में स्थिरता पर जोर दिया ताकि माँग और आपूर्ति में समन्वय बना रहे और दोनों के लिए ही क़ीमतें ग्राह्य हों। बता दें, तेल जानकारों का मत है कि तेल की क़ीमतों में एक डॉलर कम होता है तो भारत को डॉलर के मूल्य में कमी अथवा बढ़त होने के कारण क़रीब डेढ़ अरब डॉलर की बचत होती है। यही कोरोना वायरस गंभीर रुख लेता है तो निश्चित तौर पर तेल की क़ीमतें स्थिर रख पाना मुश्किल चुनौती होगी। विदित हो कि सऊदी अरब और रूस के बीच उत्पादन में एक करोड़ बैरल प्रतिदिन की कटौती पर सहमति के साथ-साथ इस बात पर भी एक राय थी कि ग़ैर ओपेक देश कम से कम पचास लाख बैरल तेल के उत्पादन में कमी करें, ताकि तेल की क़ीमतें माँग और आपूर्ति के सिद्धांत पर तय हो सकें। इस उद्देश्य में मैक्सिको की रजामंदी नहीं थी। लेकिन शुक्रवार सुबह ग्रुप-बीस देशों के तेल मंत्रियों की बैठक से पूर्व रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन और सऊदी अरब के प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान की राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से बातचीत हुई। ट्रम्प ने व्हाइट हाउस में मीडिया के सम्मुख स्वीकार भी किया कि उनकी इन दोनों नेताओं से बातचीत के बाद मैक्सिको और कनाडा, दोनों उत्पादन में कमी लाने के लिए राजी हो गए हैं। लेकिन कहा जा रहा है कि शेल तेल ड्रिल करने वाले तेल के उत्पादन में कटौती के प्रस्ताव पर तैयार नहीं होंगे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)


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