कोविड -19: मोटे लोगों पर भारी क्यों पड़ रहा है?

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ललित मोहन बंसल 

लॉस एंजेल्स, 13 अप्रैल (हि स)। मोटापा एक असाध्य रोग है। मोटे लोगों को उच्च रक्तचाप, मधुमेह, श्वास एवं गुर्दा संबंधी रोग की शिकायतें पहले से घेरें होती हैं। ऐसे मोटे लोगों की कोविड-19 से अपेक्षाकृत ज़्यादा मौतें हो रही हैं। आँकड़े बताते हैं कि जहाँ-जहाँ कोविड 19 ने पंख फैलाए हैं, वहाँ भारी-भरकम बड़े-बुज़ुर्ग कोरोना के अधिक शिकार हुए हैं। न्यू यॉर्क, न्यू ओर्लियंस ( लुजियाना), इंग्लैंड, दक्षिण कोरिया और यहाँ तक कि चीन में भी मोटे लोगों पर कोरोना हावी रहा है। ये भारी भरकम लोग मूलत: अश्वेत अफ़्रीकी-अमेरिकी और लेटिनो -अमेरिकी माँसाहारी रहे हैं, जो पहले से ही अनेकानेक बीमारियों से ग्रस्त रहे हैं। भारतीय प्रायः शाकाहारी होते हैं।  उन पर कोरोना का असर कम रहा है। अमेरिका के  दक्षिण में लुजियाना में न्यू यॉर्क से दो गुणा और सिएटल (वाशिंगटन) से चार गुणा मौतें हो रही है।  

न्यू आर्लियंस (लुजियाना) में 14867 मामलों में 512 मौतें हो चुकी हैं। अमेरिका में सोमवार की सायं तक दुनिया के किसी हिस्से से अधिक कोरोनावायरस से 3,62,599 संक्रमित मामले हो गए हैं, जबकि 10885   लोग जानें गँवा चुके हैं। न्यू ओर्लियंस में मोटापा अमेरिका के अन्य राज्यों की तुलना में दो गुणा है। यहाँ 97 प्रतिशत लोगों की मृत्यु का कारण मोटापा, मधुमेह, उच्च रक्तचाप अथवा गुर्दा रोग का होना बताया जाता है। अमेरिकी सेंटल डीजीज कंटोल की एक रिपोर्ट के अनुसार न्यू यॉर्क और लुजियाना के अस्पतालों में कोरोना ग्रस्त 78 प्रतिशत वे मरीज़ हैं, जो पहले से किसी न किसी रोग के शिकार थे।             

ह स्थिति इटली और स्पेन में भी देखने को मिल रही है। शरीर से भारी भरकम मोटे लोगों को ह्रदय रोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह से गुर्दे रोग और दमे एवं श्वास रोगों से मरते सुनते आ रहे हैं, लेकिन यह कोरोना का क़हर इन भारी भरकम लोगों के लिए मौत का पैग़ाम ले आएगा, इस से भयभीत होना, ग़लत नहीं है। कोविड -19 के उपचार में लगे आई सी यू विशेषज्ञों का कथन है कि एक तो भारी भरकम लोग पहले से अपनी जोखिमपूर्ण बीमारियों से जूझ रहे होते हैं। दूसरे, यह अदृश्य संक्रमण  श्वास प्रक्रिया पर तीव्र आघात करता है, पहले सूखी खाँसी और तेज़ ज्वर आता है और फिर चंद दिनों में मरीज़ की साँस को जकड़ लेता है। ऐसे में मोटे लोग, जो पहले ही श्वास रोग और फेफड़ों की बीमारियों से आक्रांत रहते हैं, उनके पास आई सी यू और वेंटीलेटर के सिवा कोई विकल्प नहीं रहता। ऐसे लोगों की प्रतिरोध क्षमता भी कम होती है। 

चीन में हुए एक शोध में कहा गया है कि मोटे लोगों का उपचार करना ही नहीं, उन्हें बचा पाना भी एक चुनौती साबित हुआ है। डब्ल्यू एच ओ की माने तो 2016 की गणना के अनुसार 1.9 अरब ओवरवेट लोगों में 65 करोड़ शारीरिक रूप से मोटे और अन्यान्य रोगों से ग्रस्त हैं, जो मनोचिकित्सा की दृष्टि से भी जनस्वास्थ्य सेवाओं के लिए समस्या है। इनफ़्लुएंज़ा ए (एच 1 एन 1) अथवा स्वाइन फल्यू के समय भी ये ही लोग गंभीर रूप से बीमार हुए थे और अनेक लोगों को जानें गँवानी पड़ी थी। नीदरलैण्ड में इंटेंसिव केयर असोसिएशन के अध्यक्ष डेड़ीरिक गोम्मेरस ने हाल ही में एक इंटरव्यू में टी वी पर कहा था कि आई सी यू में भर्ती 66 % से 80% मरीज़ ओवरवेट थे। इसी तरह की टिप्पणी नीदरलैण्ड के श्वास रोग विशेषज्ञ पीटर वाँ डेर वूरट ने की थी। ऐसे भारी भरकम लोगों के लिए वेंटीलेटर एक जीवन रक्षक के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। ये वेंटीलेटर  पूर्णतया जीवनरक्षक सिद्ध नहीं हो सके हैं।  

इंग्लैंड में एक वरिष्ठ चिकित्सक भारत भूषण जोशी ने बातचीत में कहा कि यह कहना सर्वथा ग़लत होगा कि प्रत्येक कोविड मरीज़ को वेंटीलेटर लगा दिया जाता है। इसका उपयोग तभी किया जाता है, जब आई सी यू में उपचार किए जा रहे मरीज़ को ख़ुद ब ख़ुद साँस लेने में कठिनाई होने लगती है। मोटे लोगों को पहले से ही श्वास रोग सहित अन्यान्य बीमारियाँ घेरे रहती हैं। ऐसे लोगों पर वेंटीलेटर ज़्यादा सहायक नहीं हो पाता है। इसके बावजूद दस में से दो लोग वेंटीलेटर उपचार के बाद ख़ुद ब ख़ुद साँस लेने लगते हैं, तो यह बड़ी उपलब्धि है।   

ई सी यू में वेंटीलेटर के लिए कोविड मरीज़ को उस स्थिति में लाया जाता है, जब वह ख़ुद साँस लेने में असमर्थ रहता है। ऐसे मरीज़ को एक एयर ट्यूब के ज़रिए साँस दी जाती है। इस एयरट्यूब का एक सिरा बेहोश मरीज़ के मूँह और गले के मार्ग से फेफड़े तक पहुंचाया जाता है तो दूसरा सिरा वेंटीलेटर से जोड़ दिया जाता है। यह वेंटीलेटर ही है, जो कम ज़्यादा दबाव के साथ मरीज़ को साँस देता है। मोटे लोगों के लिए उसकी मोटी गर्दन आड़े आती है, जो इंटीब्यूट करने वाले डाक्टर के लिए नहीं, मरीज़ के लिए भी जान लेवा बन सकती है। कोविड मरीज़ों को वेंटीलेटर अधिकतम 14 से 21 दिन तक मरीज़ को लगाया जाता है। इस दौरान मरीज़ ख़ुद साँस लेने लग जाए तो ठीक, अन्यथा वेंटीलेटर को दूसरे मरीज़ को लगा दिया जाता है। यही ट्यूब कभी कभार मोटे मरीज़ के शरीर के किसी हिस्से के नीचे आ जाए और असावधानी हो जाए तो एक अन्य संक्रमण का ख़तरा बढ़ जाता है।  

न्यू ओर्लियंस के एक अस्पताल में कोविड-19 से पीड़ित भारी भरकम बेटी ने व्हीलचेयर संभाले स्वास्थ्यकर्मी से जब यह कहा कि उसे ‘इंटिब्यूट’ करने से पहले आई सी यू में माँ के बेड तक ले चलो ताकि वह माँ को अलविदा कह सके। यह कथन निश्चय बड़ा भयावह था। इस पर विश्लेषकों ने मत व्यक्त किया कि कोविड मोटापे से ग्रस्त लोगों के लिए उम्र नहीं देखता, इसका युवाओं पर भी उतना ही असर हो रहा है। 


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