लोक कला बचेगी तभी देश बचेगा – डॉ. ज्योतिष जोशी

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मनीष कपूर।

स्वर्ग रंगमण्डल लोक नाट्य नौटंकी के सरक्षण एवं संवर्धन हेतु विगत दो दशक से लोक कलाओं के क्षेत्र में देश के अग्रणी संस्था है। राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय महोत्सवों में प्रदर्शन के साथ-साथ स्वर्ग रंगमण्डल लोक कलाओं पर गंभीर एवं आवश्यक शोध के लिये भी जानी मानी संस्था है।

दिनांक 8 जनवरी 2023 को प्रयागराज के उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र के प्रेक्षागृह में दोपहर 2:00 बजे से प्रसिद्ध नाट्य आलोचक, लेखक एवं विचारक श्री ज्योतिष जोशी रचित पुस्तक “नौटंकी कला परम्परा और संघर्ष (सेतु प्रकाशन से सद्यः प्रकाशित) का लोकार्पण के साथ ही नौटकी सहित लोक कलाओं के संरक्षण और संवर्द्धन पर राष्ट्रीय कलाविदों की गोष्ठी संस्था स्वर्ग के तत्वाधान में आयोजित की गई।

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गोष्ठी में प्रसिद्ध नाट्य आलोचक लेखक एवं विचारक श्री ज्योतिष जोशी ने कहा –
लोक कला बचेगा तभी आप बचेंगे। औपनिवेशिक सोच को लोक के अवचेतन पर थोपा जा रहा है, नाट्यशास्त्र पढ़ाया तो जाता है मगर उसको व्यवहारिकता में उपेक्षित किया जाता है।

वही सदस्य विशेषज्ञ समिति संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार सुधीर तिवारी ने कहा नौटंकी के लिए नए स्वरूप और और चिंतन को पुनर्जागृत करने के लिए अतुल यदुवंशी जी के योगदान को आज ही नहीं वरन आने वाले समय में सुनहरे अक्षरों में याद किया जाएगा लोकनायकों की संस्कृति प्रशस्ति स्वरूप लाला हरदौल आल्हा ऊदल जैसी कृतियों में मौजूद हैं।

जिसके पश्चात गुजरात से आए प्रसिद्ध निर्देशक अभिनेता एवं चित्रकार श्री कनु पटेल ने कहा नई शिक्षा नीति में भारतीय लोक कलाओं के महत्व को रेखांकित किया गया है उसमें जोशी जी की यह विशेष सन्दर्भित पुस्तक एक मील का पत्थर साबित होगी।

लोक कलाएं लोक रंजन और सुख की अनुभूति के लिए मूल तत्व के रूप में हैं। भवाई के संदर्भ में बताते हुए लोक की भव को पार कराने वाली कलाएं बताया और कहा कि लोक कलाएं अनुष्ठानिक हैं। लोक श्लोक की पद्धति हमारे चिंतन के अवचेतन में विद्यमान हैं!

दिल्ली से आए प्रसिद्ध नाटककार लेखक एवं विचारक और संगीत नाटक अकादमी के उपसचिव श्री सुमन कुमार ने कहा नौटंकी को समस्त लोक ने अपने मे आत्मसात किया है वैसे ही नौटंकी ने भी अनेकों-अनेक लोक कलाओं को अपने में समाहित किया है।

विशुद्ध रूप से व्यावसायिक तौर पर नौटंकी के चलन के कारण यह शोषित हुई और सबको जोड़ने वाली नौटंकी खुद टूटती गई।
नौटंकी को अतुल ने नए सपने, नई सोच, उमंग, उल्लास से भरा उसे नए कथानकों से ऊर्जावान बनाया और उसी फलक पर टांक दिया है जहाँ पर कभी यह विद्यमान थी! अतुल यदुवंशी की ज़िद ही इसे ज़िंदा रखे हुए है।

इस अवसर पर वरिष्ठ संस्कृतज्ञ और सलाहकार इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र वाराणसी से श्री विजय शंकर शुक्ल ने कहा वर्तमान में बिना अतुल यदुवंशी की बात किए नौटंकी की बात नहीं की जा सकती।

महाराष्ट्र से आए वरिष्ठ नाट्य आलोचक एवं लेखक श्री सत्यदेव त्रिपाठी ने कहा लोक कलाएं कभी दुखांत नहीं होतीं यानी लोक कलाओं का अंत कभी दुखांत नही होता।
इस संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे राजस्थान से आए श्री भारत रत्न भार्गव ने कहां चुनौतियों से लड़ने का नाम है अतुल यदुवंशी साथ ही उन्होंने कहा कि यदि डा. ज्योतिष जोशी लोक कलाओं के विलुप्त होने से डरते हैं तो वही अतुल यदुवंशी उन परंपराओं को आगे बढ़ाने और लोक कलाओं के संरक्षण एवं संवर्धन की बात करते हैं।

इस अवसर पर स्वर्ग रंगमण्डल की राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित नौटँकी ‘बहुरूपिया’ का मंचन भी किया गया।

इस संगोष्ठी का संचालन कला विदुषी, लोकनाट्य नौटंकी नायिका डॉ सोनम सेठ ने किया।

किताब के संदर्भ में :-
‘नौटंकी : लोक परम्परा और संघर्ष विशेष सन्दर्भ अतुल यदुवंशी चार अध्यायों में लिखी गयी पुस्तक है। इसमें “पारम्परिक नाट्य नौटंकी उद्भव और विकास’ नामक पहले अध्याय में भारतीय नाट्य के उदय और उत्कर्ष सहित भारतीय नाट्यों की चर्चा है, तो नौटंकी के शास्त्रीय आधारों का परीक्षण भी है। तदन्तर नौटंकी के परवर्ती विकास’ को देखा गया है। इसी तरह दूसरे अध्याय ‘नौटंकी में नवाचार की सार्थक पहल’ में वर्तमान नौटंकी और उसके सतत विकास में प्रयत्नशील श्री अतुल यदुवंशी के उल्लेखनीय कार्यों का विश्लेषण है। तीसरे अध्याय – ” लोक परम्परा के संरक्षण और सम्वर्धन का प्रयत्न ‘ में लोक, परम्परा और शास्त्र का परीक्षण करते हुए अतुल यदुवंशी द्वारा पारम्परिक प्रदर्शनधर्मी कलाओं के संरक्षण और विकास को लेकर किए जा रहे प्रयासों को देखा गया है। पुस्तक के चौथे और अंतिम अध्याय- ‘नौटंकी और लोक परंपराओं की उपादेयता और संभावनाए” में समेकित रूप से नौटँकी की तात्विकता और प्रदर्शनधर्मी कलाओं को विलुप्ति से बचाने की आवश्यकता पर एक विचारोत्तेजक सम्वाद है।

कहना चाहिए कि हिन्दी में सर्वथा पहली बार नौटँकी को उसकी हजारों वर्षों की परम्परा के साथ देखा गया है और उसके उद्गम स्थल को परखा गया है। नौटकी के इतिहास के साथ भारतीय नाट्य की दीर्घ परम्परा और लोक कलाओं के वृहत्तर प्रवाह को देखना, अपने को उस लोक में स्थित करना है जिसमें हमारा उद्गम भी है तो जीवन की कृतार्थता भी ।


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