भारत बनाम कोरोना
इधर आज देश में कोरोना को लेकर भारत की इंचार्ज स्वास्थ्य संस्था ICMR ने फिर एक बहुत बड़ा बयान दिया है जो इस रोग पर अब तक बनी समझ पर ही प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रहा है। आज उसने ना सिर्फ अगले दो दिन के लिए रेपिड एक्शन जांच को रोकने के लिए कहा है अपितु पहली बार सार्वजनिक रूप से यह स्वीकार किया है कि ‘भारत में 80 फ़ीसदी पॉज़िटिव मामलों में कोई लक्षण नहीं है या फिर बिल्कुल मामूली लक्षण है’ यह एक बहुत बड़ी कमी, चूक या नीतिगत खामी माना जाए या फिर बीमारी को समझने की शासकीय भूल, यह समझना विशेषज्ञों का काम हो सकता था लेकिन इस देश में और अमेरिका में यही तो बुनियादी फर्क है, यहाँ जिसके हाथ में लाठी, वो सर्वेसर्वा, फिर भले ही वो एक ढीठ अदनी सी जूनियर सरकारी भ्रष्ट पब्लिक सर्वेंट हो, जो सरे आम सीनियर डॉक्टर को कुर्सी से उठाती, अपमानित करती दिखे या फिर वो दम्भी अधिकारी, कलेक्टर, अंगूठाछाप नेता हों, जो बड़े बड़े लर्नेड डॉक्टरों को अपने दरबार में जीहजूरी करने, लाइन लगवाने को अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हों, चापलूसों को, अयोग्य, अकर्मण्य भ्रष्ट लोगों को समिति का सदस्य बनाने का दुस्साहस करने में भी नहीं चूकते हों, जबकि आज इस आपदा के समय, विशिष्ट विशेषज्ञों की बेहद जरुरत है। और वहीं दूसरी और अमेरिका में आप विशेषज्ञ को आगे होकर बयान देते, नीतियां घोषित करते देखेंगे और उनका राष्ट्रपति, दुनिया का सबसे शक्तिशाली कहा जाने वाला व्यक्ति, उनके पीछे खड़ा उनका समर्थन करता दिखता है।
इम्यून सिस्टम स्ट्रॉन्ग करना ही आम लोगो के पास एक बेहतर विकल्प है
अब दो शब्दों को बहुत ध्यान से समझिए
पहला है #एसिम्प्टमैटिक यानी “लक्षण विहीन या लक्षणरहित“,
कोरोना के लक्षण अमूमन पांच से 10 दिन के अंदर दिख जाते हैं, लेकिन एसिम्प्टमैटिक व्यक्ति के साथ ऐसा नही होता मतलब न खांसी, न छींक, न बुखार पुरी तरह स्वस्थ लगने वाला व्यक्ति भी एसिम्प्टमैटिक हो सकता है।
और दूसरा है #साइलेंट_कैरियर
“साइलेंट कैरियर” यानी वह एसिम्प्टमैटिक व्यक्ति जिसे खुद नहीं पता होता कि उनके शरीर में कोरोना है। वो कई लोगों के कॉन्टैक्ट में आते हैं। ओर अनजाने में ही उसके शरीर से कइयों के शरीर तक वायरस पहुंच जाता है। और जिस किसी का इम्यून सिस्टम स्ट्रॉन्ग नही है वह व्यक्ति उससे संपर्क में आकर बीमार पड़ सकता है। यह एक ऐसी बात है जिसके बारे में हम बार बार चेता रहे थे, लेकिन लोग जानबूझकर अनजान बने हुए थे हालांकि विश्व के कई बड़े देश भी बहुत दिनों से यही बात बोल रहे थे। अब जबकि भारत का सबसे प्रमुख सरकारी संस्थान ICMR ही कह रहा है कि भारत में 80 फ़ीसदी पॉज़िटिव पाए गए व्यक्ति लक्षणविहीन थे तो सिस्टम बार बार यह कैसे कह रहा था कि ये व्यक्ति वायरस फैला रहा था?
इस नए तथ्य #एसिम्प्टमैटिक से भारत की टेस्टिंग प्रक्रिया पर भी बहुत बड़ा सवाल खड़ा हो जाता है कि क्या हमारी सिर्फ लक्षण मिलने पर टेस्ट करने की पॉलिसी सही है?
अभी तक सरकार लक्षण को आधार बना कर सर्वे कर रही है, अभी हम लक्षण को देखकर, या लक्षण वाले संक्रमित लोगों को खोज कर, लक्षण मिलने पर मरीज के घरवालों, पड़ोसियों के टेस्ट कर रहे हैं हम उनके इलाको- बस्तियों को अलग-थलग कर के हॉटस्पॉट बना कर, पॉजिटिव मरीज को क्वरैंटाइन में रखने की रणनीति पर काम कर रहे हैं।
जबकि अमेरिका, ब्रिटेन, स्पेन, इटली, जर्मनी, सिंगापुर, ताईवान आदि जो देश है उनकी एप्रोच है कि मरीज चाहे सिम्प्टमैटिक या एसिम्प्टमैटिक, सबके टेस्ट होने चाहिए अस्पताल में आए मरीज ही नहीं, बल्कि आम आबादी के बीच टेस्ट सबसे पहली जरुरत बनाई उन्होंने।
भारत यह तो गलती कर ही रहा है बल्कि वह उससे भी एक ओर बड़ी गलती कर रहा है देश का स्वास्थ्य मंत्रालय, जिसने पिछले कुछ दिन से यह कहना शुरु कर दिया है कि यह जिला या क्षेत्र कोरोना मुक्त है, इसके बनिस्बत आप विश्व मे देखे तो चाहे जर्मनी की सरकार हो या सिंगापुर की या न्यूयॉर्क का गवर्नर, कोई यह नहीं कह रहा है कि हम, हमारा राज्य या हमारे जिले कोरोना मुक्त हो गए। वह अपने यहाँ सघन रूप से टेस्टिंग अभियान चला रहे है जबकि उनके यहाँ कोरोना के केस लगातार कम हो रहे हैं उसके बावजूद भी वह टेस्टिंग की संख्या बढाते जा रहे है । हमारे यहाँ टेस्टिंग किट्स की बात हो, या उनकी क्वालिटी और परिक्षण दर की, यह सब बार बार हम पिछले दो माह से लगातार लिख ही रहे हैं और लिखते रहेंगे। लेकिन अब एक कड़वी हकीकत समझ लीजिए कि इस वायरस को खत्म करने की बात मूर्खता है अब हमें इसके साथ ही जीना होगा एसिम्प्टमैटिक ट्रांसमिशन की हकीकत को स्वीकार करने का अर्थ भी यही है कि दुनिया में इसका ही नहीं, किसी भी वायरस का फैलाव रोक सकना संभव ही नहीं है, इसे रोकने के लिए हर एक मानव शरीर को इससे रूबरू होना ही पड़ता है, किसी भी वायरस के खिलाफ जब तक शरीर बचाव तंत्र अर्थात इम्मुनिटी को नहीं बनाएगा, खुद को मजबूत नहीं करेगा तब तक तो इसे रोक पाना संभव कदापि नहीं और इसलिए जरुरी है कि सभी अगले दो से तीन साल तक अपनी अंदरूनी शक्ति को मजबूत करें, भीड़ से दूर रहें, भीड़ वाले कामों, शादी ब्याह, उत्सव, मजमों को बेहद संक्षिप्त कर दें, जितना हो सके, संचय पर ध्यान दें ताकि संकट काल में आने वाली जरूरतों, परेशानियों को कम से कम तनाव के साथ पूरा कर सकें और सभी को बताएं भी, प्रेरित भी करें।
और यही सब हम कई सालों से स्वास्थ्य परिशिष्टों में बार बार लिख रहे थे, कि सारे सरकारी आंकड़ें, नेशनल डेरी बोर्ड के अनुसार कुल खपत का सिर्फ 40% दूध ही उत्पादन कर पाता है देश, फिर बाकी कहाँ से आता है ?
चलिए अब इसका, इस बंद से आकलन करें, इस घोषित बंद की वजह से रेस्टोरेंट, होटल, सारी मिठाई की दुकानें, चाय की दुकानें व चाय के ठेले आइस्क्रीम, कुल्फी की दुकानें बंद हैं, शादी, विवाह व पार्टियां भी नहीं हो रहीं? तो फिर इनमें खपने वाला हजारों लाखों लीटर दूध कहां जा रहा है? दूध निकालना भी जरुरी और उसे रखा भी नहीं जा सकता, तो क्या सचमुच बाजार में बडे़ पैमाने पर नकली दूध का धंधा चल रहा था? है ना बात, सोचने की? फिर अभी तक आपके पेट में क्या जा रहा था? हम क्या खा पी रहे थे जिस कारण जल्दी जल्दी बीमार, एसिडिटी, उलटी दस्त या पेट खराब हो जाते थे । इस लिए आज यह जरुरी हो गया है है की शुद्ध भोजन का ही सेवन कीजिये। अपने रोग प्रतिरोधक छमताओ को बेहतर कीजिये और भविष्य के लिए अपने परिवार को और खुद को तैय्यार कीजिये । जय राम जी की ।
लेखक: डॉ भुवनेश्वर गर्ग आप भोपाल शहर में स्तित एक बड़े हस्पताल में जाने माने स्वस्थ विशेषज्ञ है।