करोना काल लॉकडाउन का सोलहंवा दिन, आज का दु:ख, कल का सौभाग्य
रामायण के सन्दर्भ में कितनी अच्छी अच्छी बातें, आज उस पीढ़ी के सामने आ रही है, जिसने उस जीवन को न तो जिया है और ना ही संघर्ष कर खुद को तपा कर कुंदन बनाया है।
कैसे आज का दु:ख कल का सौभाग्य बन सकता है, यह आज रामायण सबको याद दिला रहा है।
यह महाराज दशरथ की व्यथा में छिपा दुःख भी है और उनके आनंद का सहारा भी।
महाराज दशरथ को जब संतान प्राप्ति नहीं हो रही थी, तब वो बड़े दुःखी रहते थे, पर ऐसे समय में उनको एक ही बात से होंसला मिलता था जो कभी उन्हें आशाहीन नहीं होने देता था। मजे की बात ये कि इस होंसले की वजह किसी ऋषि-मुनि या देवता का वरदान नहीं बल्कि श्रवण के पिता का श्राप था। दशरथ जब-जब दुःखी होते थे तो उन्हें श्रवण के पिता का दिया श्राप याद आ जाता था
श्रवण के पिता ने दशरथजी को ये श्राप दिया था कि जैसे मैं पुत्र वियोग में तड़प-तड़प के मर रहा हूँ, वैसे ही तू भी तड़प-तड़प कर मरेगा। दशरथ को पता था कि ये श्राप अवश्य फलीभूत होगा और इसका मतलब है कि मुझे इस जन्म में तो जरूर पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी, तभी तो उसके शोक में, मैं तड़प तड़पके मरूँगा ? यानि यह श्राप दशरथ के लिए संतान प्राप्ति का सौभाग्य लेकर आया ?
ऐसी ही एक घटना सुग्रीव के साथ भी हुई, सुग्रीव जब सीताजी की खोज में वानर वीरों को पृथ्वी की अलग – अलग दिशाओं में भेज रहे थे तो उसके साथ-साथ उन्हें ये भी बता रहे थे कि किस दिशा में तुम्हें क्या मिलेगा और किस दिशा में तुम्हें जाना चाहिए या नहीं जाना चाहिये। प्रभु श्रीराम, सुग्रीव का ये भगौलिक ज्ञान देखकर हतप्रभ थे, उन्होंने सुग्रीव से पूछा कि सुग्रीव तुमको ये सब कैसे पता? तो सुग्रीव ने उनसे कहा कि प्रभु, जब मैं बाली के भय से मारा-मारा फिर रहा था, तब पूरी पृथ्वी पर कहीं शरण न मिली और इस चक्कर में मैंने पूरी पृथ्वी छान मारी, इसी दौरान मुझे सारे भूगोल का ज्ञान हो गया। सोचिये, अगर सुग्रीव पर ये संकट न आया होता तो उन्हें भूगोल का ज्ञान नहीं होता और माता जानकी को खोजना कितना कठिन हो जाता ?
इसीलिए किसी ने बड़ा सुंदर कहा है :-
अनुकूलता भोजन है, प्रतिकूलता विटामिन है और चुनौतियाँ वरदान है और जो उनके अनुसार व्यवहार करें, वही पुरुषार्थी है।ईश्वर की तरफ से मिलने वाला हर एक पुष्प अगर वरदान है।तो हर एक काँटा भी वरदान ही समझो। मतलब अगर आज मिले सुख से आप खुश हो, तो कभी अगर कोई दुख, विपदा, अड़चन आ जाये।तो घबराना नहीं । क्या पता वो अगले किसी सुख की तैयारी हो। और वाकई में यह समय खुद को, और अपनी अगली पीढ़ी को तपा तपा कर मजबूत बनाने और कुंदन की तरह चमकाने का है, अभी तक आपने अपनी संतान को फूलों सहेजा, उसके लिए दुनियाभर के सुख साधन जुटाए, कभी उन्हें थोड़ी सी भी तकलीफ नहीं होने दी, अच्छे बुरे की समझ भी आज की पीढ़ी में कम ही है । और श्री रामचरित मानस में गोस्वामी श्री तुलसीदासजी ने भी तो यही कहा है कि:
धीरज धर्म मित्र अरु नारी।
आपद काल परखिए चारी।।
आज के सन्दर्भ में चाहे जिस भी दृष्टिकोण में गढ़ के देख लो, ये बात व्यक्ति के स्तर पर भी सही बैठती है और राष्ट्र के स्तर पर भी। इनमें से पहले तीन यानी “धीरज, धर्म और मित्र” आपदा काल की इस परीक्षा में बुरी तरह पराजित होते दिखाई दे रहे हैं, ना कोई धीरज धरने को तैयार है, ना कोई धर्म का पालन करने का इच्छुक है, जिनसे राष्ट्र मानस होने के चलते मित्रवत व्यवहार की आशा थी, वो शत्रु बनकर निकृष्ट काल का रूप बन बैठे हैं, मनुष्यता का सबसे निम्नतम और निकृष्टम रूप देखने को मिल रहा है, अपनी जान की कीमत देकर भी राष्ट्र को, मानवता को चोट पहुँचाने की भरसक कोशिश एक वर्ग द्वारा की जा रही है, अब ऐसा लग रहा है कि यदि भारत को अगर कभी युद्ध का सामना करना पड़ा तो दोहरे मोर्चों पर जूझना पड़ेगा, एक तरफ बाहरी शत्रु और एक आंतरिक शत्रु।
देश अगर अब भी नहीं समझ रहा हे कि कोरोना भी तो युद्ध ही है, युद्ध क्या, विश्वयुद्ध है लेकिन विश्वयुद्ध के समय भी जो लोग अपना राष्ट्र धर्म नहीं निभा रहे हैं, उनसे अब कुछ भी आशा रखना ख़ुद को बेवकूफ़ बनाने जैसा है। क्या क्या हो रहा है ? कौन कर रहा है ? सब दिख ही रहा है, एक ही तरह को नमूनों को बार बार कहने से न तस्वीर बदलेगी न जहालत का स्तर। इसलिए सदैव सकारात्मक रहें, जागरूक रहें और देश के बाहरी दुश्मनों के साथ साथ, देश के भीतर घात लगा रहे दुश्मनों पर भी नजर रखें और देश की सहायता करें, सोचिये, परखिये, विपदा में देश की आँख, कान, नाक, बुद्धि बनिए और एक वीर सैनिक की तरह अपना कर्म कीजिये।
जो पंक्तियाँ कभी ट्रकों बसों के पीछे लिखी जाती थी, वो अब मानव जाति के पीछे लिखने की नौबत आ गई है ।
सुरक्षित रहने, दूरी बनाये रखें, Keep Distance to stay safe