हल्दी घाटी से महाराणा प्रताप की सेना नहीं, मुगल सेना हटी थी पीछे

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डॉ अजय ओझा ।

विवादित पट्टी हटायी गयी । राजसमंद से बीजेपी सांसद दिव्या कुमारी ने भी जताई थी आपत्ति थी ।

नई दिल्ली । आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया (एएसआई) ने राजस्थान के राजसमंद ज़िले के रक्ततलाई से वो विवादित पट्टी हटा दी है, जिसपर लिखा था कि 1576 में हल्दीघाटी की लड़ाई में महाराणा प्रताप की सेना को पीछे हटना पड़ा था ।

इसके अलावा हल्दीघाटी-खमनेर के मार्ग पर स्थित बादशाह बाग़ को मुग़ल शासक अकबर से जोड़ने पर भी आपत्ति जताई गई है । दो दिन पहले ही संस्कृति राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इस विवादित शिलापट को हटाने का आदेश दिया था ।

चेतक समाधि और हल्दीघाटी से दो और शिलापट हटाये गए
इस ख़बर को तमाम बड़े अख़बारों ने प्रमुखता से जगह दी है । टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि यह शिलापट गुरुवार को शाम में तीन बजे हटाया गया । अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार, बाद में चेतक समाधि और हल्दीघाटी से दो और शिलापट हटाये गए । कहा गया है कि इनपर लिखी बात और फ़ॉन्ट का आकार, एएसआई के प्रारूप के हिसाब से नहीं थे ।

अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार इन शिलापटों को लेकर राजसमंद से बीजेपी सांसद दिव्या कुमारी ने भी आपत्ति जताई थी ।

इंदिरा गाँधी जब आई थीं तब लगी थीं पट्टियां

जोधपुर क्षेत्र के एएसआई अधिकारी बिपिन चंद्र नेगी ने अख़बार से कहा है कि गुरुवार को इन शिलापटों को हटाया गया । उन्होंने कहा, ”1975 में जब इंदिरा गाँधी इन इलाक़ों में आई थीं तब चेतक समाधि, बादशाह बाग़, रक्ततलाई और हल्दीघाटी में ये पट्टियाँ लगाई गई थीं । उस वक़्त ये स्मारक केंद्र की देखरेख में नहीं आते थे ।
इन ठिकानों को 2003 में राष्ट्रीय महत्व के स्मारक घोषित किया गया था, लेकिन इन शिलापटों पर ये सूचनाएँ नहीं थीं. लंबे समय के कारण ये पुराने पड़ गए थे । इसके साथ ही तारीख़ और तथ्य को लेकर विवाद भी थे । ”

नये शिलापट पुष्ट ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर होंगे

नेगी ने कहा, ”इतिहास के जानकारों और जनता के प्रतिनिधियों से इन शिलापटों को हटाने के लिए कई अनुरोध आये थे । इन्हीं को देखते हुए, मैंने स्वतः संज्ञान लिया । पुराने शिलापटों पर एएसआई का नाम तक नहीं था । हमारे मुख्यालय से संस्कृति मंत्रालय ने भी इस मुद्दे को उठाया था । अब नये शिलापट पुष्ट ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर होंगे ।

क्या लिखा था शिलापट में

रक्ततलाई का जो शिलापट हटाया गया है, उस पर लिखा था, ”रक्त तलाई जिसे बोलचाल की भाषा में ख़ून की तलाई भी कहते हैं, बनास के दूसरे किनारे की ओर एक चौड़ा मैदान है । यहाँ शाही और प्रताप की सेना के बीच घमासान युद्ध हुआ था । इस युद्ध का नेतृत्व महाराणा प्रताप एवं मानसिंह घोड़े और हाथी पर सवार होकर क्रमशः कर रहे थे । युद्ध इतना भयंकर था कि संपूर्ण मैदान लाशों से भर गया था । ऐसी स्थिति में प्रताप की सेना को पीछे हटना पड़ा और युद्ध 21 जून, 1576 को समाप्त हो गया । ”

उदयपुर में मीरा गर्ल्स कॉलेज के असोसिएट प्रोफ़ेसर चंद्र शेखर शर्मा ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा है कि पुराने शिलापटों को लेकर उन्होंने एएसआई से शिकायत की थी ।

शर्मा ने कहा, ”जयंती पर मैंने इस मुद्दे को उठाया था । शिलापट पर युद्ध की तारीख़ के साथ राजपूत पीछे हट गए थे, वाली बात तथ्यात्मक रूप से ग़लत है । यह ऐतिहासिक रूप से ग़लत है क्योंकि मुग़लों की सेना पीछे हटी थी । मैं हल्दीघाटी गया था और इसे लेकर युवाओं के साथ सेमिनार भी किया था । इससे पहले मैंने एएसआई में एक प्रतिनिधिमंडल भेजा था और उन शिलापटों को हटाने की माँग की थी । ”


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