वोटर से पहले मजदूरों को इंसान समझें नेता
ग्राम पंचायत ,विधानसभा, लोकसभा या नगर निगम के अंतर्गत पार्षद आदि के चाहे जो भी चुनाव हो इन चुनावों के दंगल में कुदे हर प्रत्याशी के पास चुनाव के दौरान धन से लेकर मनोबल तक की कोई कमी नहीं होती।चुनाव के दौरान इन प्रत्याशियों का धन और जनता से मिलने का मनोबल इस तरह छलकता हैं जैसे पनघट पर जल से लबालब भरा घडा छलकता रहता हैं। चुनावों के दौरान यह प्रत्याशी नेता अपने क्षेत्र के मजदूर वोटरो से लेकर राजा हो या रंक वोटर सभी की सूची हासिल कर लेते है। जिसका आंकलन यह नेतागण इतनी बारिकी से करते हैं कि कौन सा मजदूर देश के किस कौने में मजदूरी कर अपना पेट भरने निकला है यह सब जानकारी ये चुनावी प्रत्याशी नेता निकाल लेते हैं। फिर शुरू होता हैं इन मजदूरों को चुनाव के दिन वोट डालने के लिए घर वापस लाने और बुलाने का सिलसिला, इस प्रक्रिया में शाम, दाम,दंड,भेद किसी भी प्रकार से जीत करने की चाह रखने वाले यह प्रत्याशी नेता इन मजदूरों से संपर्क साध उन्हें घर आने के लिए गुजारिश से लेकर प्रलोभन एवं धमकियाँ तक देखर अपने वोट की संख्या सुनिश्चित करने हेतु जुट जाते हैं। स्थानीय वोटर मजदूरों को आस पास के क्षेत्र से इन प्रत्याशियों की साधारण गाड़ियों से लेकर लग्जरी गाड़ियों के द्वारा घर वापस लाया जाता हैं।जो मजदूर दूर दराज के क्षेत्रों में या अन्य राज्यो में मजदूरी कर रहे होते है उनको बसों एवं ट्रेनों का किराया देकर गाँव/घर वापस बुला लिया जाता हैं। जो मजदूर इन प्रत्याशी नेताओं की बात नहीं मानते और चुनाव के दौरान वोट डालने घर नहीं आते उन्हें कई बार इस गलती का भारी खामियाजा भी भुगतना पड़ता हैं। इसलिए अधिकांश मजदूर इन प्रत्याशी नेताओं के बुलावे पर चुनाव के दिन वोट डालने के लिए घर वापसी कर इन नेताओं की जीत का आधार स्तंभ बनते हैं। मगर आज कोविड 19 जैसी वैश्विक महामारी के चलते उन तथाकथित नेताओं की जेब में धन और मन में मनोबल की कमी इन मजदूरों के प्रति बिल्कुल साफ दिखाई दे रही है। न जाने मुश्किल के इस दौर में देश प्रदेश में काम करने वाले इन मजदूरों की वह सूची इन नेताओं के पास से कहां चली गई जिस सूची के आधार पर यह नेता इन मजदूरों को चुनाव के दिन वोट डालने के लिए घर वापस बुलाया करते हैं ? यह बात किसी एक राज्य एक जिले एक शहर या एक गांव, एक तहसील विशेष की नहीं है यह बात संपूर्ण राष्ट्र की है संपूर्ण भारतवर्ष के नेताओं की है।अगर इन तथाकथित नेताओं ने कोविड-19 की शुरुआत के दौरान सर्वप्रथम ठीक उसी प्रकार इन मजदूरों की चिंता की होती जिस तरह यह मजदूर उनको चुनाव के दौरान अपनी वोट बैंक के तौर पर सर्वप्रथम याद आते हैं तो शायद आज देश के अलग-अलग कोनों में फंसे मजदूर सैकड़ों ,हजारों किलोमीटर की पैदल यात्रा करके अपने घर पहुंचने को मजबूर ना होते। बिना खाना खाए भूख और प्यास से लाचार यह मजदूर दो निवालो के बदले अपनी मजबूरी का फोटो खिंचवाने को मजबूर ना होते।यह मजदूर भी आज अपने परिवारों के बीच अपने घरों में सुरक्षित रह रहे होते और ना ही औरंगाबाद के करमाड क्षेत्र में रेल लाइन पकड़ कर लौट रहे 16 मजदूर मालगाड़ी के चपेट में आ कर मौत का शिकार होते ।राज्य सरकारों द्वारा मजदूरों और छात्रों में भेदभाव और मजदूरों को देर से उनके घर भेजने का फैसला लेने में देरी सिर्फ और सिर्फ स्थानीय नेताओं के द्वारा सरकार पर समय रहते दबाव नहीं बनाने और नेताओं की नीयत में खोट के कारण हुई हैं । अगर हर क्षेत्र का नेता चाह लेता तो प्रथम लाॅक डाउन के दौरान ही हर मजदूर अपने परिजनों के साथ अपने घर गाँव में होता । औरंगाबाद के करमाड क्षेत्र में रेल लाइन पर मजदूरों का समूह मौत की गोद में ना सोया होता । न जाने कब तथाकथित नेता भारत के मजदूर और मजबूर नागरिक की कीमत को वोट से बढ़कर समझ पाएँगे ?औरंगाबाद के करमाड क्षेत्र में रेल लाइन पर हुए हादसे पर ये तथाकथित नेता अपनी अपनी नेतागिरी चमकाने को अपना अपना नेतागिरी का पिटारा खोल कर समाचार पत्रो से लेकर समाचार चैनलों तक पर निंदा और बहस करने पहुँच गए हैं ।मगर उन बच्चो का क्या होगा जिनके मजदूर और मजबूर पिता सिर्फ इन तथाकथित नेताओं की वजह से अपने बच्चो से हमेशा हमेशा के लिए दूर चले गए जहाँ से वापसी होती ही नहीं हैं ?प्रभु औरंगाबाद के करमाड क्षेत्र में रेल लाइन पर हुए हादसे में मरने वाले मजदूरों की आत्मा को शांति दे और इनके परिजनों को दुःख की घड़ी से उबरने की हिम्मत प्रदान करें और इन मजदूरों के परिजनों का दुःख महसूस करने की क्षमता उन तथाकथित नेताओं को दे प्रभु जो इन मजदूरों की वोट पर चुनाव जीत कर राजनीति में आने के बाद इन मजदूर वोटरों को भूलकर अपने ऐसो आराम में व्यस्त हो जाते हैं ।
अरविंद कुमार ।