अक्षय (आंवला) नवमी की विशेषता
✍️ डॉ अजय ओझा, ब्यूरोचीफ ।
अक्षय नवमी के दिन आंवला वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन करने से होती है अक्षय पूण्य की प्राप्ति।
अक्षय नवमी का पौराणिक एवं शास्त्रीय के साथ-साथ आयुर्वेदिक महत्व भी है।
रांची, 3 नवंबर । कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी अक्षय एवं आंवला नवमी के नाम से मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु का पूजन होता है और आंवले के वृक्ष की पूजा भी की जाती है। स्नान, दान, व्रत-पूजा का विधान रहता है। यह संतान प्रदान करने वाली और सुख-समृद्धि को बढ़ाने वाली नवमी होती है।
भारतीय सनातन धर्म में पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए महिलाओं द्वारा आँवला नवमी की पूजा को महत्वपूर्ण माना गया है। इस वर्ष कार्तिक शुक्ल नवमी दिनांक 2 नवम्बर 2022, दिन बुधवार को ‘अक्षय नवमी’ तथा ‘आँवला नवमी’ है। कहा जाता है कि यह पूजा व्यक्ति के समस्त पापों को दूर कर पुण्य फलदायी होती है। जिसके चलते कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को महिलाएं आँवले के पेड़ की विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर अपनी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करती हैं। अक्षय नवमी को जप, दान, तर्पण, स्नानादि का अक्षय फल होता है । आँवला नवमी को अक्षय नवमी के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन द्वापर युग का प्रारंभ हुआ था। कहा जाता है कि आंवला भगवान विष्णु का पसंदीदा फल है। आंवले के वृक्ष में समस्त देवी-देवताओं का निवास होता है। इसलिए इस दिन आँवले के वृक्ष के पूजन का विशेष महत्व है।
अक्षय नवमी के दिन आंवला वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर खाने का भी विशेष महत्व है। यदि आंवला वृक्ष के नीचे भोजन बनाने में असुविधा हो तो घर में भोजन बनाकर आंवला के वृक्ष के नीचे जाकर पूजन करने के पश्चात् भोजन करना चाहिए। भोजन में सुविधानुसार खीर , पूड़ी या मिष्ठान्न हो सकता है।
इस दिन पानी में आंवले का रस मिलाकर स्नान करने की परंपरा भी है। ऐसा करने से हमारे आसपास से नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है, सकारात्मक ऊर्जा और पवित्रता बढ़ती है, साथ ही ये त्वचा के लिए भी बहुत फायदेमंद है। आंवले के रस के सेवन से त्वचा की चमक भी बढ़ती है।
पूजा विधान
प्रातः काल स्नानादि के अनन्तर दाहिने हाथ में जल, अक्षत्, पुष्प आदि लेकर निम्न प्रकार से व्रत का संकल्प करें –
‘अद्येत्यादि अमुकगोत्रोsमुक शर्माहं(वर्मा, गुप्तो, वा) ममाखिलपापक्षयपूर्वकधर्मार्थकाममोक्षसिद्धिद्वारा श्रीविष्णुप्रीत्यर्थं धात्रीमूले विष्णुपूजनं धात्रीपूजनं च करिष्ये’
ऐसा संकल्प कर धात्री वृक्ष (आंवला) के नीचे पूरब की ओर मुखकर बैठें और
‘ऊँ धात्र्यै नम:’
मंत्र से आवाहनादि षोडशोपचार पूजन करके निम्नलिखित मन्त्रों से आंवले के वृक्ष की जड़ में दूध की धारा गिराते हुए पितरों का तर्पण करें।
मंत्र —
पिता पितामहाश्चान्ये अपुत्रा ये च गोत्रिण:।
ते पिबन्तु मया द्त्तं धात्रीमूलेSक्षयं पय:।।
आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं देवर्षिपितृमानवा:।
ते पिबन्तु मया द्त्तं धात्रीमूलेSक्षयं पय:।।
इसके बाद आंवले के वृक्ष के तने में निम्न मंत्र से सूत्र लपेटें-
दामोदरनिवासायै धात्र्यै देव्यै नमो नम:।
सूत्रेणानेन बध्नामि धात्रि देवि नमोSस्तु ते।।
इसके बाद वृक्ष की जड़ों को दूध से सींच कर उसके तने पर कच्चे सूत का धागा लपेटना चाहिए। तत्पश्चात रोली, चावल, धूप दीप से वृक्ष की पूजा करें। और आँवले के वृक्ष की 108 परिक्रमाएं करने के बाद कपूर या घी के दीपक से आंवले के वृक्ष की आरती करें तथा निम्न मंत्र से उसकी प्रदक्षिणा करें-
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे।।
इसके बाद आंवले के वृक्ष के नीचे ब्राह्मण भोजन भी कराना चाहिए और अन्त मे स्वयं भी आंवले के वृक्ष के सन्निकट बैठकर भोजन करें। एक पका हुआ कोंहड़ा (कूष्माण्ड) लेकर उसके अंदर रत्न, सुवर्ण, रजत या रुपया आदि रखकर निम्न संकल्प करें-
‘ममाखिलपापक्षयपूर्वकसुखसौभाग्यादीनामुत्तरोत्तराभिवद्धये कूष्माण्डदानमहं करिष्ये’
आज ही विष्णु भगवान ने कुष्माण्डक दैत्य को मारा था और उसके रोम से कुष्माण्ड की बेल उत्पन्न हुई। इसी कारण आज के दिन कुष्माण्ड का दान करने से उत्तम फल मिलता है। इसलिये इसके बाद विद्वान तथा सदाचारी ब्राह्मण को तिलक करके दक्षिणा सहित कूष्माण्ड दे दें और निम्न प्रार्थना करें-
कूष्माण्डं बहुबीजाढ्यं ब्रह्मणा निर्मितं पुरा।
दास्यामि विष्णवे तुभ्यं पितृणां तारणाय च।।
पितरों के शीतनिवारण के लिए यथा शक्ति कम्बल आदि ऊर्णवस्त्र भी सत्पात्र ब्राह्मण को देना चाहिये।
यह अक्षय नवमी ‘धात्रीनवमी’ तथा ‘कूष्माण्ड नवमी’ भी कहलाती है। घर में आंवले का वृक्ष न हो तो किसी बगीचे आदि में आंवले के वृक्ष के समीप जाकर पूजा दान आदि करने की परम्परा है अथवा गमले में आंवले का पौधा रोपित कर घर मे यह कार्य सम्पन्न कर लेना चाहिए।
आंवला नवमी की प्रचलित कथा
काशी नगर में एक निःसंतान धर्मात्मा और दानी वैश्य रहता था। एक दिन वैश्य की पत्नी से एक पड़ोसन बोली यदि तुम किसी पराए बच्चे की बलि भैरव के नाम से चढ़ा दो तो तुम्हें पुत्र प्राप्त होगा। यह बात जब वैश्य को पता चली तो उसने मना कर दिया लेकिन उसकी पत्नी मौके की तलाश में लगी रही। एक दिन एक कन्या को उसने कुएं में गिराकर भैरो देवता के नाम पर बलि दे दी। इस हत्या का परिणाम विपरीत हुआ। लाभ की जगह उसके पूरे बदन में कोढ़ हो गया और लड़की की प्रेतात्मा उसे सताने लगी। वैश्य के पूछने पर उसकी पत्नी ने सारी बात बता दी। इस पर वैश्य कहने लगा गौवध, ब्राह्मण वध तथा बाल वध करने वाले के लिए इस संसार में कहीं जगह नहीं है, इसलिए तू गंगातट पर जाकर भगवान का भजन कर गंगा स्नान कर तभी तू इस कष्ट से छुटकारा पा सकती है।
वैश्य की पत्नी गंगा किनारे रहने लगी। कुछ दिन बाद गंगा माता वृद्ध महिला का वेष धारण कर उसके पास आयीं और बोलीं यदि ‘तुम मथुरा जाकर कार्तिक नवमी का व्रत तथा आंवला वृक्ष की परिक्रमा और पूजा करोगी तो ऐसा करने से तेरा यह कोढ़ दूर हो जाएगा।’ वृद्ध महिला की बात मानकर वैश्य की पत्नी अपने पति से आज्ञा लेकर मथुरा जाकर विधिपूर्वक आंवला का व्रत करने लगी। ऐसा करने से वह भगवान की कृपा से दिव्य शरीर वाली हो गई तथा उसे पुत्र की प्राप्ति भी हुई।
अक्षय नवमी महापर्व का पौराणिक, शास्त्रीय के साथ-साथ आयुर्वेदिक महत्व भी है। कार्तिक मास में ही आँवला फलता है। हमारे शास्त्रों में आँवले की बडी महिमा गायी गयी है।
आँवला पृथ्वी पर का अमृत कहा जाता है। आयुर्वेद शास्त्रों में अनुपम औषधी के रूप में भी आँवले की बडी महिमा गायी गयी है ।आज वैज्ञानिक भी इस पर रिसर्च कर रहे हैं । आँवले पर काफी रिसर्च हो चुकी है।
आईये जानते हैं आँवले से किन किन रोगों को दूर किया जा सकता है औऱ आँवले से होने वाले फायदे क्या क्या हैं। आँवला हमारे शरीर में कौन कौन से विटामिन्स और पोषक तत्वों की पूर्ती करता है —–
अमृतफल आँवला
आँवला चाहे हरा हो या सूखा, जो भी इसका नियमित सेवन करेगा, उसकी जीवनशक्ति में प्रचंड वृद्धि होगी, वह निरोग रहेगा।
आँवला मस्तिष्क को तेज, श्वासरोगों को दूर, हृदय को मजबूत और नेत्रज्योति व आँतों की कार्यशक्ति में वृद्धि तो करता ही है, साथ ही यकृत को स्वस्थ बनाकर पाचनशक्ति में वृद्धि भी करता है। यह रक्तशुद्धि एवं रक्तसंचार में गुणकारी है तथा वीर्य का स्रोत है। यह आयुवर्धक तथा सात्विक वृत्ति उत्पन्न करके ओज एवं कांति को बढ़ाने वाला है।
आँवले को विटामिन ‘सी’ का भंडार कहा जाता है। स्वस्थ रहने के लिए हमें रोज जितनी मात्रा में विटामिन ‘सी’ की आवश्यकता होती है, वह केवल एक आँवला ही पूरा कर सकता है। विटामिन ‘सी’ शरीर के लगभग 300 कार्यों में अत्यधिक सहायक होता है। मस्तिष्क के कार्यों में विटामिन ‘सी’ की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसलिए साधकों को नियमित रूप से आँवले का सेवन करना चाहिए।
संतरे की तुलना में आँवले में 20 गुना ज्यादा विटामिन ‘सी’ पाया जाता है। 100 ग्राम आँवले में 600 मिलीग्राम विटामिन ‘सी’ होता है, जबकि 100 ग्राम संतरे में 30 मि.ग्रा. ही विटामिन ‘सी’होता है और सेवफल की तुलना में आँवले में 160 गुना विटामिन ‘सी’ तथा 3 गुना प्रोटीन होता है। आश्चर्य की बात यह है कि आँवले को उबालने, पीसने, भाप में पकाने या सुखाने पर भी उसमें उपस्थित विटामिन ‘सी’ की मात्रा में कमी नहीं आती है। यह गुण किसी भी अन्य फल या साग-सब्जी में नहीं होता।
मासिक धर्म के दौरान अधिक रक्तस्राव होने से महिलाओं में आने वाली कमजोरी आँवले के सेवन से कम होती है।
रोज लगभग 20 से 30 ग्राम आँवले का मुरब्बा या चूर्ण खाने से भरपूर विटामिन ‘सी’ मिलता है, साथ ही पेट भी साफ रहता है। हृदय रोग में आँवले का मुरब्बा लाभकारी है। मधुमेह के रोगियों को ठंडी के मौसम में ताजे आँवले चबाकर खाने से या उसके रसपान से लाभ होता है। ठंडी के मौसम में 3-4 महीने तक रोज 2-3 ताजे आँवले का रस सुबह खाली पेट पीने से शरीर की सुस्ती व कमजोरी दूर होती है। बुखार में आँवले के रस का सेवन करने से मरीज को कमजोरी नहीं आती।
सुबह खाली पेट आँवले का सेवन करने से अधिक लाभ होता है। इससे हल्का बुखार, प्यास, जलन मिटती है। दाल-सब्जी पकाते समय उसमें आँवला डालकर उबालने से भी उसकी पौष्टिकता में वृद्धि होती है। कैंसर तथा टी.बी. जैसी खतरनाक व्याधियाँ भी आँवले के उपयोग से रोकी जा सकती हैं। स्नान करते समय आँवलों के चूर्ण का गाढ़ा घोल या उनका ताजा रस लगाकर स्नान करने से शरीर में निखार आता है और बाल रेशम जैसे मुलायम हो जाते हैं।
”जो मनुष्य आँवले के फल और तुलसीदल से मिश्रित जल से स्नान करता है, उसे गंगास्नान का फल मिलता है।” (पद्म पुराण, उत्तर खण्ड)
भोजन के पहले 1-2 हरे आँवले खाने से पाचनशक्ति बढ़ती है। भोजन के बीच-बीच में हरे आँवले के टुकड़े चबाकर खाने से पाचनक्रिया में सहायता मिलती है। भोजन के बाद आँवले खाने से अम्लपित्त के कारण पेट तथा गले में होने वाली जलन शांत होती है।
सावधानीः प्रसूता स्त्रियों को आँवले नहीं खाने चाहिए। अतिशय ठंडे वातावरण में शीत और नाजुक प्रकृतिवाले व्यक्तियों को कच्चे आँवले या उनके रस का उपयोग नहीं करना चाहिए।
आँवले अत्यन्त शीतल होते हैं अतः सर्दी, खाँसी, कृमि, गठिया, बुखार, मंदाग्नि आदि आम, कफ व शीत प्रधान व्याधियों में मिश्री मिली हुई आँवले की सामग्रियों का त्याग करें। ऐसे व्यक्तियों को आँवले को गर्म करके या उष्ण-तीक्ष्ण द्रव्यों के साथ (जैसे चटनी बना के) उपयोग करना चाहिए।
औषधीय प्रयोग
जो मनुष्य आँवले का रस 10 से 15 मि.ली. शहद 10 से 15 ग्राम, मिश्री 10 से 15 ग्राम और घी 20 ग्राम मिलाकर चाटता है तथा पथ्य भोजन करता है, उससे वृद्धावस्था दूर रहती है।
हर्र, बहेड़ा, आँवला, घी-मिश्री संग खाय।
हाथी दाबै बगल में, तीन कोस ले जाय।।
हर्र, बहेड़ा, आँवला, जो शहद में खाय।
काँख चाप गजराज को, पाँच कोस ले जाय।।
हर्र, बहेड़ा, आँवला, चौथी डाल गिलोय।
पंचम जीरा डाल के, निर्मल काया होय।।
इस प्रयोग से शरीर में गर्मी, रक्त, चमड़ी तथा अम्लपित्त के रोग दूर होते हैं और शक्ति मिलती है। आँवला घृतकुमारी के संग पीने से पित्त का नाश होता है।
15-20 मि.ली. आँवलों का रस तथा एक चम्मच शहद मिलाकर चाटने से आँखों की रोशनी वृद्धि होती है। सर्दी या कफ की तकलीफ हो तो आँवले के 15-20 मि.ली. रस या 1 ग्राम (पाव चम्मच) चूर्ण में 1 ग्राम हल्दी मिलाकर लें।1-2 आँवले और 10-20 ग्राम काले तिल रोज सुबह चबाकर खाने से स्मरणशक्ति तेज हो जाती है।
आँवले का रस और शुद्ध शहद समान मात्रा में लेकर मिला लें। इस मिश्रण को प्रतिदिन रात के समय आँखों में आँजने से आँखों का धुँधलापन कम हो जाता है। इस मिश्रण को पीने से भी फायदा होता है।
मैले दाँत चमकाने हों तो दाँतों पर आँवले के रस से मालिश करें। आँवले के रस में सरसों का तेल मिलाकर मसूड़ों पर हलकी मालिश करने से भी बहुत फायदा होता है।
250 ग्राम आँवले के चूर्ण में 50 ग्राम लहसुन पीसकर यह मिश्रण शहद में डुबाकर पंद्रह दिन तक धूप में रखें। उसके पश्चात हर रोज एक चम्मच मिश्रण खा लें। यह एक उत्तम हृदय-पोषक है। यह प्रयोग हृदय को मजबूत बनाने वाला एक सरल इलाज है।
रक्तचाप, हृदय का बढ़ना, मानसिक तनाव (डिप्रेशन), अनिद्रा जैसे रोगों में 20 ग्राम गाजर के रस के साथ 40 ग्राम आँवले का रस लेना चाहिए।
आधा भोजन करने के पश्चात हरे आँवलों का 30 ग्राम रस आधा गिलास पानी में मिलाकर पी लें। फिर शेष आधा भोजन करें। यह प्रयोग 21 दिन तक करें। इससे हृदय व मस्तिष्क की कमजोरी दूर होती है तथा स्वास्थ्य सुधरता है।
सूखे आँवले तथा सूखा धनिया समान मात्रा में लेकर रात को कुल्हड़ में इकट्ठे भिगो दें। सुबह छान के मिश्री मिलाकर पियें। इससे पेशाब की जलन दूर होती है तथा मूत्ररोगों में लाभ होता है।
दो चम्मच कच्चे आँवले का रस और दो चम्मच कच्ची हल्दी का रस शहद के साथ लेने से प्रमेह मिट जाता है। कुछ दिनों तक प्रयोग करने से मधुमेह नियंत्रण में आ जाता है तथा सभी तरह के मूत्र-विकारों से छुटकारा मिल जाता है।
आँवले का चूर्ण गोमूत्र में घोंटकर शरीर पर लगाने से तुरंत पित्तियाँ दब जाती हैं।
आप सभी मित्रों, शुभेच्छुओं तथा समस्त भूमंडलवासियों को अक्षय नवमी की हार्दिक बधाई एवं अनंत शुभकामनाएं !!!