कहीं देर ना हो जाए!

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डॉक्टर भुवनेश्वर गर्ग

घरों में सिमटा, नियम संयम से जीता मानव क्या अब ये समझने के किए तैयार हो गया है कि, करोना संकट मानव जाति के लिए करुणा के सबक लेकर आया है ?

भयाक्रांत मानव, डर से ही सही, लेकिन बेजुबानो, धरा और पर्यावरण के लिए सहिष्णु हो चला है और यह तो अब आपदा से उबर जाने के बाद, आनेवाला कालखंड ही बताएगा कि मानव ने वाकई सबक सीखा और स्थायी दयालुत्व को प्राप्त हुआ अथवा नहीं क्योंकि इससे भी भयानक आपदाएं पहले आ चुकी हैं और तब कम संसाधनों के बावजूद, सोशल डिस्टेंसिंग के चलते मानव जाति भयंकर जानमाल पशुधन के नुक्सान के बावजूद हर बार उठ खड़ी हुई थी। लेकिन फिर भी उसने सबक नहीं सीखे और बेजुबानों, मजबूर प्राणियों, पर्यावरण, पेयजल स्त्रोतों का ना तो ध्यान रखा और ना ही उनके संरक्षण का कोई सामजिक सशक्त प्रयास ही किया।

करोना उर्फ़ COVID १९ उर्फ़ सार्स करोना श्रृंखला का सातवां वायरस, चीन के कुत्सित इरादों का प्रतिफल और अभिशाप है। दुनिया के लिए, सैकड़ों अन्य वाणिज्यिक हथियार, युद्ध हथियार और केमिकल हथियारों की तरह यह भी एक हथियार ही है और सम्पूर्ण जगत को, प्राणियों को, इसका तांडव झेलना पड़ रहा है।

यह एक प्रकृति या ईश्वरीय कहर है या मानव रचित विषाक्त हथियार। यह बहस अब बेमानी हो चली है लेकिन कितनी बड़ी विडंबना है कि 1347–1352 में जब चूहों से जानलेवा प्लेग फैला था तब शुरुआत और सबसे गंभीर जानमाल के नुकसान इटली ने ही झेले थे, अठ्ठारहवीं सदी में यलो फीवर की महामारी और उन्नीसवीं सदी में कोलेरा भी इसी भूभाग से फैला, 1918 में खूनी इन्फ्लुएंजा ने तो इस क्षेत्र को बेदम कर दिया था और आज भी करोना का मारा इटली ही मौत के मुहाने पर खड़ा नेस्तनाबूद हो चुका है। जो यह बार-बार सत्यापित करता है कि साफ़ सफाई, शुद्ध पेयजल, नियम और संयम, पौष्टिक शुद्ध भोजन सोशियल डिस्टेंसिंग के ढेरों मायने हैं, धरा और पर्यावरण के संरक्षण के साथ।

लेकिन क्या सब कुछ ख़तम होने की कगार पर है ?
दुनिया को भरमाने और राज करने, खुद को अजर अमर समझने वाले बड़े बड़े सूरमा, राज्य और राष्ट्र एक छोटे से, ना दिखाई देने वाले वायरस के हाथों बुरी तरह मात खाये हुए हैं, त्राहिमाम त्राहिमाम कर रहे हैं। लेकिन इन सबसे ना घबरा, चंद ढीठ मानव इस बीमारी में भी बाजार देख रहे हैं और अपने लिए, अपनी नस्लों के लिए करुणा की जगह करोना को तवज्जो दे रहे हैं। गोया कि सब कुछ अपने साथ ले जाने वाले हैं ।

भारत जैसे विशाल भूभाग और विशालतम जनसंख्या वाले सबसे बड़े डेमोक्रेटिक देश में तो स्थिति और भी बदतर हो सकती है क्योंकि वोटबेंकिय राजनीति के चलते ना तो क्वालिटी जनसँख्या पर ध्यान दिया जा रहा है और ना ही बेजुबानों, पर्यावरण, पेयजल स्त्रोतों और वृक्षारोपण पर। सब कुछ मानो भीड़तंत्र और धनबल के हाथो बिका हुआ, सक्षम लूटने को बेकरार है और सरकारें कर्मठ देशभक्तों को चूस, मुफ्तखोरों का पेट भरने को लालायित।

पर कुदरत भारत के गरीब, ईमानदार मेहनकश लोगों पर मेहरबान भी दिखती है, अगर ऐसा नहीं होता तो क्यों विश्व के धनाढ्य, विकसित, अतिशिक्षित देशो में इतनी मौतें हो रही होती और भारत जैसे गरीब देश में इतनी कम जबकि यहाँ पर केजरीवाल जैसे अराजक और मौलानाओं जैसे कूपमंडूक अपनी हरकतों से बाज नहीं आ आ रहे हैं ?
इनके कुत्सित प्रयासों के बावजूद भारत ना सिर्फ अपने दम पर पूरी ताकत से खड़ा है बल्कि अल्प संसाधनो के बावजूद इस अदृश्य महादानव से लड़ भी रहा है। और इसमें उसकी मदद कर रहे हैं, उसकी संयम, नीति और नियम से रहने की आदत और सीमित संसाधनों के बावजूद लड़ने, सर्वाइव करने की दृढ़ इच्छाशक्ति। साथ ही ईश्वरप्रदत्त उसकी इम्मुनिटी और मददगार mRNA जो उसके शरीर को बीमारी से लड़ने की ताकत दे रहे हैं, अधिकाँश को बचपन में टीबी का टीका भी लगा हुआ है, वो भी बचाव कर रहा है इस कीटाणु से लड़ने में लेकिन देश और देश के पालनहार उस आगामी महामारी को समझ नहीं पा रहे हैं जो आने वाले समय में इस बीमारी से संक्रमित लोगों के “केरियर स्टेज“ बने रहने से होगी क्योंकि इन मरीजों से ना सिर्फ वातावरण दूषित होता रहेगा बल्कि इनके मलनिकास के जरिये वायरस पेयजल स्त्रोतों को भी दूषित करता रहेगा।

यहाँ एक बार फिर यह बताना बेहद जरुरी है कि, इस वायरस से सर्दी, जुखाम, बुखार, शरीर दर्द, खांसी, सांस लेने में तकलीफ के अलावा सरदर्द और अंत में निमोनिया से मृत्यु होती है यह तो सबको पता ही हैं लेकिन यह वायरस फीको ओरल रुट (अर्थात भोजन नलिका के जरिये मलनिकास द्वारा) के जरिये भी आपके पेय जल को दूषित कर फ़ैल सकता है और सांस के लक्षणों से पहले मरीज को उलटी दस्त, पेट में दर्द मरोड़, पीलिया हो सकता है, यहाँ तक कि लिवर भी खराब हो सकता है।

अर्थात मानव को खांसी, छींक के जरिये ड्रॉपलेट के संपर्क में आने से बचने के सारे प्रयास, जैसे मास्क पहनना, भीड़ में ना जाना, बार-बार हाथ धोना, कंम्यूनिटी फैलाव रोकने के लिए संभावित लोगों को खुद को आइसोलेट तो करना ही चाहिए। लेकिन अब यह भी आवश्यक हो गया है कि जनता पूरी ताकत से अपने पेय जल स्त्रोतों को भी सुरक्षित करे, करवाए और सरकारें, अदालतें जलसंक्रमण को गंभीर अपराध घोषित करें।

कोई सुन रहा है क्या ? आदरणीय प्रधानमंत्रीजी, सीजेआई साहब और हमारे मामाजी उर्फ़ शिवराजजी, महाराज जी। इसके पहले की कहीं देर हो जाए, संज्ञान ले लीजिये।


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