“यह वह प्रदेश तो नहीं और दस्तक” पुस्तक का लोकार्पण, कुलपति रांची विश्वविद्यालय द्वारा

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डॉ अजय ओझा।

33 साल बाद रांची विश्वविद्यालय के 1984-86 बैच के छात्रों के सुनहरे पल की किताब पढ़ना होगा रोचक।

रांची, 13 मार्च : रांची विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के एलुमनी द्वारा लिखी एक विशेष पुस्तक यह वह रांची प्रदेश तो नहीं एवं दूसरी पुस्तक दस्तक का लोकार्पण शनिवार को रांची प्रेस क्लब सभागार में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल रांची विश्वविद्यालय की कुलपति कामिनी कुमार, प्रसिद्ध आलोचक रविभूषण, लेखक रणेंद्र, डॉ कमल बोस, डॉ जगबहादुर पांडे, हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ हीरा नंदन, पुस्तक के संपादक देवेंद्र चौबे, नुपूर जयसवाल, संजय करूणेष, नील नितिन खेतान समेत अन्य लेखक व साहित्यकासरों ने मिल कर दोनों तुस्तकों का लोकार्पण किया। संचालन संजय करूणेष एवं नुपूर जायसवाल ने किया। किताब में लिखी बातें बचपन की यादों को तरोताजा करती पुस्तक यह वह प्रदेश तो नहीं का वर्णय करते हुए मुख्य अतिथि कुलपति कामिनी कुमार ने कहा कि इस पुस्तक को रांची विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के 1984-86 के बैच के छात्रों ने अपने उस समय के विश्वविद्यालय की बातों, उस पल की रांची, शिक्षा प्राप्त करने के सुनहरे पल को छात्रों के समूह ने पिरों कर किताब के रूप में प्रस्तुत किया है। इस किताब में हिंदी विभाग की यादा हैं। यह किताब विषय से हट कर है। इसे पूरा पढ़ना रोचक होगा। 33 वर्ष बाद छात्र अपने विश्वविद्यालय आये कहा रांची बदली हुई लग रही है। यह केवल एक पुस्तक नहीं पुरानी यादे हैं। बचपन के पल हैं, जिसे पढ़ते ऐसा लगेगा मानो कल में बैठे हम बाते कर रहे हैं। आज देख कर कितना अच्छा लग रहा है। रांची विश्वविद्यालय के छात्र इतने लंबे समय के बाद आये और अपने उस पल की यादों को फिर से तरो ताजा कर दिया यह अपने आप में बड़ी बात है। विश्वविद्यालय के पल वह सुनहरे पल बचपन के दिन को आदमी कभी भुलता नहीं है। शरीर से बुढ़ी जरूर हो गई मगर मन आज भी युवा है। ऐसी यादों की पुस्तक का लोकार्पण सच में सुहाना है। आने वाले रंगो की होली की सभी को ढेरों शुभकामनाएं।

पुस्तक को रांची विवि के पुस्तक मेले में लगायेंगे

कामिनी कुमार ने कहा कि झारखंड बनने से पूर्व फंडिंग की समस्या थी। किंतु राज्य गठन के बाद रांची विश्वविद्यालय की फंडिंग अच्छी हो गई। रांची एकेडमी विभाग कर रही है। 30 विभाग हैं। 32 वोकेशनल कोर्स हैं। 365 दिनों में 230 परीक्षाएं हम लेंते हैं। अपना विश्वविद्यालय हर क्षेत्र में विकसित हो रहा है। जनजातिय भाषा विभाग की स्थापना की है। राज्य सरकार का विकास में पूरा सहयोग मिल रहा है। जेएसबीसीसीएल के सहयोग से इमारतों का निर्माण कार्य कराया जाता है।

हम डीपीआर बना कर देते हैं। वे निर्माण् कार्य पूरा कर हमे सौंपदेते हैं। पुस्तक के एलुमनी का रजिस्ट्रेशन नहीं कराये हैं, तो जरूर करा लें। यदि नहीं हुआ है, तो करा लें। जल्द ही रांची विश्वविद्यालय का पुस्तक मेला लगने वाला है। इन दोनों पुस्तकों को भी मेले में लगाया जायेगा। पूरी रांची जाने 1984 बैच की लिखी सुनहरी पल की रोचक कहानी।

इन्होंने लिखी पुस्तक

दिग्विजय महाविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ शंकर मुनि राय, संपादक देवेंद्र चौबे, नूपुर जायसवाल, लेखक संजय करुणेश, साहित्यकार मेहरुन्निसा अब्दाली, अशोक कुमार, दिनेश्वर प्रसाद स्वर्णकार, अवधेश कुमार सिंह, आनंद कुमार सिंह, नीलरतन
खेतान, हीरानंद प्रसाद, निहारिका सिन्हा ने मिल कर किताब लिखा है।

किताब में यादों का पल : देवेंद्र

जेएनयू के देवेंद्र कुमार चौबे ने कहा कि इस किताब के जरीये 1984-86 बैच के छात्रों ने उस पल की यादों को अपने अपने अनोखे अंदाज में पुस्तक के रूप में परोसा है। आज इस पुस्तक के लोकार्पण के मौके पर इतने लंबे समय के बाद अपने गुरूजनों व शिक्षिकों को सामने देख कर यह पल किसी अलबेले पल से कम नहीं है। इन्हें देखते ही पूरानी यादों की जीवंत झलक खुदबखुद सामने उभर कर आ रही है। जो देखते ही बन रही। हमारे लेखक दोस्तों में एक दोस्त हिंदी वि•ााग के अध्यक्ष बन गए, यह गर्व का पल है। किताब के हिले बहाने एक छत के नीचे आज सारे पुराने दोस्त जुटे हैं। इससे बड़ी और क्या बात होगी।

यह किताब यादों का एक खूबसूरत एलबम : डॉ कमल

डॉ कमल बोस ने कहा कि अपने पढ़ाये छात्रों का इतने लंबे अरसे के बाद देखने और रोचक पल की बातों को किताब में पिरो कर पेश करने का ढंग बहोत बूख है। यह किताब यादों का एक खूबसूरत एलबम है। उन यादों को याद कर जिंदगी यादगार बनती है। अच्छा लगता है, आप जैसे लोगों को कभी हमने पढ़ाया है। कितने पलों से बैठा था इस पल के लिए आज वह अलबेला पल आया। जिंदगी फिर से झुम उठी।


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