पैकेज एक छलावा

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देश की जीडीपी 200लाख करोड़ की है , जिसमें 150लाख करोड़ मनमोहन ही छोड़कर गये  थे तो  6/7साल में मात्र 30%बढ़ी वैसे कोई धन उसी पुराने सिस्टम से चलता रहे तो भी 6/7साल में 50%तो बढ़ ही जाता है पर उस सिस्टम में छेड़छाड़ करते हुए साहेब ने नोटबंदी और जटिल जी एस टी का फैसला कर उस 50%की बढ़त को 30%तक पहुंचा दिए बाकी जब 200लाख करोड़ की जीडीपी से देश का बजट 30लाख करोड़ का वार्षिक पेश हुआ 2020/2021का जिसमें 20लाख करोड़ , इंफ्रास्ट्रक्चर बजट है यानि सड़क हाईवे अस्पताल स्कूल बैंक लोन एम एस एम ई यानि सूक्ष्म लघु उद्योग, तो ये तो बजट प्राविधान है ही जो इतना पिछले बजट में भी खर्च हुआ ही था तो उसी बजट को ,आत्म निर्भर अभियान, नाम देकर एक आर्थिक पैकेज नाम से घोषित करना कौन सा नयापन है सिर्फ नाम देना ही नयापन है ,या मूर्ख बनाने का एक तिलिस्म ,जब इतना धन पिछले बजट में खर्च होने के बावजूद हमारी जीडीपी शून्य से 3/4%के इर्द गिर्द घूमती रही तो इस साल भी उतना ही खर्च करके हम किस चमत्कार की उम्मीद लगाए बैठे हैं वो भी सीधे  कोरोना संकट का भी कोई पैकेज नहीं ,एक बाजीगरी और हुई कि उसी बजट से 1लाख सत्तर हजार करोड़ ,अभी एक माह पहले पैकेज के रूप में दिए गये वो भी अलग से नहीं बल्कि उसी धन से तो जाहिर सी बात है कि कोई न कोई प्रोजेक्ट लगभग 2लाख करोड़ का लटकेगा जिसका लाभ काम करने वाले मजदूरों या कर्मचारियों को मिलता ही ,पर वो भी हाथ से गया ,यदि मनरेगा कर्मियों या जनधन खाताधारकों को पैसा देना ही था तो निर्धारित प्रोजेक्ट्स से छेड़छाड़ किये बिना दिया गया होता जिससे  किसी अन्य का हक भी न मारा जाता,कुल मिलाकर गांव में एक कहावत है कि बैठी बानिन का करैं, तो एह कोठिला के धान वोह कोठिला करैं ,  तो ये देश कब तक ठगा जाता रहेगा ,किसी सुधार की संभावना फिर भी नजर नहीं आ रही ,जब तक लिक्विडिटी यानि कैश तरलता मार्केट में नहीं आती स्थिति ज़्यो की त्यों बनी रहेगी 52%नौकरियां जाने का खतरा एक्सपर्ट द्वारा जो अनुमानित है वो दिख रहा ,एक प्रयास रिजर्व बैंक द्वारा किया गया जो बैंकों में पैसा डालकर लोन के जरिए कैश मार्केट में लाकर लिक्विडिटी यानि कैश तरलता बढ़ाई जा सके वो भी इसलिए फेल रहा कि लोन लेने वाले आगे आ ही नहीं रहे क्योंकि लोन लेकर जो भी उपक्रम करें तो मांग बढ़ने पर ही लोन की अदायगी संभव होगी खपत ही नहीं तो वो लोन लेकर अदायगी कैसे करें इस संकट की वजह से लोन मांग न बढ़ने से लिक्विडिटी संभव ही नहीं हो पा रही है ,लब्बो लुआब राहुल फार्मूला ,न्याय योजना ,के तहत जब तक सीधे खाते में कैश नहीं आता तब तक लिक्विडिटी की न तो संभावना है न ही क्रय शक्ति बढ़ने की,आखिर किसान सम्मान निधि और जनधन खाते में सीधे पैसा डालना भी तो राहुल के न्याय योजना का ही अंग है तो फिर एमांउंट बढ़ाने में संकोच क्यो,जब बड़े अर्थ शास्त्री रघुराम राजन ,और अभिजित बनर्जी जैसे लोग भी सीधे कैश ट्रांसफर की वकालत कर चुके तो सरकार की हिचकिचाहट समझ से परे ,कैश ट्रांसफर कर उनसे जनहित के कोई काम चाहे सर्वे ही हों लिए जायं इसमें कोई बुराई भी नहीं एंप्लाइमेंट भी जेनरेट होगा।

राजनाथ तिवारी,  अध्यक्ष ( बुद्धिजीवी विचार मंच)


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