बेटा नहीं तो क्या गम है, बेटियाँ कहाँ किसी से कम हैं
पिता के शव को बेटियों का कंधा, दी मुखाग्नि।
शिव नारायण त्रिपाठी।

शहडोल। चाहे बेटियां कितनी भी हों पर एक बेटा जरूर हो अब यह सोच समाज में बदलने लगा है। सीमित परिवार हम दो हमारे दो की सोच वाले इस दौर में भी आज एक बेटा जरूरी है जैसी बातें बेमानी होने लगी हैं। बदलती सोच के कारण आज समाज में लड़का लड़की के बीच का भेद मिटता जा रहा है और वह सारे कार्य जो कभी सिर्फ लड़कों के लिए ही माने जाते थे अब लड़कियां भी कर रही हैं। परिवार में होने वाले धार्मिक व कर्मकांड के लिए जहां पहले लड़कों का होना बहुत जरूरी समझा जाता था अब सामाजिक बदलाव के इस दौर में यह भी देखने को मिल रहा है कि बेटा नहीं होने पर बेटियां अपने पिता के शव को कंधा और उनकी चिता को मुखाग्नि भी देती हैं। ऐसा ही कुछ गत दिवस धनपुरी नगर में देखने को मिला, जहां एक 72 वर्षीय बुजुर्ग की मौत के बाद उसकी बेटी ने मुखाग्नि दी।

धनपुरी के विलियस में रहने वाले 72 वर्षीय एक सेवानिवृत्त कालरी कर्मी रमेश प्रसाद महोबिया की लंबी बीमारी के बाद शुक्रवार शाम मौत हो गई । रमेश के तीन बेटियाँ हैं बेटा एक भी नहीं है। ऐसे में पिता की मौत पर बेटियों ने बेटे का फर्ज निभाते हुए न केवल पिता की अर्थी को कंधा दिया अपितु घाट जाकर एक बेटी ने मुखाग्नि भी दी।