बेनी बाबूः राजनीति के शलाका पुरुष
डॉ. अनुरुद्ध वर्मा
प्रदेश एवं देश के राजनीतिक क्षितिज पर लम्बे समय तक छाये रहे बाबू बेनी प्रसाद वर्मा का गत 27 मार्च 2920 को निधन हो गया। राजनीति में अपनी मेहनत, संघर्ष, संगठन क्षमता एवं राजनीतिक कौशल के दम पर उन्होंने ऊंचाईयां प्राप्त की। 11 फरवरी 1941 को बाराबंकी के सरौली गौसपुर में किसान परिवार में जन्मे बेनी प्रसाद वर्मा जी ने प्रारम्भिक शिक्षा गांव एवं बदोसराएँ से प्राप्त करने के बाद बीए एवं एलएलबी की उपाधि लखनऊ विश्वविद्यालय से प्राप्त की।उन्होंने सार्वजनिक, सामाजिक जीवन की शुरूआत बुढ़वल गन्ना मिल की गन्ना यूनियन से प्रारंभ की थी। युवा, तेजतर्रार, कर्मठ एवं संगठन क्षमता के कारण 1973 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने उन्हें दरियाबाद विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी बनाया और वह कांग्रेस की लहर के बावजूद चुनाव जीत गये। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा तथा लगातार सफलता की सीढ़ियां पार करते रहे। आपातकाल में 1975 से लेकर 1977 तक वह संगठन को मजबूत करते रहे और आपातकाल का विरोध करते रहे। आपातकाल की समाप्ति के बाद 1977 में जनता जनता पार्टी का गठन हुआ और उनकी राजनीतिक प्रतिभा को देखते हुये पार्टी ने उन्हें उस समय की कांग्रेस पार्टी की कद्दावर नेत्री मोहसिना किदवई के सामने मसौली विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी बनाया।चुनाव में उन्होंने भारी मतों से जीत हासिल की। जनता पार्टी नेतृत्व ने उनके संगठन कौशल को देखते हुये उन्हें पार्टी के प्रदेश महासचिव पद की जिम्मेदारी दी। बाद में उन्हें जेल एवम गन्ना जैसे महत्वपूर्ण विभागों का मंत्री बनाया गया। इस दौरान उन्होंने मानवीय दृष्टिकोण को देखते हुये कैदियों की सुविधाओं को बढ़ाया। साथ ही गन्ना किसानों का मिलों पर बकाया के भुगतान कराकर किसानों में अपार लोकप्रियता अर्जित की। उनके निर्णयों की राजनीतिक क्षेत्रों में काफी सराहना हुई।जनता पार्टी के बाद चौधरी चरण सिंह ने लोकदल का गठन किया और 1980 के विधानसभा चुनाव में असफल होने के बाद पार्टी ने उन्हें लोकदल का प्रदेश का मुख्य महासचिव बनाया और उन्होंने पूरे प्रदेश में दल को मजबूत किया। लोकदल नेतृत्व ने फिर उनपर भरोसा जताया और 1985 उन्हें मसौली विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी बनाया। वह भारी मतों से चुनाव जीते तथा उन्हें मंत्रिमंडल में लोक निर्माण, संसदीय कार्य जैसे महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी दी गई। वह प्रदेश में मुलायम सिंह के बाद दूसरे नम्बर के ताकतवर नेता के रूप में स्थापित हुये। वर्ष 1991 में वह फिर मसौली विधानसभा से चुने गए और फिर मंत्री बने। 1996 में वह कैसरगंज से सांसद चुने गए और केंद्र में संचार राज्यमंत्री तथा बाद में कैबिनेट मंत्री बने। इस कार्यकाल के दौरान उन्होंने पूरे देश में संचार क्रांति ला दी। 1998 में वह फिर कैसरगंज से सांसद चुने गये। वर्ष 1999 में उन्होंने कौसरगंज से तीसरी बार जीत दर्ज की। बाराबंकी-कैसरगंज लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से 2004 में चौदहवीं लोकसभा का चुनाव भारी मतों जीते। मुलायम सिंह यादव से मतभेदों के कारण समाजवादी पार्टी छोड़कर वे कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए और 2009 में गोंडा लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीतकर इस्पात मंत्रालय के स्वतंत्र प्रभार के राज्य एवं कैबिनेट मंत्री बने। 2016 में कांग्रेस से उनका मोहभंग हो गया और वह फिर समाजवादी पार्टी में शामिल हो गये, जिसकी स्थापना में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।वे कट्टर समाजवादी सोच के नेता थे। अपनी बात पर अडिग रहने वाले वर्मा जी ने अपने हिसाब से राजनीति की। बिना किसी की परवाह किये हमेशा अपनी बात बेबाकी से कहते थे। वह विशिष्ठ कार्यशैली वाले जमीनी नेता थे। वे लाग-लपेट वाले नेता नहीं थे, स्पष्ट बात कहते थे परंतु दिल में कुछ नहीं रखते थे। मन से बहुत उदार थे, जिसको डांट देते थे उसका काम जरूर करते थे। प्रशासनिक क्षमता के धनी बेनी प्रसाद जी केंद्र एवं राज्य के जिस भी विभाग में मंत्री रहे उस विभाग पर उनकी जबरदस्त पकड़ थी। सार्वजनिक कार्यों के प्रति उनकी संवेदनशीलता बहुत अधिक थी। उन्होंने बाराबंकी में स्कूलों, अस्पतालों, सड़कों एवं टेलीफोन का जाल बिछाकर उसे विकास की मुख्यधारा में शामिल किया। वे बाराबंकी में विकास के पर्याय थे। आखिरी समय तक वह बाराबंकी के लिए चिंतित रहे। ऐसे राजनेता का हमारे मध्य से जाना अपूरणीय राष्ट्रीय क्षति है क्योंकि उनके जैसे जनसरोकार से जुड़े नेता बार-बार जन्म नहीं लेते। विकास पुरुष के रूप में वे हमेशा याद किये जाते रहेंगे।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)