बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत के आत्मनिर्भर होने में रोड़ा?
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 मई को कोरोना महामारी के दौरान प्रभावित देश के लिए 20 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा करते हुए उसे आत्मनिर्भर भारत अभियान का नाम दिया उन्होंने कहा कि आत्म निर्भर भारत का तात्पर्य है कि देश अपने श्रम और अपने उत्पादों पर निर्भर हो उन्होंने कहा की ये भयंकर महामारी आपदा के तौर पर नहीं बल्कि एक अवसर के रूप में देखी जानी चाहिए, उन्होंने 20 लाख करोड़ के पैकेज को भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए रिवाइटल करार दिया आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज को घोषणा करते हुए उन्होंने बार-बर लोकल फार वोकल शब्द का प्रयोग किया परंतु इन शब्दों और वाक्यों की सार्थकता क्या तब तक बरकरार रह सकती है जब तक की भारत के छोटे-छोटे उद्योग धंधों के द्वारा किए जा सकने वाले कार्यों को लाखों-करोड़ों रुपए की कंपनियां करें। मेरा तात्पर्य यह है कि क्या हम ऐसी व्यवस्था नहीं बना सकते जहां पर लघु उद्योगों के द्वारा जिन उत्पादों को निर्मित किया जा सकता है वह उन्हीं के लिए आरक्षित कर दिया जाए क्योंकि यह लघु उद्योग मूल रूप से भारतीय ही होंगे और यह अधिक से अधिक रोजगार का निर्माण भी करेंगे कहने का तात्पर्य यह है कि इस तरह के कार्यों में भारत के ही किसान श्रमिकों और उद्यमियों को लाभ होगा और अधिक से अधिक लोगों को रोजगार मिलेगा तब जाकर के भारत आत्मनिर्भर हो सकेगा उदाहरण के लिए यदि घी, दही, मट्ठा जैसे उत्पादों को बनाने के लिए हम मल्टीनेशनल अथवा हजारों करोड़ की कंपनियों को प्रतिबंधित कर दें तब हमारे किसान श्रमिक और उद्यमियों का ही लाभ होगा हालांकि इसके पीछे यह तर्क दिया जा सकता है कि मल्टीनेशनल अथवा बड़ी कंपनियों के उत्पाद इन घरेलू उत्पाद की अपेक्षा सस्ते होते हैं तो इन घरेलू उद्योगों द्वारा लिए गए लाभ को जो उपभोक्ता के द्वारा चुकाया जाएगा उसको हम एक तरह का रोजगार टैक्स मान सकते हैं क्योंकि मल्टीनेशनल अथवा बड़ी कंपनियां श्रम का कम से कम उपयोग करती हैं क्योंकि उनकी प्राथमिकता लाभ कमाना होता है। वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ अग्निहोत्री के शब्दों में यदि कहा जाए तो सत्तू, अचार ,चटनी, मुरब्बा, ब्रेड, टॉफी ,चिप्स, शिकंजी, साबुन, नील, स्याही और बिस्किट बनाने का काम हिंदुस्तान की ही छोटी से छोटी कंपनियां करें ताकि देश में लोगों को रोजगार के साथ-साथ शुद्ध चीजें भी उपलब्ध हो सकें अन्यथा हम मल्टीनेशनल कंपनियों के उत्पाद को खरीदते रहेंगे और अपने देश के ही उद्यमियों से यह कहते रहेंगे कि आपका माल प्रतियोगी नहीं है। मक्के का फूला कब पापकार्न हो गया किसी को पता तक नहीं चला। इसी तरह जब से नेस्ले जैसी कंपनियां दही और मट्ठा बेचने लगी तब से शहरों में साइकिल से सुबह-सुबह दही बेचने वाला गायब हो गया। यह हमारे श्रम और उद्यम के साथ-साथ किसानों का ही नुकसान था परंतु हमने उसकी तरफ कभी ध्यान ही नहीं दिया । परंतु अभी भी संभव है कि हम धीरे धीरे अच्छी स्थिति में पहुंच जाएं परंतु शायद ही कोई उद्यमी अपना गांव और शहर बेचकर भी उन मल्टीनेशनल कंपनियों के साथ प्रतियोगिता कर सके इसलिए हमें इन मल्टीनेशनल कंपनियों को प्रतियोगिता से ही बाहर करके आत्मनिर्भर भारत की तरफ एक बड़ा कदम बढ़ाना चाहिए। इस तरह से हम अपने व्यापार और अपने घरेलू व्यापारियों को बचा सकते हैं। परंतु जब तक हम शेयर मार्केट की कंपनी को दही मट्ठा और घी बनाने देंगे तब तक भारत आत्मनिर्भर कैसे होगा? हमें यह बात स्वीकार करनी चाहिए कि आज भी हमारे गांव बेरोजगारी की समस्या का समाधान करने के लिए सक्षम हैं एक ऐसा भी समय था जब गांव में हर एक व्यक्ति के पास कोई ना कोई काम था कोई मिट्टी का बर्तन बनाता था कोई पत्तल बनाता था कोई सब्जी पैदा करता था कोई अन्य तरह का कार्य करता था और सभी एक दूसरे में आदान प्रदान करते थे इस तरह के कार्यों को करने के बाद लोग ना केवल अपना जीवन यापन करते थे बल्कि कुछ ना कुछ धन की बचत भी करते थे परंतु धीरे-धीरे हमारी परंपरा भी खत्म होती गई और उसमें बड़ा योगदान इन मल्टीनेशनल कंपनियों के साथ-साथ भारत की भी बड़ी-बड़ी कंपनियों का रहा पिछले 3 महीनों में बेरोजगारी की दर 3 गुना बढ़ गई है ऐसी स्थिति में भारत में लोगों के सामने रोजी रोटी का संकट आ खड़ा है इस आपदा को अवसर मानते हुए भारत सरकार को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 जिसके अनुसार देश के सभी नागरिकों को जीवन जीने और आजीविका के अधिकार की गारंटी है और अनुच्छेद 39(1 ) जो नागरिकों की आजीविका को सुरक्षित करने के लिए सरकार से पर्याप्त कदम उठाने की बात करता है इन अनुच्छेदों के आधार पर सरकार मल्टीनेशनल के साथ-साथ भारी भरकम राष्ट्रीय कंपनियों को उन छोटे उत्पादों को बनाने पर रोक लगा देनी चाहिए जिससे हमारे गांव मजबूत हो सके और वह आत्मनिर्भर हो सकें इसके बिना भारत कतई आत्मनिर्भर नहीं हो सकता क्योंकि भारत का छोटा उद्यमी शेयर मार्केट और मल्टीनेशनल कंपनियों के साथ प्रतियोगिता करने की स्थिति में ना तो पहले था और अब तो कतई नहीं है, मल्टीनेशनल कंपनियां बड़े-बड़े प्रोडक्ट और बड़े-बड़े निकायों पर कार्य करें।।
सौरभ सिंह सोमवंशी पत्रकार, प्रयागराज मो० 9696110069