बाबाओं और बाबुओं का देश
मूर्छा, संजीवनी बूटी का जिक्र, हजारों हजार साल से हमारे देश के धर्मग्रंथों, शास्त्रों, रामायण में वर्णित है, यही नहीं, चेचक के टीके हमारे देश में तेरहवीं शताब्दी में ही खोज लिए गए थे, लेकिन इतनी महत्वपूर्ण जानकारी का दस्तावेजीकरण और संस्थागत प्रचार प्रसार, पेटेंट न होने की वजह से, ना सिर्फ अंग्रेजों ने इस तकनीक को चुरा लिया बल्कि सन १८०२ में एडवर्ड जेनर नामक चोर ने इसे अपने नाम से पेटेंट भी करवा लिया और किताबों, मेडिकल जर्नल्स में भी उसका श्रेय अपने माथे कर लिया।
देश लुटता रहा, सम्पदाएँ, मूर्तियां, कलाकृतियां चोरी होती रहीं, देश को अकूत धन देने वाली बौद्धिक सम्पदाएँ भी चुराई जाती रहीं, सैकड़ों साल बाद यह और ऐसी ढेरों तकनीकें, विदेशी क्यूँ और कैसे देश के बाहर ले जाते रहे और अभी भी भारत का ब्रिलिएंट दिमाग और बौद्धिक क्षमता लगातार चुराई, छीनी और हड़पी जाती रही है, क्या अब भी इस बारे में सोचा नहीं जाना चाहिए?
कौन जिम्मेदार है इस योग्यता के साथ भेदभाव, बुनियादी मानवाधिकारों के हनन और इस लूट का?
यकीनन विदेशी लुटेरों से कहीं अधिक वो नेता जिम्मेदार हैं, जिन्होंने योग्य पर अयोग्य को तवज्जो देने, इस देश में बंटवारा और आरक्षण लागू किया।
क्या अब समय नहीं आ गया है कि फर्जी क्लेम्स करते बाबाओं और कंपनियों पर भी सख्त कार्यवाही हो? बाबा ने क्या बोलकर अनुमति ली, सर्दी जुखाम की दवा या इम्युनिटी बूस्टर ? और क्या करोना के उपचार के लिए खोजी जा रही दवाओं के प्रयोग हेतु नीति नियंताओं द्वारा बनाई गई चार श्रेणियों (उम्र ६० वर्ष से अधिक, शरीर के ऑक्सीजन का स्तर ९० से नीचे, अन्य बीमारियां, साँस लेने में तकलीफ) में से किसी में इन्होने काम किया ?
लोग कुतर्क में बाल झड़ने से बचाने, नए बाल उगाने या गोरा करने वाली क्रीमों के विज्ञापन का उल्लेख कर रहे हैं, वो भूल जाते हैं कि ज़रूरी और ग़ैर ज़रूरी में सिर्फ़ दो शब्दों का नही, जीवन मरण का अंतर है! अगर कोई कम्पनी OTC के अंतर्गत, न्यूनतम कागजी परमिशन्स के तहत ग़लतबयानी और झूठ के सहारे कोई प्रोडक्ट बेचती आई है, तो उसे ख़रीद कौन रहा था और विज्ञापित अपेक्षित फ़ायदा ना होने की सूरत में कितने लोगों ने इनके ख़िलाफ़ किसी भी तरह की कोई क़ानूनी कार्यवाही की? मूढ आत्मज्ञानी लोग विदेशों का, जॉनसन का उदाहरण देकर भी अपनी मानसिकता जाहिर करने से बाज नही आ रहे, वो भूल जाते हैं कि वो अमेरिका है और वहाँ भूत भभूत वाले बाबाओं की नही, क़ानून की चलती है, गलती पाए जाने पर वहां क़ानून किसी की नही सुनता, जनता भी जागरूक है, लेकिन हमारे यहाँ, केश किंग नाम का बालों का तेल बेचने वाली कम्पनी का विज्ञापन जूही चावला करती हैं जबकि कम्पनी चलाने वाला उनका पति गंजा है। फेयर एन्ड लवली, सान्वलों, कालों को गोरा करने का दम्भ भरती है, कितने लोग उससे गोरे हुए? लेकिन बात फिर वही है कि किसने हिम्मत की सच सामने लाने की और जहमत उठाई इनके ख़िलाफ़ क़ानून का दरवाज़ा खटखटाने, अपना समय खोटी करने की ?
पर जहां जीवन मरण का प्रश्न खड़ा हो जाए और कोई बाबा बिलकुल ही उल्टा दावा करता दिखे, तब मापदंड तय करने वाली, कागजों पर परमीशन देने वाली भ्रष्ट संस्थाओं को जिम्मेदार ठहराकर इनके भ्रष्ट बाबुओं के साथ साथ, इन ढोंगीं बाबाओं को भी सबक सिखाया जाना चाहिए, केमरूँन देश के प्रमुख का यह ट्वीट निहसंदेह प्रशंसनीय है कि जो भी अपने प्रोडक्ट से करोना के शर्तिया इलाज का दावा करेगा, उसे खुद पहले करोंना से संक्रमित करवाया जाएगा और अगर वो अपने उपचार से ठीक हो गया तो सरकार उसकी पद्धति की सराहना करेगी और सारी मदद भी देगी और नही हुआ तो ….राम नाम सत्य ?
भारत के बाबाओं से भी बड़े बड़े बाबा थे केमरूँन में, इस घोषणा के पहले, सब ग़ायब हो गए। कुछ ऐसा ही अब भारत में भी करने की ज़रूरत है, लेकिन यहाँ सरकार, विशेषज्ञ और क़ानून तो अखाड़े से बाहर हैं पर बाबा अपने अंधभक्तों के साथ खुद ही भारतीय ज्ञानविज्ञान और ऐतिहासिक परम्पराओं को स्वाहा करता दिख रहा है।
मिलते हैं कल, बाबा के जादुई दावे के चक्कर में, फ़ूड में मिलावट वाली श्रृंखला में व्यवधान आ गया है, उसके लिए माफ़ी के साथ, शीघ्र ही उसे भी पूरा करेंगे तब तक के लिए जय श्रीराम।
डॉ भुवनेश्वर गर्ग
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डॉक्टर सर्जन, स्वतंत्र पत्रकार, लेखक, हेल्थ एडिटर, इन्नोवेटर, पर्यावरणविद, समाजसेवक
मंगलम हैल्थ फाउण्डेशन भारत
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