आजमगढ़ लाइफ लाइन हास्पिटल मुद्दे पर बोले हाईकोर्ट बार के पूर्व पदाधिकारी

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आजमगढ़ में कुछ दिनों पहले आईएमए ने लाइफलाइन अस्पताल के खिलाफ राज्य सरकार और केंद्र सरकार के नियमों का उल्लंघन करने पर लिखने पर शार्प रिपोर्टर के संपादक अरविंद कुमार सिंह के साथ-साथ अन्य के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था। जिस पर आजमगढ़ में व्यापक विरोध हो रहा है।आजमगढ़ की धरती का बवाल अब धीरे धीरे प्रदेश के बाकी जनपदों में भी चर्चा का विषय बनता चला जा रहा है कुछ दिनों पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट के अधिवक्ता अनिल सिंह बिसेन ने जनहित याचिका करने को कहा था अब इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व कोषाध्यक्ष राजकुमार सिंह भी इस मामले पर सामने आए हैं और उन्होंने पत्रकार अरविंद कुमार सिंह के साथ-साथ अन्य के खिलाफ किए गए मुकदमे की निंदा की है राजकुमार सिंह ने कहा है कि जिस तरह का कृत्य लाइफलाइन अस्पताल के साथ मिलकर आई एम ए ने किया है वह कृत्य शर्मनाक है और लाइफलाइन अस्पताल के कुकृत्यों को छिपाने की साजिश है इसे इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्ता कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे क्योंकि अस्पतालों के बारे में सभी को पता है कि किस तरह से यहां पर सरकारी नियमों का उल्लंघन किया जाता है उन्होंने अपने फेसबुक पर एक लंबी पोस्ट लिखी है जो इस प्रकार है।

समाज के सजग प्रहरी कलम के सिपाही पत्रकार डाक्टर अरविंद कुमार सिंह के विरुद्ध हो रहे अत्याचार का मुंह तोड़ जवाब दिया जाएगा ।आजमगढ़ की घटनाक्रम को मैं लगातार कई दिनों से देख रहा हूं। अस्पताल व आई एम ए आजमगढ़ की जिला इकाई द्वारा जिस तरह से जन सरोकारों की भावनाओं वह जनहित के मुद्दे को लगातार उठाने वाले देश के लब्ध प्रतिष्ठित पत्रकार के खिलाफ फर्जी मुकदमा आजमगढ़ जिला के पुलिस प्रशासन द्वारा लिखा गया है यह समाज के सजग प्रहरी, कलम के सिपाही पत्रकार के अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोटने का काम किया गया है। मुझे याद है सन 70 के दशक में जब देश में इंडिया इज इंदिरा इंदिरा इज इंडियाकहां जाता था तो तानाशाह हो चली गूंगी गुड़िया इंदिरा पत्रकारों पर व आम जनता पर जो जनमानस की बात करते थे के खिलाफ इमरजेंसी लागू कर दी थी। आगे क्या हुआ इतिहास साक्षी है। 25 जून 1975 को रात्रि में इंदिरा ने जब इमरजेंसी लागू की थी तो देश का आम जनमानस सड़क पर आ गया था।तानाशाही इंदिरा तमाम जन सरोकार से जुड़े हुए लोगों को 19 महीने की जेल में भेज दी थी।इतिहास साक्षी है कि 1977 में जनता पार्टी के नेतृत्व में गैर कांग्रेसवाद का नारा डॉक्टर लोहिया ने जो दिया था उस भावनाओं को लेकर हटवादी हो चुकी इंदिरा को उसकी राजनीतिक चूरे हिलाने के लिए विभिन्न विरोधी दल एक मंच पर आ गए और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बन गई। लाइफलाइन अस्पताल के मालिक डॉक्टर अनूप यादव को शायद इतिहास का ज्ञान नहीं है। पत्रकारों व सामाजिक संगठनों, सामाजिक सरोकारों से जुड़े हुए लोगों के ऊपर अपने पैसे और पहुंच के बदौलत तानाशाही रवैया अपनाकर लोकतंत्र की गला घोटने का काम किया जा रहा हैतो इस स्थिति में भारत की सोधी माटी से उपजा हुआ कलम का कलमकार अरविंद सिंह जैसा पैदा हो जाता है जो लोगो की आवाज बन जाता है।जरूरत पड़ेगी तो उच्च न्यायालय के अधिवक्ता गण भी इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए हाईकोर्ट की शरण में भी जा सकते हैं। मामला यह है कि भारत सरकार व उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कोविड-19 के बचाव के संदर्भ में एक एडवाइजरी जारी की गई थी। उस एडवाइजरी के तहत कोई भी सरकारी व प्राइवेट अस्पताल किसी मरीज को अपने अस्पताल में जब भर्ती करवाता है तो सर्वप्रथम वह अपने साधन- संसाधन से कोविड-19 की जांच करवाता है। सूत्रों के अनुसार यह जानकारी मिली कि आजमगढ़ स्थित लाइव लाइन अस्पताल जो पैसों की हवस में बिना कोविड की जांच कराए मरीजों को लगातार भर्ती करता था जब कोरोना पाजटीव मिला तो आजमगढ़ में जन सरोकारों से जुड़े हुए लोग जो लगातार जन समस्याओं को उठाते रहते थे इस मुद्दे को भी मजबूती से उठाना शुरू कर दिए। तमाम स्वयंसेवी संगठन,छात्र संगठन, अधिवक्ता,पत्रकार लोग अपने अपने फेसबुक सोशल मीडिया के माध्यम से इस मुद्दे पर लिख रहे हैं। बुरा तो तब हुआ कि जब ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन आईएमए की आजमगढ़ जिला इकाई अनूप यादव के बाहकावे में आकर वरिष्ठ पत्रकार डॉ अरविंद कुमार सिंह सामाजिक कार्यकर्ता विवेक पाण्डेय, अभिषेक उपाध्याय,विनित सिंह रिसु जो लगातार संगठनों के माध्यम से इस बात को शासन-प्रशासन उठाते थे, के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करा दी। मैं बताना चाहता हूं कि डॉ अरविंद कुमार सिंह जी का देश के बड़े पत्रकारों में उनका नाम इसलिए शुमार है क्योंकि ये दो -दो बार गोल्ड मेडल प्राप्त किया है ।पूर्वांचल आंचलिक पत्रकारिता को फर्श से अर्श पर ले जाने का कार्य किया है। इस घटना से व्यक्तिगत रूप से मैं बहुत क्षुब्ध हूं। सरकार से यह मांग करता हूं कि निष्पक्ष इसकी जांच कराई जाए। मंडलायुक्त आजमगढ़ द्वारा हो रही जांच हो रही है तो डर किस बात का है? जांच पूरी होने तक आंदोलन होनी चाहिए। जब लोग अपने घरों में चैन की नींद सोते हैं तो कलम का सिपाही समाज के लिए अपनी कलम की रोशनाई से शब्दों का ऐसा ताना-बाना बुनता है जो समाज के जन समस्याओं और जन सरोकारों से जुड़ा हुआ होता है। जिसको योगी सरकार को स्वत संज्ञान में लेकर मामले की मानिटरिंग किसी सचिव स्तर के आईएएस अधिकारी को लगाकर करवाना चाहिए सुप्रीम कोर्ट वह हाईकोर्ट ने इस मामले में कई बार कह चुका है कि * पत्रकार भीड़ का अंग नहीं होता है* पत्रकारों की सुरक्षा और संरक्षा के लिए सरकारों द्वारा कई बार एडवाइजरी जारी हुई है परंतु भौतिक रूप से इसका पालन अधिकारियों द्वारा नहीं कराया जा रहा है।इस तरह की घटनाएं योगी सरकार के रामराज्य की कल्पना पर बाट लगाने के समान है।योगी जी से मैं मांग करता हूं कि तत्काल इस घटना को संज्ञान में लेकर दोषी व्यक्तियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई करें।
राजकुमार सिंह

पूर्व कोषाध्यक्ष

इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन

इलाहाबाद


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