भूत भभूत और बाबा
माना कि करोना फिलहाल अज्ञात और लाइलाज वायरल बीमारी है, किन्तु ज्ञात जानलेवा बीमारियों के मुकाबले, इसमें होने वाली मौतों के आंकड़ें बेहद कम हैं। करोना के उपचार के लिए निर्धारित किये गए कोविड उपचार केंद्रों और भारत सरकार, स्वास्थ्य विभाग, ICMR, आयुष के वक्तव्यों के अनुसार अधिकांश मरीजों को किसी विशेष उपचार की जरुरत नहीं पड़ी है, ज्यादातर मरीज, अपनी इम्युनिटी, ऑक्सीजन और बेहद सस्ती विटामिन सी तथा एस्पिरिन की गोली से ठीक हो गए।
इस अहम् तथ्य के प्रकाश में आते ही सरकार ने, भारतीय ज्ञान, आयुर्वेद और प्राकृतिक उपचार को बढ़ावा देने, अपने आयुष मंत्रालय के माध्यम से करोड़ों पैकेट ” हर्बल काढ़े” के बाँटकर पिलाए, इन कोविड अस्पतालों में, लेकिन आयुष ने, काढ़ा पीने की सलाह, कोरोना की शर्तिया दवा कहकर नही, बल्कि इम्युनिटी बढ़ाने के लिए बोल कर दी थी ।
दुनिया ने चायना के हाथों की कठपुतली बने, बार बार रंग बदलते विश्व स्वास्थ्य संघटन को भी देखा और ट्रम्प के हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन दवा के दावों की धज्जियाँ उड़ते भी देखी, कुछ यही हाल इस बीमारी के उपचार हेतु प्रचारित और प्रसारित की जा रही कमर्शियल बाजार द्वारा प्रायोजित दवाइयों का भी भविष्य में होना है।
कारण बिलकुल स्पष्ट हैं, जिस गति से चायना प्रायोजित “करोना वायरस” अपना कैरेक्टर (म्यूटेशन) बदल रहा है और इसके ढेरों प्रकार, दुनिया भर में ढूंढें जा चुके हैं, तब कोई भी दवा, अव्वल तो इस वायरस पर कारगर होगी नहीं, स्थायी दीर्घायु वेक्सीन तो बहुत दूर की बात है, और अगर हम उपचार और दवाओं की खोज प्रक्रिया की बात करें तो, किसी भी नई बीमारी, या महामारी में, उपचार ढूंढ पाने की शीघ्रता, अगर अन्वेशण के नए आयाम खोलती है तो फर्जी दावों की पोल भी उतनी ही तेजी से खोलती है, क्योंकि मरीजों की बहुत बड़ी संख्या, सही गलत स्थापित करने के लिए तुरंत उपलब्ध होती है। विश्व की श्रेष्ठ चिकित्सा संस्थाएं और दवा नियन्त्रक संघटन, महामारी में, वक्त की नजाकत देखते हुए, स्थापित शोध नियमों में जरुरी परिवर्तन करते हैं और कड़े प्रावधानों के साथ, क्लेम की जा रही दवाइयों के विशिष्ट उपचार की, मरीज या उसके परिजनों की सहमति से, इजाजत देते हैं, साथ ही इसका वास्तविक शोध दस्तावेजीकरण भी करवाते हैं, यह दस्तावेज कोई भी देख सकता है और निष्पक्ष एनालिस्ट इसकी समीक्षा करते हैं, तब जाकर किसी भी दावे प्रतिदावे को वैधानिक जामा पहनाया जाता है। और यही सब दुनिया ने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन दवा के मामले में भी देखा, जहाँ हमारी चेतावनियां भी सही साबित हुईं और दुष्प्रभावों की वजह से कालांतर में WHO को इसे उपचार प्रक्रिया से हटाना भी पड़ा।
लेकिन भारत जैसे देश में, अव्वल तो कोई तंत्र या नियम है ही नहीं और ना ही दावों पर नकेल कस पाने वाली सरकार और जनता, इसलिए OTC या हर्बल, आयुर्वेद के नाम पर सब कुछ बिकता है, १३५ करोड़ गरीबों के देश में, शर्तियाँ इलाज वाले उत्पाद, उपचार और बाबाओं की धूम मचती हुई देखी जा सकती है।धन, पद, प्रभाव के उन्मुक्त घोड़ों के बाजारू रथ पर सवार बाबा के पास, इस आपदा काल में स्वर्णिम अवसर था, अनंतकाल से शुश्रुत, चरक, नारद संहिता में भरे पड़े ज्ञान को दुनिया के सामने लाने और देश को भारतीय आयुर्विज्ञान में विश्वविजेता बनाने का, उनके एक निवेदन पर सरकार, ICMR, आयुष विभाग, देशभर के चुनिंदा अस्पतालों के ICU में भर्ती गम्भीर मरीज़ों पर इसका चिकित्सकीय सुपरवाइज्ड ट्रायल करवाकर, सही आँकड़े और सत्यापित दावा दुनिया के सामने रख सकती थी, लेकिन उसके लिए, ख़ुद पर और ख़ुद की खोज पर भरोसा होना चाहिए था? पर बाजारू रथ पर सवार बाबा और उनका शकुनि सलाहकार मंडल, बहती गंगा में हाथ धोने का इतना सुनहरा अवसर यूँ ही कैसे जाने देता?
बस यही चूक हो गई बाबा से, उन्हें चाहिए था कि कोविड़ गाइडलाइंस के अनुसार, देशभर के ICU में भर्ती, गम्भीर मरीज़ों को इस दवा से ठीक करके दुनिया हिला देते, लेकिन अव्वल तो बकौल बाबा, उनकी शर्तिया उपचार की यह ट्रायल, मात्र सो मरीजों में हुई, पर क्या वो उपचार गाइडलाइंस की चार केटेगरी के अंतर्गत सूचीबद्ध थे? उनमे से कितने गंभीर रूप से बीमार या बुजुर्ग थे और icu में भर्ती थे? फिर भी बाबा ने बिना भारत सरकार, ICMR और आयुष को विश्वास में लिए, प्रेसवार्ता में, मरीजों के शतप्रतिशत ठीक होने के “गैर कानूनी” करिश्माई “मेजिकल” दावे (कानूनन अपराध) कर दिए, इसलिए सारी उँगलियाँ उनकी तरफ उठ गई हैं और भारत सरकार, ICMR तथा आयुष ने इन दावों से पल्ला झाड़, ना सिर्फ इसके विज्ञापनों पर रोक लगा दी है, बल्कि इससे सम्बंधित सभी दस्तावेज भी तलब कर लिए हैं, जो यक़ीनन व्यवसायिक अनैतिक मंशाओं और सरकारिया व्यवस्था की खामियों की और इशारा करते हैं।
इसमें किसी को कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि किसी भी चिकित्सकीय दावे या उपलब्धि को, बेईमानी, स्वार्थ, लालच और अंधभक्ति से परे, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और दस्तावेजों की सत्यता के आधार पर देखा जाना चाहिए। दुर्भाग्यवश हमारा भविष्य नालंदा में जला दिया गया, वहीँ “चरक, शुश्रुत, नारद संहिता” में लिखा, प्रामाणिक दावों से भरा, सभी बीमारियों का सटीक उपचार, अंग्रेजी पद्धति के सामने हमेशा दोयम ही साबित किया जाता रहा और इसमें योगदान रहा, स्वार्थी झोलाछाप डॉक्टरों, बाबाओं की मानसिक शूद्रता और अनपढ़, गरीब जनता को अन्धकार में रखती सरकारों का, जो हमेशा तर्क, शास्त्रार्थ और वैज्ञानिक दस्तावेजी प्रक्रिया से परहेज करते आये थे। किसी के पास ज्ञान था भी, तो तंत्र, संस्था और धन नहीं था और उनका ज्ञान उन्ही के साथ पंचतत्व में विलीन हो गया। यही कारण है कि हमारे ऐतिहासिक ज्ञान के बावजूद, हमारे देश को भूत, भभूत, बाबाओं, संपेरों, भिखारियों का देश बोलकर, विदेशों में मजाक उड़ाया जाता है, गरीब हम हैं, लेकिन बारबार लूटा भी हमें ही जाता है, जरा सी उपयोगिता दिखते ही, विश्व के सक्षम देशों द्वारा हमारे ज्ञान और ब्रेन को छीन या चुरा लिया जाता है। विश्व पटल पर हमारी गोल्डन उपलब्धियाँ, फ़र्ज़ी कहकर ठुकरा दी जाती हैं और देश का तंत्र, हर कदम पर, रोड़े अटकाता, अन्वेषकों का ख़ून चूसता, इनका तब तक उपहास उड़ाता है, जब तक कि वो उपलब्धियां या तो अलमारियों में बंद हो जायें या ओने पौने दामों में बेचनी पड़ जाएँ, मदद, ग्रांट्स, पुरस्कार मिलना तो बहुत दूर की बात है, और नहीं तो वो उसे फर्जी पुलिस केस, इनकम टेक्स केसों या अन्य प्रकरणों में उलझा कर, ख़तम कर देने तक की हद भी पार करने से गुरेज नहीं करते! बाद में देसी, विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियां उन्ही से ढेरों धन कमाती हैं। चेचक के टीके हमारे देश में पहले ही खोज लिए गए थे, लेकिन उसका श्रेय सैकड़ों साल बाद विदेशी क्यूँ और कैसे ले गए, क्या सोचा नहीं जाना चाहिए? इसलिए, देश और जनहित में, उम्मीद की जानी चाहिए कि, बाबाओं के अंधभक्त चरणछुल्लक लोगों की एकतरफ़ा सोच को यह स्पष्टीकरण सही दिशा दे पाए और वैज्ञानिक धरातल पर सोच एवं समर्थन के मायने बदल पाएं, यूँ भी सरकार ने बाबा से इलाज और दावे के दस्तावेज माँग ही लिए हैं, तो अब यह भी तय है कि सच सामने आ ही जाएगा! लेकिन अपनी दवा को चूने परचून की दुकानों पर भटे की तरह उपलब्ध करवा चुके बाबा, भले ही अपने पुराने धतकर्मों “बीपी, शुगर, एड्स” के शर्तिया इलाजों की तरह इससे भी अकूत धन कमा ले, लेकिन यथार्थ में यह दावा, आने वाले समय में देश और देश के असली ज्ञान के लिए जगहँसाई का पात्र ही बनेगा, सनद रखना!और सिक्के का दूसरा पहलू? अगर इसमें ज़रा भी सच्चाई हुई तो इस दवा के तत्वों का विश्लेषण दुनिया भर के घाग़ लोग तुरंत कर लेंगे और अपने यहाँ ट्रायल, दावे और पेटेंट करवाकर हमें ही लूटने आ जाएँगे क्योंकि उनके यहाँ का पूरा तंत्र एकजुट होकर, किसी भी कुबेराई क्षमता वाले शोध को बेहतर अंजाम देता है।
दुर्भाग्य तो यही है इस देश का, कि यहाँ लोग भूत के डर से पीली मालाएँ, काले धागे पहन लेंगे, जय बाबा बोल भभूत खा लेंगे, मूर्धन्यमान ज्ञानीजन, लाइन लगाकर गाँवखेड़े के पथरी वाले बाबा से सड़क पर फर्जी आपरेशन भी करवा लेंगे, बीपी शुगर हार्ट की दवाइयाँ छोड़ देंगे, लेकिन जब बीमारी बेहद बढ जाएगी, लाइलाज हो जाएगी, तब जाएँगे बड़े अस्पताल और CPR करते डॉक्टर को दोषी ठहराएँगे कि हम तो बात करता मरीज़ लाए थे, लालची, कसाइयों ने छाती पर मुक्के मार मार कर मार डाला।
योग की महिमा तो अनादिक़ालीन से है इस देश में, और दशकों से हार्ट, बीपी, शुगर, एड्स को शर्तिया ठीक करने का दावा करने वाला बाबा, थोक में लोगों को दवाइयाँ बेचता आया है, अगर उसके पास इनके शर्तिया इलाज थे तो फिर यह बीमारियाँ आज तक दुनिया से ग़ायब क्यों नही हुईं? जरुरत इस बात की थी कि, बाबा की दवाइयों से ठीक हो रहे या बिगड़ रहे लोग, सामने आकर सही दस्तावेजिकरण करवाते और सरकार को भी इस दिशा में पहल करनी चाहिए थी, लेकिन भूत भभूत और बाबाओं के देश में वैज्ञानिक प्रमाणीकरण चाहिए भी किसे ?शुरुआत से ही हाइड्रोक़्सीक्लोरोकुइन और बाक़ी सभी दवाओं के दावों पर लिखा गया हमारा सच कालांतर में, मरीज़ों पर किए गए प्रयोगों के बाद, सही साबित भी हुआ है!गम्भीर मरीज़ों, गहन चिकित्सा इकाइयों से परे किया गया यह काग़ज़ी शोध और दावा, आनेवाले समय में भी यक़ीनन फ़र्ज़ी ही साबित होगा, पर फिर भी प्रभु से प्रार्थना है कि सो, पचास नही, एक भी गम्भीर मरीज़ की जान अगर वाकई इससे बच जाए तो असमय काल का ग्रास बनते जनमानस को राहत मिलने का रास्ता खुले और शास्त्रों में दफ़न, देश के प्राचीनतम अलौकिक ज्ञान को विश्वपटल पर उसका स्थान मिलते हैं कल, तब तक जय श्रीराम ।

डॉ भुवनेश्वर गर्ग drbgarg@gmail.comhttps://www.facebook.com/bhuvneshawar.garg डॉक्टर सर्जन, स्वतंत्र पत्रकार, लेखक, हेल्थ एडिटर, इन्नोवेटर, पर्यावरणविद, समाजसेवक मंगलम हैल्थ फाउण्डेशन भारतसंपर्क: 9425009303