आश्विन शुक्ल प्रतिपदा महाराजा अग्रसेन जयन्ती

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डॉ अजय ओझा।

अग्रसेन राजा वल्लभ सेन के सबसे बड़े पुत्र थे। कहा जाता है इनका जन्म द्वापर युग के अंतिम चरण में हुआ था। महाराजा अग्रसेन राम राज्य की तरह शासन व्यवस्था स्थापित करने की इच्छा रखते थे। इनके राज में कोई दुखी या लाचार नहीं था। बचपन से ही वे अपनी प्रजा में बहुत लोकप्रिय थे। वे एक धार्मिक शान्ति दूत, प्रजा वत्सल, हिंसा विरोधी, बली प्रथा को बन्द करवाने वाले, करुणानिधि, सब जीवों से प्रेम, स्नेह रखने वाले दयालु राजा थे। महाराजा अग्रसेन भगवान राम के पुत्र कुश के 34 वीं पीढ़ी के हैं।

इनकी नगरी का नाम प्रतापनगर था। बाद में इन्होने अग्रोहा नामक नगरी बसाई थी। इन्हें मनुष्यों के साथ-साथ पशुओं एवम जानवरों से भी लगाव था, जिस कारण उन्होंने यज्ञों में पशु की आहुति को गलत करार दिया और अपना क्षत्रिय धर्म त्याग कर वैश्य धर्म की स्थापना की। इस प्रकार वे अग्रवाल समाज के जन्म दाता बने। इनकी नगरी अग्रोहा में सभी मनुष्य धन धान्य से परिपूर्ण थे। यह एक प्रिय राजा की तरह प्रसिद्द थे। इन्होने 15 वर्ष की आयु में महाभारत युद्ध में पांडवो के पक्ष में युद्ध किया था।

अग्रसेन महाराज ने अपने विचारों एवं कर्मठता के बल पर समाज को एक नयी दिशा दी। उनके कारण समाजवाद एवं व्यापार का महत्व सभी ने समझा। इसी कारण भारत सरकार ने 24 सितम्बर 1976 को सम्मान के रूप में 25 पैसे के टिकिट पर महाराज अग्रसेन की आकृति डलवाई। भारत सरकार ने 1995 में जहाज लिया, जिसका नाम अग्रसेन रखा गया था।

आज भी दिल्ली में अग्रसेन की बावड़ी है, जिसमें उनसे जुड़े तथ्य रखे गए हैं।

महाराज अग्रसेन प्रताप नगर के राजा थे। राज्य खुशहाली से चल रहा था। समृद्धि की इच्छा लेकर अग्रसेन ने तपस्या में अपना मन लगाया, जिसके बाद माता लक्ष्मी ने उन्हें दर्शन दिया और उन्होंने अग्रसेन को एक नवीन विचारधारा के साथ वैश्य जाति बनाने एवं एक नया राज्य रचने की प्रेरणा दी। जिसके बाद राजा अग्रसेन एवं रानी माधवी ने पुरे देश की यात्रा की और अपनी समझ के अनुसार अग्रोहा राज्य की स्थापना की। शुरुवात में इसका नाम अग्रेयगण रखा गया, जो बदल कर अग्रोहा हो गया। यह स्थान आज हरियाणा प्रदेश के अंतर्गत आता हैं। यहाँ लक्ष्मी माता का भव्य मंदिर हैं।

वैश्य संस्कृति की स्थापना से ही व्यापार का दृष्टिकोण समाज में विकसित हुआ। राजा अग्रसेन ने ही समाजवाद की स्थापना की जिसके कारण लोगो में एकता का भाव विकसित हुआ। साथ ही सहयोग की भावना का विकास हुआ जिससे जीवन स्तर में सुधार आया।

राजा अग्रसेन ने वैश्य जाति का जन्म तो कर दिया, लेकिन इसे व्यवस्थित करने के लिए 18 यज्ञ हुए और उनके आधार पर गोत्र बनाये गए।

अग्रसेन महाराज के 18 पुत्र थे। उन 18 पुत्रों को यज्ञ का संकल्प दिया गया, जिन्हें 18 ऋषियों ने पूरा करवाया। इन ऋषियों के आधार पर गोत्र की उत्त्पत्ति हुई, जिसने भव्य 18 गोत्र वाले अग्रवाल समाज का निर्माण किया।

अग्रसेन महाराज के गोत्र


गोत्र भगवान् गुरु (ऋषि) एरोन/ एरन इन्द्रमल अत्री/और्वा बंसल विर्भन विशिस्ट/वत्स बिंदल विन्दल वृन्द्देव यावासा या वशिष्ठ /भंडल वासुदेव /भरद्वाज धारण/डेरन धवंदेव भेकार या घुम्या/ गर्ग/गर्गेया पुष्पादेव गर्गाचार्य या गर्ग/गोयल/गोएल गोएंका गेंदुमल गौतम या गोभिल गोयन/गंगल गोधर पुरोहित या गौतम/जिंदल जैत्रसंघ बृहस्पति या जैमिनी/कंसल मनिपाल कौशिक/कुछल/कुच्चल करानचंद कुश या कश्यप मधुकुल/मुद्गल/माधवसेन आश्वलायन/मुद्गल/मंगल अमृतसेन मुद्रगल/मंडव्य मित्तल/ मंत्रपति विश्वामित्र/मैत्रेय नंगल नागल नर्सेव कौदल्या/नागेन्द्र सिंघल/सिंगला सिंधुपति श्रृंगी शंदिला/तायल ताराचंद साकाल तैतिरेय/तिन्गल/तुन्घल तम्बोल्कारना शंदिलिया/तन्द्य

वैश्य समाज ने धन उपार्जन के रास्ते बनाये और आज तक यह जाति व्यापार के लिए जानी जाति हैं।

सकुशल राज्य की स्थापना कर राजा अग्रसेन ने अपना यह कार्यभार अपने जेष्ठ पुत्र विभु को सौंप दिया और स्वयं वन में चले गए। इन्होने लगभग 100 वर्षो तक शासन किया था। इन्हें न्यायप्रियता, दयालुता, कर्मठ एवम क्रियाशीलता के कारण इतिहास के पन्नो में एक भगवान के तुल्य स्थान दिय गया। भारतेंदु हरिशचंद्र ने इन पर कई किताबें लिखीं हैं। इनकी नीतियों का अध्ययन कर उनसे ज्ञान लिया गया।

इन्होंने ही लोकतंत्र, समाजिकता, आर्थिक नीतियों को बनाया एवं इसका महत्व समझाया। सन 29 सितंबर1976 में इनके राज्य अग्रोहा को धर्मिक धाम बनाया गया। यहाँ अग्रसेन जी का मंदिर भी बनवाया गया, जिसकी स्थापना 1969 वसंतपंचमी के दिन की गई। इसे अग्रवाल समाज का तीर्थ कहा जाता हैं।

आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा अर्थात नवरात्री के प्रथम दिन अग्रसेन जयंती मनाई जाती हैं। इस दिन भव्य आयोजन किये जाते हैं एवं विधि विधान से पूजा पाठ की जाती है।

वैश्य समाज के अंतर्गत अग्रवाल समाज के साथ जैन, महेश्वरी, खंडेलवाल आदि भी आते हैं। वे सभी भी इस त्यौहार को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। पूरा समाज एकत्र होकर इस जयंती को मनाता हैं। इस दिन महा रैली निकाली जाती है। अग्रसेन जयंती के पंद्रह दिन पूर्व से समारोह शुरू हो जाता है। समाज में कई नाट्य नाटिका एवं प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। बच्चों के लिए कई आयोजन किये जाते हैं। यह उत्सव पुरे समाज के साथ मिलकर किया जाता है।

सभी देशवासियों को शारदीय नवरात्र के प्रथम दिवस एवं महाराजा अग्रसेन जयंती की हार्दिक बधाई एवं अनंत शुभकामनाएं !


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