तपन हत्याकांड की सीबीआई जांच से पहले ही पत्नी की टिप्पणियों पर अरुप राय की प्रतिक्रिया

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गंगा ‘अनु’।

हावड़ा, 30 सितंबर । बाली के दिवंगत तृणमूल नेता तपन दत्ता की पत्नी प्रतिमा ने राज्य मंत्री अरूप रॉय पर निशाना साधा। इसके जवाब में मंत्री अरूप ने टिप्पणी की कि “वह मेरी छोटी बहन की तरह हैं”।

कलकत्ता उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने भी सीबीआई जांच के आदेश को बरकरार रखा था, यह सुनने के बाद प्रतिमा ने शुक्रवार को कहा कि मुझे विश्वास था कि मैं जीतूंगी। पंचमी के मौके पर मुझे बहुत बड़ा तोहफा मिला है। मां दुर्गा ने मुझे जो दिया वह अकल्पनीय है। मुख्य न्यायाधीश प्रकाश श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति राजर्षि भारद्वाज की खंडपीठ ने 11 साल पहले बाली हत्याकांड की सीबीआई जांच के एकल पीठ के आदेश को बरकरार रखा।

न्यायमूर्ति राजशेखर मंथा ने तपन दत्त हत्याकांड की सीबीआई जांच का आदेश दिया था। राज्य सरकार और आरोपित तृणमूल नेताओं में से एक षष्ठी गायेन ने आदेश को चुनौती देते हुए खंडपीठ का रुख किया। लेकिन शुक्रवार को खंडपीठ ने अर्जी खारिज कर दी। प्रतिमा का दावा है कि तपन हत्या की साजिश में षष्ठी ही नहीं, हावड़ा के कई नेता और यहां तक कि राज्य मंत्री अरूप रॉय भी शामिल हैं। उन्होंने कहा कि मैं शुरू से ही कह रहा हूं कि यह हत्या अरूप रॉय की साजिश थी। अरूप की साजिश अंततः साबित हो जाएगी और उसे दंडित किया जाएगा।

आपको बता दें कि तपन दत्त की छह मई 2011 को गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस घटना में तृणमूल के स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं समेत 13 लोगों को आरोप लगाए गए। मामला निचली अदालतों, कलकत्ता हाई कोर्ट और यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट तक भी जा चुका है। लेकिन मृतक तपन की पत्नी प्रतिमा दत्ता को अभी तक न्याय नहीं मिला है। एक दशक बीतने पर भी इस घटना में आरोपितों को सजा नहीं मिली है। राज्य सरकार के निर्णय पर सीआईडी ने जांच अपने हाथ में लिया। सीआईडी ने जांच के बाद कहा कि तपन को इसलिए मारा गया क्योंकि उन्होंने पानी भरने का विरोध किया था। 30 अगस्त 2011 को सीआईडी ने मामले की चार्जशीट पेश की। चार्जशीट में हावड़ा के कई तृणमूल नेताओं के नाम थे।

इसके बाद 26 सितंबर 2011 को सीआईडी ने एक और सप्लीमेंट्री चार्जशीट कोर्ट में पेश की। वहां नौ लोगों के नाम बिना कोई कारण बताए चार्जशीट से हटा दिए गए। ये सभी हावड़ा के तृणमूल कांग्रेस के नेता थे। दिसंबर 2014 में चार्जशीट में नामजद बाकी पांच आरोपितों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया था। लेकिन 2017 में कलकत्ता हाई कोर्ट की दो जजों की बेंच ने निचली अदालत के आदेश को खारिज कर दिया। प्रतिमा का दावा है कि पहले आरोप पत्र में अरूप का नाम शामिल था, लेकिन बाद में इसे हटा दिया गया।


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