गाँवों को लौट रहे हैं अमेरिकी ग्रामीण

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ललित बंसल

दुनिया के सर्वशक्तिशाली देश अमेरिका कोविड-19 को लेकर उपहास का केंद्र बनता जा रहा है। एक विकसित देश के रूप में अपनी सारी शक्तियों के उपयोग के बावजूद अमेरिका में बुधवार सायं तक इस अदृश्य संक्रमण से तेरह हज़ार से अधिक जानें जा चुकी हैं। सौ वर्षों में बेरोज़गारी के अपने निम्नतम 3.5 प्रतिशत के स्तर तक पहुँचने के क़यास लगाए जाने लगे हैं। तब बेरोज़गारी दस प्रतिशत से अधिक पहुँच गई थी। यही नहीं, स्टॉक मार्केट लाल रेखा से नीचे रसातल की ओर बढ़ने से निवेशकों और बड़े उद्यमियों की स्थिति दयनीय हुई है। अमेरिका के लोग भी ग्रामीण भारत की तरह अपने-अपने गाँवों की ओर जाने लगे हैं।

बेरोज़गारी और आर्थिक पैकेज: अमेरिकी इकोनॉमी को बदतर स्थिति में जाने से रोकने के लिए सेंट्रल बैंक ”फ़ेड रिज़र्व” और कांग्रेस दोनों ओर से खरबों डॉलर के आर्थिक पैकेज से उपाय किए जा रहे हैं। इस आर्थिक पैकेज में कोविड-19 के उपचार में अरबों डॉलर की मदद की जा रही है। बड़े और छोटे व्यवसायों से नौकरियों से निकाले जा चुके अथवा संक्रमण से जान बचाकर ख़ुद घर में बैठे 66.5 लाख बेरोज़गारों को मज़दूरी भत्ते देने, छोटे व्यवसायियों और बड़े कारपोरेट को ज़िंदा रखने के लिए सरकारी ख़ज़ाना खोल देने के सतत उपक्रम किए जा रहे हैं। अभीतक क़रीब साढ़े पाँच खरब डॉलर की स्वीकृति जारी की जा चुकी है तो पाँच सौ अरब डॉलर की स्वीकृति के लिए रिपब्लिकन और डेमोक्रेट के बीच बातचीत हो रही है। इस तरह के आर्थिक उपचार चीन सहित किसी देश ने नहीं किए हैं।अमेरिकी कांग्रेस में डेमोक्रेट बहुल प्रतिनिधि सभा में स्पीकर नैंसी पेलोसी ने बुधवार को वीडियो जारी कर सीधे-सीधे आरोप लगाया है कि ट्रम्प कोविड-19 से निपटने में विफल रहे हैं। इसपर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ही नहीं, रिपब्लिकन नेताओं ने भी नेंसी पेलोसी की निंदा की है।

कहां से आया अदृश्य संक्रमणः इस सवाल पर पूँजीवादी अमेरिकी विद्वत समुदाय और चीन के साम्यवादी तंत्र में तनातनी हो गई है। दुनिया भर में इस संक्रमण से एक लाख के क़रीब जानें गँवा दिए जाने पर अमेरिकी मीडिया और विद्वत समुदाय में कहा जा रहा है कि वुहान (चीन) में पैदा हुआ यह संक्रमण क़ुदरती नहीं, लेबोरेटरी जनित है। इसपर अमेरिका में प्रवासी भारतीय समुदाय से दोग़ुना प्रवासी चीनी समुदाय का सतत तिरस्कार हो रहा है। ट्रम्प की ओर से व्हाइट हाउस में प्रेस काँफ़्रेंस में कोविड-19 को “चीनी संक्रमण” के नाम से उच्चारण करने के बाद घृणा अपराध के मामलों में सौ गुणा वृद्धि हुई है। यह स्थिति चीनी तंत्र और वहाँ की जनता को नागवार गुज़री है। चीन ने भी आरोप लगाए हैं कि यह संक्रमण अमेरिकी सेना की ओर से लेबोरेटरी में तैयार किया गया था, जो समय पूर्व लीक हो गया। इस तरह के आरोप-प्रत्यारोप दोनों ओर से लगाए जा रहे हैं।

डब्ल्यूएचओ सवालों के घेरे में: डब्ल्यूएचओ को चीन केंद्रित बताकर अमेरिकी राष्ट्रपति ने चीन सहित डब्ल्यूएचओ पदाधिकारियों को हतप्रभ कर दिया। ट्रम्प ने कहा था कि वह डब्ल्यूएचओ को दी जाने वाली आर्थिक सहायता राशि रोक सकते हैं। इस पर बुधवार को डब्ल्यूएचओ महानिदेशक टेडरास अधनोम ग़ेबरएसस ने इतना कहा कि यह संक्रमण भयावह है। दुनिया भर को चाहिए कि सभी एकजुट हों। डब्ल्यूएचओ के यूरोपीय क्षेत्रीय निदेशक हान्स क्लूज ने टिप्पणी की कि यह वक़्त परस्पर उलझने का नहीं है। हम एक घोर संकट में हैं। इसपर ट्रम्प ने बुधवार को इतना कहा कि वह ग़ौर करेंगे। यहाँ सवाल यह उठाया जा रहा है कि ट्रम्प ने यह मत क्यों व्यक्त किया? अमेरिका सदस्य देशों की ओर से दिए जाने वाले वार्षिक शुल्क दो लाख डॉलर के अलावा डब्ल्यूएचओ के कुल बजट का 14 प्रतिशत अतिरिक्त फ़ंड जुटाता है। इसके विपरीत चीन अमेरिका से आधा फ़ंड दो करोड़ 80 लाख डॉलर स्वैच्छिक फ़ंड देता है। डब्ल्यूएचओ का कुल बजट चार अरब डॉलर प्रतिवर्ष है। इसके 194 सदस्यों में सौ सदस्य तो सदस्यता शुल्क भी नहीं दे पाते। आज डब्ल्यूएचओ कंगाली की स्थिति में है।

ट्रम्प को डब्ल्यूएचओ के ख़िलाफ़ कड़ा बयान क्यों देना पड़ा: अमेरिका में प्रवासी चीनी समुदाय के चालीस लाख लोग अपने महापर्व ‘ल्यूनर ईयर’ मनाने जनवरी के तीसरे सप्ताह में चीन गए थे, जो फ़रवरी के पहले सप्ताह तक वापस अमेरिका के विभिन्न शहरों में आ गए थे। वुहान में कोरोना संक्रमण की शुरुआत होने और इस महानगर की एक करोड़ से अधिक आबादी के आधी से अधिक शंघाई, बीजिंग और अन्य चीनी शहरों में चली गई थी। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट सही मानें तो इन चालीस लाख लोगों में ज़्यादातर न्यूयॉर्क के थे। डब्ल्यूएचओ की ओर से ग़लती यह हुई कि दिसंबर के अंत तक वह इस संक्रमण को ‘निमोनिया’ कहती रही। उसने 30 जनवरी को ग्लोबल हेल्थ इमर्जेंसी घोषित किया और फिर 11 मार्च को वैश्विक महामारी का नाम दिया। इस बीच लाखों लोग सैकड़ों विमान सेवाओं से वापस अमेरिका आ चुके थे और चालीस हज़ार लोग अमेरिका से बाहर भी गए थे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)


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