नाम है ‘सचिन वाजे’

Share:

एनआईए ने जिस मीना जार्ज को हिरासत में लिया है वह 5 ऑटो पार्ट्स की फर्जी कंपनी दिखाई थी और उसने 12 सीसी अकाउंट खोले थे उसके पास 20 से ज्यादा कैश गिनने की मशीनें थी ।

सचिन वाजे हर रोज अपना वसूली का कैश मीना को देता था और वह उसे ऑटो पार्ट्स की दुकान से आई कमाई बताकर सीसी अकाउंट में डालती थी फिर उन पैसों के बाद द्वारा यह इंश्योरेंस कंपनी के शेयर खरीदती थी ।

मात्र 1 साल में सचिन वाजे एंड गैंग ने 800 करोड़ रुपए शेयर बाजार में इन्वेस्ट की है ।

सोचिए सचिन बाजे सिर्फ 20 पर्सेंट अपने पास रखता था और 80 परसेंट अपने आका को देता था तब मात्र 1 साल में अगर सचिन वाजे ने 800 करोड़ रुपए वसूले तब इसका आका जिसके इशारे पर वह वसूली करता था उसके पास कितना पैसा पहुंचा होगा ।


सचिन वाझे व्यक्ति नहीं सिस्टम
(यह आलेख वरिष्ठ पत्रकार दीपक शर्मा का है जोकि लंबे समय तक आजतक चैनल के क्राइम रिपोर्टर थे और मुंबई अंडरवर्ल्ड से संबंधित खोजी खबरों के लिए जाने जाते हैं)

सचिन वाझे के बॉस… क्राइम ब्रांच मुंबई के इंस्पेक्टर असलम मोमिन से मिलकर, मैं ज्यूँ ही थाने के बाहर निकला कि वाझे टकरा गए। सादे कपड़ों में दुबले पतले सचिन वाझे को करीब से देखकर यकीन नहीं हुआ कि ये आदमी, दाऊद इब्राहिम के तीन दर्ज़न शूटरों को मौत के घाट उतार सकता है। वाझे,तब पुलिस हिरासत में मौत के एक मामले में ससपेंड थे।

अंडरवर्ल्ड और खासकर डी कम्पनी के बारे में वाझे से कई बार मेरी बात हुई। उनके पास क्रिकेट बैटिंग, ड्रग्स और सोने की तस्करी में शामिल सिंडिकेट के बारे में अथाह सामग्री थी। जब कभी उनका मन होता तो वे जानकारी शेयर करते थे वर्ना अक्सर सवालों पर गोलमोल जवाब देकर बात टाल जाते थे। कुछ बरस बाद, शायद 2007 में मुझे पता लगा कि वाझे ने शिव सेना का दामन थाम लिया है और उद्धव ठाकरे के आशीर्वाद से वे पार्टी के प्रवक्ता बन गए हैं । मुझे उनके नए रोल पर आश्चर्य हुआ। धीरे धीरे वाझे से बातों का सिलसिला कम होता गया। कुछ बरसों बाद, मुझे पता लगा कि वाझे बहुत बड़े आदमी हो गए हैं। उनका लाइफस्टाइल पूरी तरह बदल चुका है और वे सॉफ्टवेयर की कई कंपनियों के मालिक बन चुके हैं।

बीते साल, मै वाझे को लेकर फिर चौंका.. जब मुंबई के एक बड़े क्राइम रिपोर्टर ने बताया कि वाझे, 15 -16 साल सस्पेंड रहने के बाद पुलिस की नौकरी में वापस हुए हैं और उन्हें सीएम ठाकरे के कहने पर क्राइम ब्रांच की इंटेलिजेंस यूनिट का चीफ नियुक्त किया गया। मैंने उनसे संपर्क करने कि कोशिश की, लेकिन अपनी नई पारी में वाझे का कद इतना बढ़ चुका था कि उन तक पहुंचना किसी पत्रकार के लिए शायद मुश्किल था। फिर बीते नवंबर में अचानक,मुंबई के एक संपादक ने मुझे एक वीडियो व्हाट्सअप किया जिसमे मैंने देखा कि टीवी एंकर अर्नब गोस्वामी को वाझे गिरफ्तार कर के ले जा रहे हैं। इस सम्पादक ने फोन पर बताया कि मामला रायगढ़ पुलिस का था लेकिन सरकार के कहने पर वाझे को खासतौर पर अर्नब को गिरफ्तार करने भेजा गया था।

इस महीने 12 मार्च के आसपास, मेरे आश्चर्य की सीमा नहीं थी जब एक आईपीएस अफसर ने बताया कि मुकेश अम्बानी के घर के नज़दीक विस्फोटक रखने में वाझे का हाथ है। अगले ही दिन केंद्रीय जांच एजेंसी NIA ने वाझे को अम्बानी के घर के करीब विस्फोटक से लदी गाडी पार्क करने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया। मैं अभी इस साज़िश की कड़ियाँ जोड़ ही रहा था कि घाटकोपर (मुंबई) के विधायक राम कदम ने जानकारी दी कि वाझे ने पूरी साज़िश की कड़ी, यानी अपने ही मित्र मनसुख हीरन की हत्या करवा दी है। इस बार मैं स्तब्ध था ! पुलिस अफसर वाझे को एक निर्मम हत्यारे के भेस में, स्वीकार करना सहज न था। बहुत सी ब्रेकिंग न्यूज़ से हम भले ही चौंकते न हो, पर ये ब्रेकिंग खबर वाकई चौंका देने वाली थी ।

वाझे,वर्दी की आस्तीन में छुपे भ्रष्ट व्यवस्था के नाग हैं!

किसी इंस्पेक्टर का मासिक वेतन एक लाख रुपए से भी कम हो ..पर महीने भर में, यदि वो 100 करोड़ रूपए की अवैध वसूली करने की कूवत रखता हो तो इसे आप “आय से अधिक आमदनी” का कितना वीभत्स उदहारण मानेंगे ? अगर विशुद्ध अंक गणित की बात करें तो वाझे अपने वेतन से दस हज़ार गुना की अवैध कमाई का लक्ष्य लेकर चल रहे थे..जिसे पूरा करने के लिए उन्हें देश के सबसे अमीर व्यक्ति मुकेश अम्बानी को भी टारगेट करना पड़ गया। अम्बानी को विस्फोटकों से डरा धमका कर,वाझे का मकसद वसूली के अलावा और क्या हो सकता है ? अगर तत्कालीन पुलिस कमिश्नर परमवीर सिंह के पत्र को आधार माने तो वाझे को हर महीने 100 करोड़ की अवैध वसूली महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख से साझा करनी थी। यानी समूचे ऑपरेशन के बॉस, वाझे के बिग बॉस देशमुख थे। अब ये बात दीगर है की देशमुख और शरद पवार, दोनों का इशारा है कि उन्हें इस महा वसूली अभियान की जानकारी नहीं थी, यानी ये मोटी रकम, सरकार में किसी और से साझा की जा रही थी ।

मुंबई का किंग कौन ?

दो कमरे के सरकारी आवास के हकदार, असिस्टेंट इंस्पेक्टर वाझे इस वसूली अभियान को मुंबई के सबसे आलीशान Trident (ओबेरॉय ) होटल के उस सुईट से चला रहे थे जिसका एक दिन का किराया उनकी महीने की पूरी तनखा से ज्यादा था। उनके पास दो मर्सेडीज, एक लैंड क्रुइजेर और एक वॉल्वो SUV लक्ज़री गाडी थी। मुंबई से बाहर जाने के लिए वाझे, चार्टर प्लेन का इस्तेमाल करते थे। अंडरवर्ल्ड के 63 शूटर को मौत के घाट उतारने वाले वाझे से दाऊद इब्राहिम भी दबता था इसलिए मुंबई के सट्टेबाज़, ड्रग तस्कर, डांस बार मालिक और बड़े बड़े बिल्डर घबराते थे। यानी कुलमिलाकर वाझे, अंडरवर्ल्ड पर बनी फिल्म सत्या का असली डॉन था जिसे आप अब मुंबई का नया किंग कह सकते थे।

यूँ भी,अंडरवर्ल्ड की 63 लाशें बिछाने के बाद,अगर किसी के बदन पर खाकी वर्दी हो, हाथ में भरी पिस्तौल हो और कुछ भी करने के लिए सरकार की खुली छूट हो तो फिर मुंबई का किंग बनना कौन सी बड़ी बात है ? और अंडर्वर्ल्ड का ये किंग, अगर क्राइम ब्रांच का सबसे रसूखदार अफ़सर भी हो, तो कहने ही क्या ? सच तो ये है कि सरकार की सरपरस्ती में सचिन वाझे, ताक़त और दौलत की ऐसी स्क्रिप्ट गढ़ रहे थे जो परदे पर सलीम जावेद भी नहीं उतार सके ।

व्यक्ति नहीं, एक भ्रष्टाचारी कॉंग्रेसी और उसकी जुडी व्यवस्था है वाझे !

मनसुख की हत्या से पहले वाझे ने अपने सहयोगी विनायक शिंडे से कहा था कि उसका दिल कह रहा है कि प्लान बिलकुल ठीक जा रहा है और परेशान होने की कोई बात नहीं है। लेकिन अचानक पूरे घटनाक्रम में मनसुख की पहचान जैसी ही सामने आई , वाझे पैनिक कर गए। पैनिक इसलिए कि साज़िश खुलते ही सरकार के कुछ बड़े लोग बेनकाब हो सकते थे। इसलिए पैनिक में , वाझे ने तय किया कि अगर मनसुख को ही खत्म कर दिया जाए तो समूची साजिश की सबसे अहम कड़ी टूट जाएगी। मामला खुद ब खुद दफन हो जायेगा।
वाझे के सुपरवाइजर रहे एक सेवानिवृत अधिकारी का कहना था कि कोई भी योजना बनाते वक़्त वाझे अपनी ही करता था और अगर उसे राय दी भी जाए तो मानता नहीं था। “मनसुख की हत्या करवाकर, वाझे ने सबसे बड़ी गलती कर दी….एक फ्रॉड के मामले में सबूत मिटाने की कोशिश में, वाझे हत्या के मुल्ज़िम बन गया. ऐसा लगता है, सत्ता और बेहिसाब पैसे के नशे में चूर, और सत्ताधारी के इशारे से एहम पद और आशिर्वाद मिलने से वाझे होश खो बैठा था । .. उसका कॉमन सेंस भी खत्म हो चुका था ,” इस अधिकारी ने कहा।

बहरहाल, ये कहानी यहाँ ख़त्म नहीं होती …जाँच जारी है और रोज़ नए नए खुलासे, मुंबई में ठाकरे सरकार की चूलें हिला रहे हैं। सच तो ये है कि ये कहानी तब तक जारी रहेगी, जब तक वाझे समूची साज़िश कबूल नहीं करते। हो सकता है आने वाले दिनों में वाझे का कबूलनामा, ठाकरे सरकार गिराने की नौबत ले आये।
लेकिन सवाल किसी एक वाझे के जुर्म का नहीं है।
असली सवाल ये है कि वाझे देश के भ्रष्ट सिस्टम की एकलौती कड़ी नहीं है।

इस कहानी का सबसे कड़वा सच यही है कि …
वाझे व्यक्ति नहीं , वाझे सिस्टम है।
ऐसा सिस्टम…
जो हमे या आपको या हम जैसे हज़ारों में बहुतों को
किसी न किसी मोड़ पर
कुचलता जा रहा है।


Share: