जानिए क्षत्रिय वंश और उनका उत्पत्ति का इतिहास

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पौराणिक इतिहास से पता चलता है की सूर्यवंशी पहला राजा वैवस्वत मनु का बेटा इक्ष्वाक हुआ जिसकी राजधानी अयोध्या थी। इक्ष्वाक से 55 पीढ़ी बाद मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचन्द्र ने अवतार लिया। रामचन्द्र जी के बड़े राजकुमार कुश की संतति कुशवाह वंश है। केशव दास जी ने अपनी प्रसिद्ध महाकाव्य ‘रामचन्द्रिका’ में लिखा है कि रामचन्द्र ने अपने विशाल साम्राज्य को आठ भागों में विभाजित करके अपने पुत्रों और भ्रातृजों में विभक्त किया था। अपने बड़े पुत्र कुश को कुशावती और लव को अवंतिका (उज्जैन) दी, भरत के पुत्रों में पुष्कल को पुष्करावती और तक्ष को तक्षशिला और लक्षमण के पुत्र अंगद को अंगद नगर और चन्द्रकेतु को चन्द्रावती का राजा बनाया। शत्रुध्न के पुत्र सुबाहु को मथुरा और शत्रुघात को अयोध्या का राजा बनाया था।
क्षत्रिय ( राजपूत )
क्षत्रिय ( राजपूत ) चार सबसे बड़ी हिन्दू जातियों में दूसरी बड़ी जात हैं। ये युद्ध कला में पारंगत होते हैं और समाज की रक्षा करना इनका धर्म होता हैं।

पौराणिक साहित्य में निर्दिष्ट राजवंश

सूर्यवंश – अनेक वंशों में सूर्यवंश ही सबसे विस्तृत एवं अपनी त्याग और तपस्वी आचरण से समस्त भूमण्डल में कीर्ति स्थापित करने वाला है।
चन्द्रवंश – उत्तरकालीन भारतीय इतिहास में अयोध्या, विदेह एवं वैशाली इन तीनों देशों को छोड़कर बाकी सारे उत्तर भारत तथा दक्षिणी भारत पर सोमवंशीय राजाओं का राज्य था।
स्वायंभुव मनुवंश – प्राचीन भारतखंड के ब्रह्मावर्त नामक प्रदेश में स्थित वर्हिष्मती नगरी का सर्वाधिक प्राचीन राजा स्वयंभुव मनु था। इस वंश की उत्तानपाद एवं प्रियब्रत नामक दो शाखाएँ मानी जाती हैं।
भविष्य वंश में वंश श्रृंखलाएँ – 1.आन्ध्र (भृत ृवंश ), 2.काणवायन (श्रृंगभृत्य) वंश, 3.नन्द वंश, 4.प्रद्योत वंश, 5.मगध वंश, 6.मौर्यवंश, 7.शिशु नागवंश, 8. श्रृंगवंश, 9.यवन, 10.शक, 11.हूण।
मानवेतर वंश – पौराणिक साहित्य में देव, गन्धर्व, दानव, अप्सरा, राक्षस, यक्ष, नग, गरुड़ आदि अनेक वंशों का निर्देश प्राप्त है। जो प्रायः कश्यप ऋषि की सन्तान मानी गई हैं जिनकी तेरह पत्नियाँ थीं।

सप्त ऋषियों की सन्तान – पौराणिक एवं महाभारत साहित्य में राक्षस, यक्ष एवं गन्धर्व को पुलह पुलस्त्य अगस्त जैसे सप्तऋषियों की सन्तान कहा गया है।
वानर वंश – वानरों को पुलह एवं हरिभद्रा की सन्तान कहा गया है। उनके प्रमुख 12 कुल कहे गए हैं।

द्धीपिन
शरम
सिंह
व्याघ्र
नील
शल्यक
श्रृप्क्षे
माजीर
लोभास
लोहास
वानर
मायाव

राक्षस वंश – यह भी पुलह पुलस्त्य अगस्त्य ऋषियों की संतान कहा गया है। दैत्यों में हिरण्य कशिपु हिरण्याक्ष का स्वतन्त्र वंश वर्णन भी प्राप्त है। आगे चलकर इन जातियों का स्वतन्त्र अस्तित्व नष्ट होकर अनार्य एवं दुष्ट जाति के लोगों के लिए ये नाम प्रयुक्त किए जाने लगे।
सूर्यवंश का परिचय
सूर्यवंश सृष्टि के आरम्भ से है। इस वंश का प्रथम राजा इक्ष्वाकु वैवस्वत मनु के पुत्र थे जो अयोध्या नगरी के प्रथम राजा हुए।इन्हीं इक्ष्वाकु से सूर्यवंशी
क्षत्रियो की उत्पत्ति हुई। इक्ष्वाकु के एक पुत्र मिथि ने मिथिला राज्य स्थापित किया। इनके एक भाई करूष से उत्तर के देशों में स्वामित्व स्थापित हुआ तथा एक भाई शयति के पुत्र अनंत के नाम सेअनर्त देश कहलाया। इनके पुत्र रवत ने द्वारिका नगरी को राजधानी बनाया इनके पाँचवे भाई नाभाण के पुत्र अंबरीष सप्तद्वीप के राजा हुए। इनके भाई नदिष्ट के वंश के विशाल राजा ने मिथिला के पास वैशाली नगर बसाया। वैवस्वत मनु के पुत्र सुधुम्न के तीन पुत्र उत्कल, गय और विशाल थे। उत्कल ने उड़ीसा, गय ने गया नाम के दो राज्य स्थापित किए। इक्ष्वाकु के १०० पुत्रों में से 25 पुत्र हिमांचल और विन्ध्याचल, दूसरे पश्चिम की ओर और शेष दक्षिण के राजा हुए।
इक्ष्वाकु के बड़े पुत्र विकुक्षि, विकुक्षि के पुरंजय के अनयना तथा उनके पुत्र पृथु, पृथु के विश्वगंध जिनके चन्द्र, चन्द्र के युवनाश्व, युवनाश्व के श्रावास्त हुए जिन्होंने श्रावस्ती नगरी ( बिहार ) बसाई। इनके पुत्र वृहदश्व के कुवलयाश्व, कुवलयाश्व के बड़े पुत्र दृढ़ाश्व इनके हर्यश्व जिनके पुत्र निकुम्भ हुए। इसी श्रेणी में महान दानी सत्यग्रत राजा हरिश्चन्द्र हुए जिनके पुत्र रोहित ने शाहाबाद जनपद में रोहितश्वगढ़ बसाया। जिनके प्रपौत्र चम्प ने चम्पानगरी बसाई। इसी शाख में आगे सागर, राजा दिलीप उनके पुत्र भागीरथ हुए, जिनकी घोर तपस्या से गंगा जी भूतल पर आयी। इनके आगे अठारहवीं पीढ़ी में राजा रघु हुए जिनके बंशज रघुबंशी क्षत्रि हैं। इनके पुत्र ‘अज ‘ हुए, अज के दशरथ और दशरथ के विश्वविख्यात महाराज रामचन्द्र हुए, जिनके बड़े पुत्र कुश से कुशवंश ( कछवाहा वंश ) और राठौर वंश चले। विभिन्न राजवंशो के मध्य सूर्यवंश सबसे लम्बा है। जब तक आर्य जाति का अस्तित्व रहेगा तब तक परम पावनी अयोध्या के प्रति श्रद्धा का लोप नहीं हो सकता।

सूर्यवंशीय क्षत्रिय
गहिलौत
ये क्षत्रिय सूर्यवंशी हैं। रामचन्द्र के छोटे पुत्र लब के वंशज हैं। गोत्र बैजपाय ( वैशाम्पायनी ), वेद यजुर्वेद, गुरु वशिष्ठ, नदी सरयू, इष्ट, एकलिंग शिव, ध्वज लाल सुनहला उस पर सूर्यदेव का चिन्ह। प्रधान गद्दी चित्तौड़ ( अब उदयपुर ) है। इस वंश के क्षत्रिय मेवाड़ राजपूताना, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार प्रान्त के मुंगेर मुजफ्फर नगर तथा गया जिले में पाए जाते हैं। इसकी 24 शाखायें थीं। अधिकांश शाखाएँ समाप्त हो गयीं।
कुशवाहा (कछवाहे)
ये सूर्यवंशी क्षत्रिय कुश के वंशज हैं। कुशवाहा को कछवाह या राजावत भी कहते है। गोत्र गौतम, गुरु वशिष्ठ, कुलदेवी ( दुर्गां मंगला ), वेद सामवेद, निशान पचरंगा, इष्ट रामचन्द्र, वृक्ष वट। ठिकाने जयपुर, अलवर, राजस्थान में रामपुर, गोपालपुरा, लहार, मछन्द, उत्तर प्रदेश में तथा यत्र-तत्र जनपदों में पाए जाते हैं।
सिसोदिया क्षत्रिय
राहत जी के वंशज ”सिसोदाग्राम” में रहने से यह नाम प्रसिद्ध हुआ। यह ग्राम उदयपुर से 24 किलोमीटर उत्तर में सीधे मार्गं से है। गहलौत राजपूतों की शाखा सिसोदिया क्षत्रिय हैं। इस वंश का राज्य उदयपुर प्रसिद्ध रियासतों में है। इस वंश की 24 शाखाएँ हैं। सिसोदिया है जो ”शीश +दिया” अर्थात ”शीश/सिर/मस्तक” का दान दिया या त्याग कर दिया या न्योछावर कर दिया इसीलिए ऐसा करने वाले स्वाभिमानी क्षत्रिय वंशजों को सिसोदिया कहा जाता है। इनकी बहुलता पर इनके प्रथमांक राज्य को ”शिशोदा” कहा गया और राजधानी कुम्भलगढ़/केलवाड़ा कहा गया।
श्रीनेत क्षत्रिय
सूर्यवंशी हैं गोत्र-भारद्वाज, गद्दी श्रीनगर ( टेहरी गढ़वाल ) यह निकुम्भ वंश की एक प्रसिद्ध शाखा है। ये लोग उत्तर प्रदेश के गाजीपुर, बलिया, गोरखपुर तथा बस्ती जिले में बांसी रियासत में पाए जाते हैं। बिहार प्रान्त के मुजफ्फरपुर, भागलपुर, दरभंगा और छपरा जिले के कुछ ग्रामों में भी है।
दीक्षित क्षत्रिय

यह वंश सूर्यवंशी है। गोत्र-काश्यप है। इस वंश के लोग उत्तर प्रदेश और बघेल खण्ड में यत्र-तत्र पाए जाते हैं। इस वंश के क्षत्रियों ने नेवतनगढ में राज्य किया, इसलिए नेवतनी कहलाए। यह लोग छपरा जिले में पाए जाते हैं। दीक्षित लोग विवाह-संबंध स्थान-भेद से समान क्षत्रियों में करते हैं।
रघुवंशी क्षत्रिय
रघुवंशी सूर्यवंश की शाखा है। गोत्र-भारद्वाज, ये जौनपुर, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश में यत्र-तत्र पाए जाते हैं।
राठौर क्षत्रिय
गोत्र-गौतम ( राजपूताने में ) तथा काश्यप ( पूर्व में ) अत्रि दक्षिण भारत में राठौर मानते हैं। बिहार के राठौरों का गोत्र शांडिल्य है। गुरु वशिष्ठ हैं।
शाखाएँ

मेढ़तिया
चन्दावत
जगावत ( राजधानी कैलवाढ़ )
धांधुल
भदेल
चकेल
दोहरिया
खौबरा
रामदेव
झालावत
गौगदेवा
जैसिहा
श्राविया
जौवसिया
जौरा
सुंदू
कटैया
हुठदिया
दगजीरा
मुरसिया
बदुरा
मुहौली
महेचा
कबरिया।
निकुम्भ क्षत्रिय
गोत्र-वशिष्ठ हैं। शीतलपुर, दरभंगा, आरा, भागलपुर आदि जिलों में पाए जाते हैं। ये उत्तर प्रदेश में यत्र-तत्र पाए जाते हैं। ये सूर्यवंशी क्षत्रिय हैं। राजा इक्ष्वाकु के 13वें वंशधर निकुम्भ के हैं।
नागवंशीय क्षत्रिय
गोत्र-कश्यप हैं। ये क्षत्रिय बहुत प्राचीन हैं। खैरागढ़ ( छत्तीस गढ़ मध्यप्रदेश ) रांची, हजारीबाग, मानभूमि, छोटा नागपुर ( बिहार ), मुजफ्फरनगर आदि में यत्र-तत्र पाए जाते हैं।
बैस क्षत्रिय
गोत्र भरद्वाज हैं। इस वंश की रियासतें सिगरामऊ, मुरारमऊ, खजुरगाँव, कुर्री सिदौली, कोड़िहार, सतांव, पाहू, पिलखा, नरेन्द्र, चरहुर, कसो, देवगांव, हसनपुर तथा अवध और आजमगढ़ जिले में हैं।
बड़गूजर क्षत्रिय
गोत्र-वशिष्ठ हैं। यह वंश रामचन्द्र के पुत्र लव से हैं। ये राजपूताना, बुलन्दशहर, अलीगढ़, एटा, मुरादाबाद, बदायू, हरियाना हिसार आदि में पाए जाते हैं।
गौड़ क्षत्रिय
गोत्र भरद्वाज हैं। यह वंश भरत से चला हैं। ये मारवाड़, अजमेर, राजगढ़, शिवपुर, बड़ौदा, शिवगढ़, कानपुर, सीतापुर, उन्नाव, इटावा, शाहजहाँपुर, फरुर्खाबाद, जिलों में पाए जाते हैं। ये क्षत्रिय सूर्यवंशी हैं।
सिकरवार क्षत्रिय
गोत्र भरद्वाज हैं। ये ग्वालियर, आगरा, हरदोई, गोरखपुर, गाजीपुर, आजमगढ़ आदि स्थानों में पाए जाते हैं।
सूर्यवंशी क्षत्रिय
ये प्राचीन वंश हैं। गोत्र भरद्वाज है। गुरु आंगिरस हैं। प्राचीन काल में श्रीनगर, गढ़वाल के राजा थे। ये लोग उत्तर प्रदेश के फैजाबाद, बस्ती, बाराबन्की, बुलन्दशहर, मिर्जापुर, गाजीपुर जिलों में पाए जाते हैं।
गौतम क्षत्रिय
गोत्र गौतम है। ये उत्तर प्रदेश, बिहार, मुजफ्फरनगर, आरा, छपरा, दरभंगा आदि जिलों में पाए जाते हैं। उत्तर प्रदेश में फतेहपुर, कानपुर जिलों में हैं।
बिसेन क्षत्रिय
गोत्र पारासर ( भरद्वाज, शोडिल्व, अत्रि, वत्स ) ये मझौली ( गोरखपुर ), भिनगा ( बहराइच ), मनकापुर ( गोंडा ), भरौरिया ( बस्ती ), कालाकांकर ( प्रतापगढ़ ) में अधिक हैं।
रैकवार क्षत्रिय
गोत्र भरद्वाज हैं। ये बौंडी ( बहराइच ), रहबा ( रायबरेली ), भल्लापुर ( सीतापुर ) रामनगर, धनेड़ी ( रामपुर ), मथुरा ( बाराबंकी ), गोरिया कला ‘ उन्नाव ‘ आदि में पाए जाते हैं। बिहार प्रान्त के मुजफ्फरपुर जिले में चेंचर, हरपुर आदि गाँवों में तथा छपरा और दरभंगा में भी यत्र-तत्र पाए जाते हैं।
झाला क्षत्रिय
गोत्र-कश्यप हैं। इनके ठिकाने बीकानेर, काठियावाड़, राजपूताना आदि में हैं।
बल्ल क्षत्रिय
रामचन्द्र के पुत्र लव से यह वंश चला हैं। बल्लगढ सौराष्ट्र में पाए जाते हैं।
गोहिल क्षत्रिय
इस वंश का पहला राजा गोहिल था, जिसने मारवाड़ के अन्दर बरगढ़ में राज्य किया। गोत्र कश्यप हैं।
चन्द्रवंशीय शाखाएँ
चन्द्र पुत्र भगवान बुध चन्द्रवंश के आदि प्रतिष्ठा करने वाले महापुरुष हैं। उन्होंने वैवस्वत मनु की कन्या इला का पाणिग्रहण किया जिनसे राजर्षि पुरुरवा हुए। उनकी चौथी पीढ़ी में ययाति हुए थे।
शाखाएँ
यदुवंशी-गोत्र कौडिन्य और गुरु दुर्वासा हैं। मथुरा के यदुवंशी करौली के राजा हैं। मैसूर राज्य यदुवंशियों का था। 8 शाखाएँ हैं।
जोड़जा क्षत्रिय
ये क्षत्रिय श्रीकृष्ण के शाम्ब नामक पुत्र की संतान हैं। मौरबी राज्य, कच्छ राज्य, राजकोट नाभानगर ( गुजरात ) में पाए जाते हैं।
तोमर क्षत्रिय
गोत्र गर्ग हैं। ये जोधपुर, बीकानेर, पटियाला, नाभा, धौलपुर आदि में हैं। मुख्य घराना तुमरगढ है। इनकी एक प्रशाखा जैरावत, जैवार नाम से झांसी जिले में यत्र-तत्र आबाद है।
चन्देल क्षत्रिय
गोत्र चन्द्रायण, गुरु गोरखनाथ जी हैं। ये क्षत्रिय बिहार प्रान्त में गिद्धौर नरेश कनपुर, मिर्जापुर, जौनपुर, आलमनगर रियासत दरभंगा जिले में बंगरहरा रियासत थी। बस्तर राज्य ( मध्य प्रदेश ) बुन्देल खण्ड में भी यत्र-तत्र पाए जाते हैं।
सोमवंशी क्षत्रिय
गोत्र अत्रि हैं। ये लोग पंजाब, बिहार, सीतापुर, फर्रुखाबाद, गोंडा, प्रतापगढ़, बरेली आदि में हैं।
सविया सौर ( सिरमौर ) क्षत्रिय
गोत्र कश्यप हैं। ये लोग बिहार के गया जिले में अधिक पाए जाते हैं।
भाटी क्षत्रिय
यह श्रीकृष्ण के बड़े पुत्र प्रदुम्न की संतान हैं। राजस्थान में जैसलमेर, बिहार के भागलपुर और मुंगेर जिले में पाए जाते हैं।
हेयरवंश क्षत्रिय
गोत्र कृष्णत्रिय और गुरु दत्तात्रेय। ये बिहार, मध्यप्रदेश एवं उत्तरप्रदेश में यत्र-तत्र पाए जाते हैं। ये क्षत्रिय चन्द्रवंशी हैं।
सेंगर क्षत्रिय
गोत्र गौतम, गुरु श्रृंगी ऋषि, विश्वामित्र। ये क्षत्रिय जालौन में हरदोई, अतरौली तथा इटावा में अधिक पाए जाते हैं। ये ऋषिवंशी हैं। सेंगरों के ठिकाने जालौन और इटावा में भरेह, जगम्मनपुर, सरु, फखावतू, कुर्सीं, मल्हसौ है। मध्यप्रदेश के रीवां राज्य में भी बसे हैं।
भौंसला क्षत्रिय
ये सूर्यवंशी हैं, गोत्र कौशिक है। दक्षिण में सतारा, कोल्हापुर, तंजावर, नागपुर, सावंतबाड़ी राजवंश प्रमुख हैं। इसी बंश में शिवाजी प्रतापी राजा हुए।
चावड़ा क्षत्रिय
अग्निवंशी हैं। गोत्र कश्यप हैं। प्रमारवंश की 16वीं शाखा है। चावड़ा प्राचीन राजवंश है। ये दक्षिण भारत तथा काठियाबाड़ में पाए जाते हैं। इस वंश का विवाह संबंध स्थान भेद से समान क्षत्रियों के साथ होता है।
मालव क्षत्रिय
अग्निवंशी हैं। इनका भरद्वाज गोत्र हैं। मालवा प्रान्त से भारत के विभिन्न स्थानों में जा बसे हैं, अतः मालविया या मालब नाम से ख्याति पायी। उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में तथा बिहार के गया जिले में पाए जाते हैं।
रायजादा क्षत्रिय
अग्निवंशी चौहानों की प्रशाखा में हैं। गोत्र चौहानों की भांति है। ये लोग अपनी लड़की भदौरियों, कछवाह और तोमरों को देते हैं तथा श्रीनेत, वैश विश्वेन, सोमवंशी आदि को कन्या देते हैं। यह उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में पाए जाते हैं।
महरौड़ वा मड़वर क्षत्रिय
चौहानों की प्रशाखा है। गोत्र वत्स है। चौहान वंश में गोगा नाम के एक प्रसिद्ध वीर का जन्म हुआ था। उसकी राजधानी मैरीवा मिहिर नगर थी। यवन आक्रमण के समय अपनी राजधानी की रक्षा हेतु वह अपनी 45 पुत्रों एवं 60 भ्राता पुत्रों सहित युद्ध में मारे गए। उनके वंशजों ने अपने को महरौड़ व मड़वर कहना शुरू किया। इस वंश के क्षत्रिय गण उत्तर प्रदेश के बनारस, गाजीपुर, उन्नाव में पाए जाते हैं और बिहार के शाहाबाद, पटना, मुजफ्फरपुर, बैशाली जिलों में पाए जाते हैं।
उज्जैनीय क्षत्रिय
ये क्षत्रिय अग्नि वंशी प्रमार की शाखा हैं। गोत्र शौनक है। ये राजा विक्रमादित्य व भोज की सन्तान हैं। ये लोग अवध और आगरा प्रान्त के पूर्वी जिलों में पाये जाते हैं। इस वंश की बहुत बड़ी रियासत डुमरांव बिहार प्रान्त के शाहाबाद जिले में है। वर्तमान डुमरांव के राजा कलमसिंह जी सांसद। इस वंश के क्षत्रिय बिहार के शाहाबाद जिले के जगदीशपुर, दलीपपुर, डुमरांव, मेठिला, बक्सर, केसठ, चौगाई आदि में तथा मुजफ्फरपुर, पटना, गया, मुगेर और छपरा आदि जिलों में बसे पाये जाते हैं।
परमार क्षत्रिय
ये अग्निवंशी हैं, गोत्र गर्ग है। इस वंश की प्राचीन राजधानी चंद्रावती है। मालवा में प्रथम राजधानी धारा नगरी थी, जिसके पश्चात् उज्जैन को राजधानी बनाया। बिक्रमादित्य इस वंश का सबसे प्रतापी राजा हुआ, जिनके नाम पर विक्रम संवत प्रारम्भ हुआ, इसी वंश में सुप्रसिद्ध राजा मुंडा और भोज हुए इनकी 35 शाखायें हैं। इन क्षत्रियों के ठिकाने तथा राज्य हैं, नरसिंहगढ़, दान्ता राज्य, सूंथ धार, देवास, पंचकोट, नील गाँव ( उत्तर प्रदेश ) तथा यत्र-तत्र पाये जाते हैं।
परिहार क्षत्रिय
ये क्षत्रिय अग्निवंशी हैं। गोत्र काश्यप, गुरु वशिष्ठ, इनके ठिकाने हमीरपुर, गोरखपुर, नागौद, सोहरतगढ़, उरई ( जालौन ) आदि में हैं। इस वंश की 19 शाखायें हैं, भारत के विभिन्न भागों में अलग-अलग नाम से।
चौहान क्षत्रिय
ये क्षत्रिय अग्निवंशी हैं। गोत्र वत्स है। इस वंश की 24 शाखायें हैं -1. हाड़ा ,2 . खींची ,3 . भदौरिया ,4 . सौनगिन ,5 . देवड़ा ,6 . पाविया ( पावागढ़ के नाम से ) ,7 . संचोरा ,8 . गैलवाल ,9 . निर्वाण ,10 . मालानी ,11 . पूर्विया ,12 . सूरा ,13 . नादडेचा ,14 . चाचेरा ,15 . संकेचा ,16 . मुरेचा ,17 . बालेचा ,18 . तस्सेरा ,19 . रोसिया ,20 . चान्दू ,21 . भावर ,22 . वंकट ,23 . भोपले ,24 . धनारिया।
इनके वर्तमान ठिकाने हैं – छोटा उदयपुर, सोनपुर राज्य ( उड़ीसा ), सिरोही, राजस्थान, बरिया ( मध्य प्रदेश ), मैनपुरी, प्रतापनेर, राजौर, एटा, ओयल, ( लखीमपुर ) चक्रनगर, बारिया राज्य, बून्दी, कोटा, नौगाँव ( आगरा ), बलरामपुर बिहार में पाए जाते हैं।
सोलंकी क्षत्रिय
ये क्षत्रिय अग्निवंशी हैं। गोत्र भरद्वाज है। दक्षिण भारत में ये चालुक्य कहे जाते हैं। इनके ठिकाने अनहिल्लबाड़ा, बासंदा, लिमरी राज्य, रेवाकांत, रीवां, सोहाबल तथा उत्तर प्रदेश में यत्र-तत्र पाये जाते हैं।
राजपाली ( राजकुमार ) क्षत्रिय
ये अग्निवंशी हैं। गोत्र वत्स है। ये राजवंश वत्स गोत्रीय चौहान की शाखा है। राजौर से ये लोग खीरी, शाहाबाद, पटना, दियरा, सुल्तानपुर, छपरा, मुजफ्फरपुर आदि में है।
डोडा क्षत्रिय
यह अग्निवंशी परमार की शाखा है। गोत्र आदि परमारों की भांति है। प्राचीनकाल में बड़ौदा डोडा की राजधानी थी। मेरठ एवं हापुड़ के आस-पास इनकी राज्य था। इस समय पपिलोदा ( मालवा ), सरदारगढ़ मेवाड़ राज्य हैं। मुरादपुर, बाँदा, बुलन्द शहर, मेरठ, सागर ( मध्य प्रदेश ) आदि में पाये जाते हैं।
बघेल क्षत्रिय
गोत्र भरद्वाज हैं।यह सोलंकियों की शाखा हैं। बघेलों को सोलंकी वंश से राजा व्याघ्रदेव की सन्तान माना गया है। इन्हीं व्याघ्रदेव के नाम से सन् 615 ई. में बघेलखण्ड प्रसिद्ध हुआ। रीवां राज्य, सोहाबल, मदरवा, पांडू, पेथापुर, नयागढ़, रणपुरा, देवडर ( मध्य प्रदेश में ),तिर्वा ( फर्रुखाबाद ) बघेलों के प्रमुख ठिकाने हैं।
गहरवार क्षत्रिय
गोत्र कश्यप है। गहरवार राठौरों की शाखा है। महाराजा जयचन्द के भाई माणिकचन्द्र राज्य विजयपुर माड़ा की गहरवारी रियासत का आदि संस्थापक कहा गया है। ये क्षत्रिय इलाहाबाद, बनारस, मिर्जापुर, रामगढ़, श्रीनगर आदि में पाये जाते हैं। इनकी एक शाखा बुन्देला है। बिहार में बागही, करवासी और गोड़ीवां में गहरवार हैं।
बुन्देला क्षत्रिय
ये गहरवार क्षत्रियों की शाखा है। गहरवार हेमकरण ने अपना नाम बुन्देला रखा। राजा रुद्रप्रताप ने बुन्देलखण्ड की राजधानी गढ़कुण्डार से ओरछा स्थानान्तरित की बैशाख सुदी 13 संबत 1588 विक्रम को राजधानी ओरछा स्थापित की गई। इस वंश के राज्य चरखारी, अजयगढ़, बिजावर, पन्ना, ओरछा, दतिया, टीकमगढ़, सरीला, जिगनी आदि हैं।
लोहतमियां क्षत्रिय
सूर्यवंश की शाखा है। लव की सन्तान माने जाते हैं। ये बलिया, गाजीपुर, शाहाबाद जिलों में पाये जाते हैं।

36 राजवंशों में विभिन्न लेखकों एवं ऐतिहासिक विद्वानों का मत एक नहीं है। जैसे

क्षत्रिय वंश भास्कर पृष्ठ संख्या 214 लेखक डाo इन्द्रदेव नारायण सिंह के अनुसार –
1- सूर्यवंश , 2- चन्द्रवंश , 3- यदुवंश , 4- गहलौत , 5- तोमर , 6- परमार , 7- चौहान , 8- राठौर , 9- कछवाहा , 10- सोलंकी , 11- परिहार , 12- निकुम्भ , 13- हैहय , 14- चन्देल , 15- तक्षक , 16- निमिवंशी , 17- मौर्यवंशी , 18- गोरखा , 19- श्रीनेत , 20- द्रहयुवंशी , 21- भाठी , 22- जाड़ेजा , 23- बघेल , 24- चाबड़ा , 25- गहरवार , 26- डोडा , 27- गौड़ , 28- बैस , 29- विसैन , 30- गौतम , 31- सेंगर , 32- दीक्षित , 33- झाला , 34- गोहिल , 35- काबा , 36- लोहथम्भ।

कर्नल जेम्स टाड़ के मतानुसार 36 राजवंश –
1- इश्वाकु , 2- कछवाहा , 3- राठौर , 4- गहलौत , 5- काथी , 6- गोहिल , 7- गौड़ , 8- चालुक्य , 9- चावड़ा , 10- चौहान , 11- जाट , 12- जेत्वा , 13- जोहिया , 14- झाला , 15- तंवर , 16- दाबी , 17- दाहिमा , 18- दाहिया , 19- दौदा , 20- गहरवाल , 21- नागवंशी , 22- निकुम्भ , 23- प्रमार , 24- परिहार , 25- बड़गुजर , 26- बल्ल , 27- बैस , 28- मोहिल , 29- यदु , 30- राजपाली , 31- सरविया , 32- सिकरवार , 33- सिलार , 34- सेंगर , 35- सोमवंशी , 36- हूण।

श्री चन्द्रवरदायी के अनुसार 36 राजवंश –
1- सूर्यवंश , 2- सोमवंशी , 3- राठौर , 4- अनंग , 5- अर्भाट , 6- कक्कुत्स्थ , 7- कवि , 8- कमाय , 9- कलिचूरक , 10- कोटपाल , 11- गोहिल , 12- गोहिल पुत्र , 13- गौड़ , 14- चावोत्कर , 15- चालुक्य , 16- चौहान , 17- छिन्दक , 18- दांक , 19- दधिकर , 20-देवला , 21- दोयमत , 22- धन्यपालक , 23- निकुम्भ , 24- पड़िहार , 25- परमार , 26- पोतक , 27- मकवाना , 28- यदु , 29- राज्यपालक , 30- सदावर , 31- सिकरवार , 32- सिन्धु , 33- सिलारु , 34- हरितट , 35- हूण , 36- कारद्वपाल।

मतिराम कृति वंशावली –
1- सूर्यवंश , 2- पैलवार , 3- राठौर , 4- लोहथम्भ , 5- रघुवंशी , 6- कछवाहा , 7- सिरमौर , 8- गोहलौत , 9- बघेल , 10- कावा , 11- सिरनेत , 12- निकुम्भ , 13- कौशिक , 14- चंदेल , 15- यदुवंश , 16- भाटी , 17-तोमर , 18- बनाफर , 19- काकन , 20- बंशं , 21- गहरबार , 22- करमबार , 23- रैकवार , 24- चन्द्रवंश , 25- सिकरवार , 26- गौड़ , 27- दीक्षित , 28- बड़बलिया , 29-विसेन , 30-
, 36- सोलंकी।

सौरभ सिंह सोमवंशी


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