लॉक डाउन २.० का दूसरा दिन, हमें क्या? में उलझा भारतीय जनमानस

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डॉक्टर भुवनेश्वर गर्ग

यह समय घातप्रतिघात या देश, वर्ण, कर्म विरोध का कतई नहीं है, यह समय है सहयोग, निष्ठा और एकजुट होने का, क्योंकि आपके कर्म ही आपको या तो जयचंद साबित कर, हर कालखंड में लज्जित करवाएंगे या लोग आपको पप्पू कह, आपकी खिल्ली उड़ाएंगे। न भरोसा हो तो गुरु द्रोणाचार्य का दृष्टांत भी सुन लीजिये, गुरु द्रोणाचार्य ने पक्षपात किया, एकलव्य का अंगूठा कटवाया, बाद में चुल्लू भर दूध के लिये तरसे, अपमानित किये गये और आजतक भी उनके अच्छे कर्मों पर उनका यह पक्षपात भारी पड़ जाता है, उस युग में एक ही अपराध के लिये ब्राह्मण को किसी शूद्र की अपेक्षा सोलह गुना अधिक दंड भी मिलता था, क्योंकि समझा जाता था कि ब्राह्मण ज्ञानी है और उसका जानकर किया गया अपराध, अज्ञानता में किये गये अपराध से अधिक दंडनीय है, इस लिहाज से तो महाभारत काल ब्राह्मण विरोधी हो गया और “मनुस्मृति” भी ब्राह्मण विरोधी ही हुई, फिर? उसी युग में एक मछुआरन की संतान “वेदव्यास” ने “महाभारत” लिखी थी, और “त्रेतायुग” में “वाल्मीकि” ने “रामायण”, अगर बात छूत अछूत की होती और हिन्दुकुश में भेदभाव होता तो, निषाद, प्रभु श्री राम के साथ गुरुकुल में कैसे इकठ्ठे रहते, साथ पढ़ते, खाते पीते ? शबरी कौन थीं और उनके झूठे बैर प्रभु श्री राम कैसे खाते ? क्षत्रिय भीम की पत्नी हिडिम्बा की जाति क्या थी, सोचिये और पता है आपको, कि उसी हिडिम्बा के पोते “खाटू श्याम जी” को साक्षात् श्रीकृष्ण भगवान् की तरह आज सारे विश्व में जाना और पूजा जाता है ?

न्याय-अन्याय हर युग में होते हैं और होते रहेंगे, अहंकार भी टकरायेंगे, कभी इनका तो कभी उनका, यह घटनायें दुर्भाग्यपूर्ण होती हैं पर उससे भी अधिक दुर्भाग्यपूर्ण होता है इनको जातिगत रंग देकर उस पर विभाजन की राजनीति करके राष्ट्र को कमजोर करना, सोचिये, सवर्ण क्षत्रिय नंदवंश का समूल नाश कर चंद्रगुप्त नाम के शूद्र पुत्र को चक्रवर्ती सम्राट् बनाने वाला चाणक्य, कौटिल्य नाम का ब्राह्मण ही था, भीमराव को भी अगर किसी ब्राह्मण ने नही पढ़ाया होता और अपना नाम अम्बेडकर नहीं दिया होता तो?

यह दलित चिंतन नहीं है यह केवल स्वार्थी, राष्ट्रद्रोहियों द्वारा थोपा हुआ दोगला चिंतन है जो बँटवारे की राजनीति करते हैं और आज हम सब बार बार इसे हर कहीं होते देख रहे है लेकिन आँखे बंद कर लेते हैं। जब भी कोई घटना होती है तो गलत को गलत कहने की बजाय, उसे चुप करा देते हैं, जो सच कहने का साहस दिखाता है और आज भी तो हम यही कर रहे हैं, जब सोशल डिस्टेंसिंग और “लॉकडाउन” को तोड़कर देशविरोधी ताकतें अपना मुंह उठा रही हैं, तब हम चुप बैठे हैं। वो हमारे बहादुर डॉक्टरों, पुलिस, सेवाकर्मियों, नर्सों पर थूक रहे हैं, पत्थर फेंक रहे हैं, अश्लील व्यवहार कर रहे हैं और खुलेआम आपके लिए बीमारी को न्योता दे रहे हैं लेकिन आप विरोध करने की जगह स्लीपिंग स्लेव बने रहना चाहते हैं, क्यों, सोचिये ?

जब आपकी एकजुटता पर आपके सेनापति को संदेह होता है, तभी तो वो कड़े निर्णय नहीं ले पाता, पर आप ही तो हैं, जो वोट देने के समय मुफ्तखोरी के लिए, दो सो रुपये की बिजली के लिए, शराब के एक पव्वे के लिए बिक जाते हैं, बँट जाते हैं, और जिन्हे सबसे ज्यादा खतरा है, अमीर और कर्मठ टेक्सपेयर वर्ग, तो वो या तो वोट देने नहीं जाता या फिर परिवार सहित छुट्टी मनाने चल देता है। जब किसी पार्टी, नेता को आपके वोटों से कोई फर्क नहीं पड़ता तो फिर वो क्यों आपके लिए सोचेगा? आप तो उसके लिए सिर्फ एक धनमशीन हैं, और इसीलिए जब अराजक झुण्ड आपको सताता है या केजरीवाल जैसा अराजक खुलेआम मुस्लिम तुष्टिकरण करता दिखता है, और इसीलिए जब विधर्मी काश्मीर जैसा हाहाकार मचाते हैं, तो फिर आप उन्हें छोड़कर, जिन्होंने सारे षड्यंत्र रचे, उन्हें कोसने लगते हैं, जो देश के लिए दिनरात खप रहे हैं, पुराने रोग मिटाने, सर्जरी करने की रिस्क लेने से भी नहीं डर रहे।

जागिये, जगाइए, और इससे पहले की हर कहीं सीरिया काश्मीर घटे, एकजुट हो जाइये । खैर, फिलहाल तो हम यही सोचें, कि कैसे सोशल डिस्टेंसिंग और “लॉकडाउन” का पूरी गंभीरता से पालन करें, ताकि यह बीमारी फ़ैल चुके इलाकों में ही सिमट कर रह जाए और जिंदगी पटरी पर लौट सके। चलिए, मिलते हैं कल, तब तक जय रामजी की।


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