उदासी जलाकर उत्साहित होने का पर्व होली

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देवदत्त दुबे ।
पिछले 2 वर्षों से पूरी दुनिया कोरोना महामारी की चपेट में थी और एक तरह से भय और उदासी ने अपनी गिरफ्त में ले लिया था लेकिन अब होली जैसा त्यौहार आ गया है जो हमें प्रेरणा देता है अवसाद उदासी राग द्वेष घृणा और नशे को जलाकर उत्साहित जीवन जीने की ओर चलें
दरअसल होली केवल कंडे और लकड़ियों के ढेर को जलाकर रंग गुलाल उड़ाने भर का त्यौहार नहीं है यह जीवन को उत्साहित करने का त्यौहार है यह सब उन चीजों को जलाने का त्यौहार है जिनके कारण स्वयं परिवार और समाज तनाव में रहता है जिसके कारण हमें पूर्णता नहीं मिलती यदि इस त्योहार पर जलाना ही है तो गुस्सा संकीर्णता घृणा भय चिंता और नशा सहित ऐसी चीजों को जला देना चाहिए जिसके कारण जीवन छोटा बनता है जिसके कारण खुद भी तनाव में रहते हैं और अपने लोगों को भी तनाव देते हैं होली पर जितनी भी गैर जरूरी चीजें हैं सब को जला देना चाहिए जिससे कि अच्छी चीजों के लिए जगह बन सके मन में भी जो नकारात्मक विचार आते हैं पुरानी दुर्घटनाएं याद करके दुखी होते रहते हैं उन सबको भी जला देना चाहिए जिससे हम अच्छी चीजों को याद कर सकें उनके लिए जगह दे सकें छोटे-छोटे प्रयासों से हम पूर्णता को पा सकते हैं होली फागुन माह की पूर्णिमा को आती है जो हमें पूर्णता की ओर जाने की प्रेरणा देती है लेकिन हम अपने अहम अपनी बुरी आदतों के कारण अपूर्ण जीवन जीने को मजबूर होते हैं और हमारे कारण कितने लोगों का आनंद और उत्साह भी जीवन से चला जाता है यह भी नहीं समझ पाते खासकर जो लोग नशे की गिरफ्त में है उनके कारण न केवल स्वयं बल्कि उनका पूरा परिवार तनाव में रहता है और हम यह समझ ही नहीं पाते की होली जीवन में उल्लास भरने के लिए है अंदर से उत्साहित करने के लिए है हम केवल वराह रूप में एक दूसरे को रंग गुलाल लगाकर इस त्यौहार की इतिश्री कर लेते हैं जिस तरह रंग गुलाल लगाने के बाद सभी के चेहरे एक जैसे लगने लगते हैं जैसे एकता के सूत्र में बंध गए हो
ऐसे ही हमें अंतर्मन से भी एकता के सूत्र में बंधना है अंतर्मन में जितनी भी पुरानी नकारात्मक बातें हैं उनको जला देना है प्रेम के साथ निडरता से किसी पर भी रंग डाल सकते हैं यह त्योहार परमात्मा के अपार आनंद की अभिव्यक्ति है यह त्यौहार उन लोगों के लिए भी प्रेरणा है जो पद और पैसे के अहंकार में अपनों को भूल जाते हैं इसी दिन हिरण्यकश्यप के अहंकार का अंत हुआ था और आस्थावान पहलाद का अभुयोदय जो यह बताता है की जीवन की किसी भी क्षेत्र में यदि शिखर पर पहुंचना है तो प्रेम विश्वास अर्पण समर्पण की आवश्यकता रहेगी इनके साथ ही ईश्वर कृपा का आह्वान हमेशा करना होगा
कुल मिलाकर जब मन में उठने वाली नकारात्मक इच्छाओं को जला देंगे तब जीवन अंदर बाहर से उत्सव से सराबोर होने लगेगा और जब जब हम इन बुरी इच्छाओं के के गुलाम रहेंगे तब तब हम तनाव और अवसाद से धीरे रहेंगे जबकि आत्मा का स्वभाव उत्सव है और उत्सव हमें जीवन में सत्य प्रेम करुणा से मिलेगा यह उत्सव केवल तन और मन से नहीं आत्मा और परमात्मा की एकाकार होने से भी आएगा वैसे ही जैसे प्रकृति में अनेक रंग है उसी तरह हमारी भावनाएं भी भिन्न-भिन्न रंगों से जुड़ी हुई है हमारी इच्छाएं अग्नि की तरह हैं जो हमें जला भी सकते हैं किंतु यदि हमारा जीवन होली की तरह है तो फिर हर रंग स्पष्ट नजर आएगा और जीवन चहूओर दिव्यता को प्राप्त करेगा


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