अफगानिस्तान में एक हफ्ते का युद्ध विराम आज से शुरू

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काबुल, 22 फरवरी (हि.स.)। तालिबान, अमेरिका और अफगान सुरक्षा बलों के बीच एक हफ्ते का “युद्ध विराम समझौता” शनिवार से शुरू हो गया है। ये आंशिक युद्ध विराम समझौता अगर सफल रहता है, तो 18 वर्षों से युद्ध की त्रासदी झेल रहे  अफगानिस्तान के लिए ऐतिहासिक कदम होगा। इससे एक ऐसे समझौते का रास्ता मिलेगा, जिससे युद्ध पूरी तरह खत्म हो सकता है।

अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने इस बारे में ट्वीट कर बताया कि दशकों के संघर्ष के बाद हम अफगानिस्तान में हिंसा में कमी पर तालिबान के साथ एक समझौते पर पहुंचे हैं। यह दीर्घकालिक शांति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। मैं सभी अफगानों से इसे सफल बनाने का आह्वान करता हूं।

अफगानिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रवक्ता जावेद फैसल ने इस बारे में कहा कि युद्ध विराम समझौता 22 फरवरी से शुरू होगा और एक सप्ताह तक चलेगा। पाकिस्तान में एक तालिबान स्रोत ने भी इसकी पुष्टि की है कि आंशिक युद्ध विराम शनिवार को शुरू हो जाएगा। तालिबान के गढ़ के रूप में मशहूर अफगानिस्तान के दक्षिणी प्रांत कंधार में एक तालिबानी विद्रोही नेता ने भी कहा कि उसे शांति कायम रखने के आदेश मिले हैं।

अमेरिका एक शांति समझौता करने के लिए तालिबान के साथ पिछले एक साल से अधिक समय से बातचीत कर रहा है। वह तालिबान के सुरक्षा गारंटी और दूसरी अन्य प्रतिबद्धताओं को मानने के बदले में अपने हजारों सैनिकों को वहां से बाहर निकालेगा। अगर तालिबान की हिंसा में कमी आई और आगे उसके कार्य से अमेरिका को भरोसा हुआ तो अफगानिस्तान मौजूद लगभग 12,000-13,000 सैनिकों में से आधे को अमेरिका वापस बुलाएगा।

अफगान अधिकारियों ने उम्मीद जताई है कि हिंसा में कमी को देखने के बाद 29 फरवरी को दोहा में अमेरिका-तालिबान समझौते को अंतिम रूप दिया जा सकता है। बीते गुरुवार को तालिबान के उप नेता सिराजुद्दीन हक्कानी ने कहा कि वे वाशिंगटन के साथ समझौते पर पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने न्यूयॉर्क टाइम्स में लिखे एक लेख में ये दावा किया था। सिराजुद्दीन हक्कानी, हक्कानी नेटवर्क के मुखिया भी हैं। ये अफगानिस्तान में नाटो बलों से लड़ने वाले सबसे खतरनाक गुटों में से एक है। नाटो महासचिव जेन्स स्टोल्टेनबर्ग ने इस कदम का स्वागत करते हुए कहा कि यह हिंसा को कम करने और तालिबान पर भरोसा जगाकर शांति की दिशा में बढ़ने का एक महत्वपूर्ण इम्तिहान है।

उल्लेखनीय है कि अफगानिस्तान में तालिबान विद्रोह से लड़ने के लिए अमेरिका ने 2001 से अरबों डॉलर खर्च किए हैं। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने 2016 के राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान अफगानिस्तान में अमेरिकी युद्ध को समाप्त करने का वादा किया था। ट्रंप अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के लिए जोर दे रहे हैं।

 हालांकि अमेरिका और तालिबान के बीच शांति वार्ता खतरे से भरी है। विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि अफगानिस्तान में खून-खराबे को रोकने की कोशिश जटिल है। ये शांति वार्ता किसी भी समय टूट सकती है। ये भी संभव हैं कि दोनों पक्ष अपनी ताकत को फिर से बढ़ाने और एक रणनीतिक लाभ को हासिल करने के लिए एक युद्ध विराम समझौते का दिखावा कर रहे हैं।

हिन्दुस्थान समाचार


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