शाहीन बाग में जो हो रहा है वही राजनीति है?

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देवेन्द्र सिंह

लेख

हमें धन्यवाद देना चाहिए उन तमाम बागों को, जिनमें धरना प्रदर्शन करते हुए पिछले तमाम दिनों से स्त्री और पुरुष बैठे हैं। बच्चे और बच्चियां बैठी है। इस तमाम भीड़ का लक्ष्य और उद्देश्य क्या है? उद्देश्य है कि नागरिकता संशोधन कानून वापस हो। साधारण अर्थों में इसे ऐसे समझा जा सकता है कि जिन हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसी जनों को पाकिस्तानी, बांग्लादेशी, अफगानिस्तानी मुसलमानों ने पीटा है, मारा है, उत्पीड़ित किया है, उनका जीवन दुश्वार कर दिया है, ऐसे तमाम हिंदू,सिख, बौद्ध और जैन पारसी आदि धार्मिक उपासको को संरक्षित करना,भारत के मुसलमानों को पसंद नहीं आ रहा। यह क्यों पसंद नहीं आ रहा है? पसंद ना आने के पीछे कारण क्या है? कभी सोचा है आपने?


हम हिंदू सिख बौद्ध और जैन पारसी आदि इन सभी बातों को एक शब्द राजनीति कह कर टाल देते हैं कहते हैं यह सब “राजनीति” की वजह से हो रहा है।

जब कोई ऐसा करता है तब मेरे मन में प्रश्न उत्पन्न हो जाता है। क्या किसी के जीवन के अधिकार को छीन लेना राजनीति है? किसी को बद से बदतर जीवन जीने के लिए मजबूर कर देना क्या राजनीति है? किसी परिवार को उसके महिलाओं और लड़कियों को छोड़कर चले जाने को कहना क्या राजनीति है?


खुलेआम नरसंहार करना क्या राजनीति है? यह निरंतर और बार बार होते रहना क्या राजनीति है?


यह सभी बाग और इस में बैठे लोग सिर्फ इसलिए बैठे हैं कि इनकी मानसिकता और सोच एक सीमा में बंधी है। गैर मुस्लिमों को प्रताड़ित करना और उन्हें उनकी गलतियों की सजा देना, यह अपना कर्तव्य समझते हैं। गैर मुस्लिम की गलती सिर्फ इतनी है कि वह मुस्लिम नहीं है। इसीलिए तो पाकिस्तान अफगानिस्तान और बांग्लादेश में प्रताड़ित हिंदुओं, सीखो, बौद्धों, पारसियों, जैनियों, आदि को जब भारत सरकार ने संरक्षण देकर भारतीय नागरिकता प्रदान करने को कहा तो इन्हें अत्यधिक मिर्ची लग गई यह तिलमिला उठे और सरकार के खिलाफ, भारत के खिलाफ नारे लगाने लगे, ना जाने किस किस प्रकार की बातें भारतीय सेना भारतीय सुरक्षा भारतीय संप्रभुता के संबंध में कहा गया इन बागों में।

इन बागों में बैठे लोगों के कृत्यों को सभी हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, आदि लोगों को देखना चाहिए समझना चाहिए और सिर्फ राजनीति कहकर टाल देने की प्रवृत्ति से बचना चाहिए।
जिहाद और काफ़िर का सही सही वास्तविक अर्थ समझना चाहिए।

लेखक उच्च न्यायालय इलाहाबाद में अधिवक्ता है

( ऊपर लिखा गया लेख, लेखक का निजी मत है । यह पत्रिका के विचार से भिन्न है । )


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