मूल संविधान में कहीं नहीं था प्रमोशन में आरक्षण

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वीरेंद्र सिंह

संबिधान संकलन के समय संबिधान में नौकरियों में प्रमोशन के आरक्षण का प्रविधान नही था अर्थात मूल संबिधान में प्रमोशन में आरक्षण की नामोनिशान ही नही था।ये वोट के लालची राजनेता अपने वोट की राजनीति के चक्कर में नौकरियों में प्रमोशन का आरक्षण लाये। वो भी संबिधान में अध्यादेश के माध्यम से। हमारे समाज के सजग प्रहरी इन्द्रा साहनी मामले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी कि यह मूल अधिकार का हनन है , देश एक संबिधान एक, नागरिकता एक, मूल अधिकार एक तो समाज में दोयम दर्जे का वर्ताव नहीं हो सकता। इन्द्रा साहनी के मामले में मा० सर्वोच्च न्यायालय की 09 सदस्यीय संविधान पीठ ने 16 नवम्बर 1992 में पदोन्नति में आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया था।मगर विशेष प्रजाति के ये दोगले नेता जब सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को नही मानना चाहे तो इस निर्णय को निष्प्रभावी करने हेतु 17 जून 1995 को 77वां संविधान संशोधन का बिल लेकर आये और क्या कांग्रेस क्या भाजपा और सभी क्षेत्रीय दलों ने समर्थन करके पदोन्नति में आरक्षण का प्राविधान कर दिया थे। इसी प्रकार जून 2000मे वोट के भूखे राजनीतिक दल 82वांसंविधान संशोधन कर एस०सी०/एस०टी० के लिए प्रमोशन के मापदंड व नियमों को सरल व शिथिल करने का बिल पास करा लिये। ये राजनीतिक दल यही नही रुके बल्कि 4 जनवरी2002 को 85वां संबिधान संशोधन कर संसद से परिणामी ज्येष्ठता देने के लिए कानून बनवा लियें। इन सभी संशोधनों को बंगलौर निवासी एम० नागराज जी ने मा०सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किये। अक्टूबर2006 में देश की सर्वोच्च न्यायालय की 5सदस्यीय संविधान पीठ ने निर्णय देते हुए कहा कि प्रमोशन में आरक्षण देने से पहले प्रत्येक मामले मे क्वान्टीफिएबल डाटा देकर यह साबित करना आवश्यक होगा कि जिस किसी व्यक्ति को प्रोन्नति में आरक्षण दिया जा रहा, क्या वह अभी भी पिछड़ा है?नौकरियों / सेवाओं में उसकी जाति का समुचित व पर्याप्त प्रतिनिधित्व नही है? तथा ऐसे कनिष्ठ कार्मिक का प्रोन्नति करने से संबिधान की मूल धारा 335( समानता का मौलिक अधिकार) में निहित प्रशासनिक दक्षता व कार्यप्रणाली की शर्त पर विपरीत प्रभाव तो नही पड़ रहा है? एम० नागराज के इस मामले मे मा० सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रतिपादित उपरोक्त सभी बाध्यकारी मानक व शर्तों के परिणाम स्वरूप7 दिसंबर 2010 को राजस्थान के मामले में व 27अप्रैल2012 को उत्तर प्रदेश के मामले में, और 9 फरवरी2017 को कर्नाटक के मामले में मा० सुप्रीम कोर्ट की विभिन्न अलग अलग बेंचों ने प्रमोशन मे आरक्षण देने के इन राज्यों के सरकारों के आदेशों को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया था। विदित हो कि उपरोक्त मामले में प्रथम निर्णय राजस्थान सरकार के खिलाफ आया इसके बाद उत्तर प्रदेश व कर्नाटक सरकार के खिलाफ मा० सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया था। ये निर्णय मा० सर्वोच्च न्यायालय की अलग अलग बेंचों ने दी थी। चूंकि सर्वोच्च न्यायालय में एम० नागराज के मामले संबिधान पीठ का पहले ही निर्णय आ चुका था अतः उपरोक्त तीनों ही निर्णयों पर एम० नागराज के प्रकरण का निर्णय प्रभावकारी रहा। पुनः एम०नागराज के निर्णय के खिलाफ 2012 मे मनमोहन सिंह की सरकार 117वां बिल लेकर आई जिसे भाजपा ने समर्थन किया। बिल राज्य सभा से पास है पर लोक सभा मे लंबित था। इधर बीच मोदी सरकार दलितों को लुभाने के लिए कोर्ट में पैरवी हेतु ढुलमुलपन रवैया अपनायी एंव सरकारी वकील दलितों के पक्ष मे अपनी दलिले दी। 5जून 2018के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश में कही भी यह नहीं कहा गया है कि सरकारें प्रमोशन में आरक्षण करें बल्कि सरकारों को करने व न करने के लिए स्वतंत्र कर दिया है पर शर्त एम० नागराज मामले मे कोर्ट द्वारा दिये गये शर्तो एंव फाइन्डिग को ध्यान मे रखकर। यह भी प्रमोशन संबिधान पीठ के अंतिम निर्णय आने तक के अंतर्गत रहेगा। अब मोदीजी बिना संसद मे चर्चा कराये कैबिनेट से पास करवा कर राष्ट्रपति से हस्ताक्षर करवा कर दिनांक 15जून 2018 को प्रमोशन में आरक्षण लागू कर दी।इससे सीधा असर सवर्णों व बैकवर्डो पर पड़ा। चूंकि प्रमोशन मे आरक्षण का लाभ केवल व केवल दलितों को है। अब देश के सवर्णों व बैकवर्डो इस बात को ध्यान दे कि यह प्रमोशन में आरक्षण सरकार द्वारा लागू किया गया है कोर्ट का कोई आदेश नही है।अतः हम सभी 77%के आबादी के लोग सड़कों पर उतरकर एक साथ आन्दोलन करें तो सरकार झूकने को तैयार हो जायेगी । मै बीरेंद्र सिंह पत्रकार राष्ट्रीय संयोजक आरक्षण समीक्षा मोर्चा आप सभी सवर्णों व बैकवर्डो व अल्पसंख्यकों से अपील करता हूँ कि देश मे एक बड़ा आन्दोलन को जन्म दे ओर मोदी सरकार को झूकने के लिए मजबूर करें क्योंकि मा०सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा है कि चाहे तो राज्य सरकारें प्रमोशन में आरक्षण पर अपने स्तर से अध्यादेशों के माध्यम से कानून बना सकती हैं या चाहे तो नही।ये सरकारों के विवेक पर निर्भर है परन्तु वर्तमान स्थिति में मोदीजी दलित वोटों के लिए संसद के शीतकालीन अधिवेशन में अध्यादेश लाने की तैयारी में है।इस अध्यादेश को आ जाने व कानून बन जाने पर देश के सवर्णों, बैकवर्डो व अल्पसंख्यकों का काफी अहित हो जायेगा।इस क्रम में विरोध स्वरूप जनपद स्तर पर प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति को मेमोरेंडम दे।

सादर क्रांतिकारी आंदोलन की अपील के साथ आपका बीरेंद्र सिंह पत्रकार राष्ट्रीय संयोजक “आरक्षण समीक्षा मोर्चा”।।9415391278


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