महिलाओं के धार्मिक अधिकारों पर संविधान बेंच 10 को सुनाएगी फैसला

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नई दिल्ली, 06 फरवरी (हि.स.)। धार्मिक परम्परा और महिला अधिकार के संतुलन से जुड़े मामले में 9 जजों की संविधान बेंच ने इस बिन्दु पर फैसला सुरक्षित रखा कि क्या पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करने वाली बेंच क़ानूनी सवालों को बड़ी बेंच के पास भेज सकती है। कोर्ट इस पर 10 फरवरी को आदेश सुनायेगा।

दलीलों की शुरुआत करते हुए सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इस रेफरेंस का सबरीमाला पुनर्विचार याचिका से कोई मतलब नहीं है। सबरीमाला मामले की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करने वाली बेंच ने पुनर्विचार के मामले को बड़ी बेंच को रेफर नहीं किया बल्कि धार्मिक अधिकार से जुड़े कुछ समान सवालों पर विचार करने के लिए बड़ी बेंच को भेजा है। उन्होंने कहा कि तकनीकी आधार पर कोर्ट के अधिकार क्षेत्र पर असर नहीं पड़ना चाहिए। उन्होने नवतेज जोहार केस का हवाला दिया, जिसमें पांच सदस्यीय बेंच ने धारा 377 को निरस्त कर दिया। तुषार मेहता ने कहा कि कोर्ट इन मामलों पर विचार कर सकती है और इसमें समस्या नहीं है। अगर कोई कानूनी सवाल है तो कोर्ट बड़ी बेंच को विचार करने के लिए भेज सकती है। मौलिक अधिकारों का रक्षक होने के नाते कोर्ट का ये कर्तव्य है कि वो कानूनी सवालों पर विचार करे।

वरिष्ठ वकील फाली एस नरीमन ने कहा कि रेफरेंस पर विचार नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि पुनर्विचार याचिका में केवल मूल केस के फैसलों पर विचार किया जा सकता है। पुनर्विचार क्षेत्राधिकार में किसी कानूनी सवाल को बड़ी बेंच को नहीं भेजा जा सकता है। उन्होंने कहा कि सबरीमाला मामले पर पुनर्विचार करने वाली बेंच ने 14 नवम्बर, 2019 को केवल स्थगन आदेश दिया था, कोई रेफरेंस नहीं दिया था।

वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि ये स्पष्ट नहीं है कि 14 नवम्बर, 2019 को दिया गया आदेश पुनर्विचार याचिकाओं पर दिया गया था या दूसरी रिट याचिकाओं पर। उन्होंने नरीमन की दलीलों का समर्थन करते हुए कहा कि पुनर्विचार याचिका पर फैसला करते समय बड़ी बेंच को रेफर नहीं किया जा सकता है। वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि पुनर्विचार का प्लेटफॉर्म भविष्य में रेफरेंस के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

केरल सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील जयदीप गुप्ता ने रेफरेंस का विरोध किया। उन्होंने कहा कि पुनर्विचार याचिका की कार्यवाही और रेफरेंस की कार्यवाही दोनों बिल्कुल अलग-अलग और विरोधी हैं। वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने भी रेफरेंस का विरोध किया।

वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट की अंतर्निहित शक्तियों का हवाला देते हुए रेफरेंस का समर्थन किया। सिंघवी ने कहा कि सबरीमाला मामले पर फैसला एक जनहित याचिका पर आया। सिंघवी ने नवतेज जोहार के मामले का हवाला दिया तब इंदिरा जयसिंह ने कहा कि यह फैसला एक रिट याचिका के बाद आया।

वरिष्ठ वकील के परासरण ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट इस देश की सर्वोच्च कोर्ट है और वो असीमित क्षेत्राधिकार का उपयोग कर सकती है।

हिन्दुस्थान समाचार/संजय/सुनीत 


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