अमेरिका कही अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के साथ समझौता कर अस्थिरता तो नहीं ला रहा है ?
दोहा, 01 मार्च (हि.स.)। दोहा में अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौते के बाद अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ़ गनी के लिए नई सिरदर्दी पैदा हो गई है। अब सत्ता का बंटवारा कैसे हो? अमेरिका ने एक आतंकवादी तालिबान को अन्तर्राष्ट्रीय क़ानूनी जामा पहना दिया। समझौते में मूलत: तीन शर्तों को तालिबान ने भी स्वीकार कर लिया। एक, वह अल कायदा अथवा किसी अन्य आतंकवादी गुट को अफ़ग़ानिस्तान में पनपने नहीं देगा और किसी गुट को अमेरिका के लिए जोखिम नहीं बनने देगा। इसके बदले में अमेरिका और नाटो सेनाएं अगले 135 दिनों में क्रमबद्ध अफ़ग़ानिस्तान से लौट जाएंगी और फिर हस्तक्षेप नहीं करेगी। तीसरे, तालिबान ने अशरफ़ और उनके प्रतिद्वंद्वियों से 10 मार्च तक वार्ता के लिए सहमति जता दी है। वह इसे अमेरिका की पिट्ठू सरकार मान कर इनकार करता आ रहा था। अशरफ़ गनी ने प्रतिद्वंद्वी अब्दुल्ला अब्दुल्ला को तालिबान से बातचीत के लिए मना लिया, पर विकल्प सीमित हैं।
अशरफ़ के लिए चुनौती : अशरफ़ गनी सरकार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सम्मुख 29 मई से पूर्व तालिबान को प्रतिबंधित सूची से बाहर निकलवाने का प्रस्ताव देना है। तालिबान की पहली माँग है, अशरफ़ गनी सरकार उनके पाँच हज़ार तालिबानी रिहा करें। दूसरे, क्या अशरफ़ ‘शक्तिविहीन’ राष्ट्रपति बने रहना चाहेंगे? तालिबान के लिए भी कम चुनौती नहीं है। उसके अपने कमांडर मूँह बाएँ खड़े हैं। जेहाद और शरिया की नीति-राजनीति में तालिबान में आज वहाँ उनके अपनों में हक्कानी नेटवर्क, अल कायेदा और ‘तहरीक ए पाकिस्तान तालिबान’ ‘लश्कर ए झाँगवी’ के सम्मुख धर्म संकट खड़ा हो गया है। उनके सामने जेहाद के नाम पर ईरान से आए इस्लामिक स्टेट एक और बड़ी चुनौती है। इंटेरनेशनल क्राइसिस ग्रुप के प्रेज़िडेंट और सी ई ओ राबर्ट माले ने टिप्पणी की है,’’ ऐसा कोई भी समझौता नहीं है, जो पूर्ण हो।” दोहा में शांति समझौते के समय भारत और पाकिस्तान के साथ सेंट्रल एशियाई देश मौजूद रहे।
ट्रम्प का वादा : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने समझौता कर नवंबर में होने वाले चुनाव से पूर्व क्रमबद्ध अपनी सेनाओं को घर बुलाने का वादा निभा दिया है। हालाँकि अमेरिका ने 18 वर्षों में क़रीब तीन हज़ार जवान खोए हैं, तो एक खरब डालर गँवाए हैं। अफ़ग़ानिस्तान को भी एक लाख सैनिक एवं 32 हज़ार नागरिकों की आहूति देनी पड़ी है। दोहा में हस्ताक्षर समारोह के अवसर पर मौजूद अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो ने कहा,’’ बेशक यह अवसर अपनी अपनी ख़ुशियाँ अभिव्यक्त करने का है, लेकिन यह बात स्मरण रखनी होगी कि उनकी ज़िम्मेदारियाँ भी हैं।’’ बता दें, तालिबान का अफ़ग़ानिस्तान के आधे हिस्से पर नियंत्रण है।
आतंकवाद और उग्रवाद: अमेरिका ने अफ़ग़ान तालिबान को क़ानूनी जामा क्या पहनाया कि पाकिस्तान की सरज़मीं पर वर्षों पनपे, जेहाद और शरिया का झंडा बुलंद करने वाले तहरीक ए पाकिस्तान तालिबान (टी टी पी), जैश ए मुहम्मद और लश्कर ए झाँगवी आदि जेहादी संगठनों में हर्षोंन्माद छाह गया है। टी टी पी यह वही जेहादी संगठन है, जिसे छह वर्ष पूर्व पाकिस्तानी मिलिट्री ने एक आर्मी स्कूल में 135 बच्चों को मौत के घाट उतारने पर मजबूरन सीमा पार, अफ़ग़ानिस्तान खदेड़ना पड़ा था। अफ़ग़ान और पाकिस्तान, दोनों संगठनों के आका मुल्ला उमर थे। क़यास लगाए जा रहे हैं, अफ़ग़ान तालिबान एक अन्य जेहादी ‘पाकिस्तान तालिबान’ को क्यों तरजीह देगा? लेकिन पाकिस्तान के मुल्ला और कट्टर इस्लामी ख़ुश हैं। यह पाकिस्तान ही था, जिसने दो साल पहले तालिबान सरकार को सब से पहले मान्यता दी थी। अफ़ग़ानिस्तान में जब तालिबानी आतंकवाद चरम सीमा पर था, उसी ने अमेरिकी प्रशासन की आँखों में धूल झौंकते हुए साझे आतंकवाद के नाम पर अरबों डालर डकारने में क़ोताही नहीं बरती। अफ़ग़ान तालिबानी को अपनी सरज़मीं पर शरण दी थी और हक्कानी नेटवर्क से सीधे सम्पर्क बनाए रखा था।
भारत और अफ़ग़ानिस्तान संबंध : अफ़ग़ानिस्तान में शांति समझौते के लिए सजग भारत ने अफगानिस्तान से प्राचीन संबंधो और मित्रता के आधार पर हमेशा दो बातों पर ज़ोर दिया है। एक, समझौते की शर्तों में अफ़ग़ानिस्तान की चुनी हुई सरकार को भरोसे में ले कर तालिबान से सीधी वार्ता हो। दूसरे, संधि-वार्ता के समय भारत सहित क्षेत्रीय प्रतिनिधियों की मौजूदगी में उनके हितों का भी संरक्षण हो? भारत के इस पक्ष पर डोनाल्ड ट्रम्प ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को आश्वस्त किया। माइक पोंपियो ने भी शांति समझौते से पूर्व भारत सहित अन्यान्य एशियाई ‘शक्तियों’ से सलाह मशवरा करने पर ज़ोर दिया। इस्लामिक आतंकवाद से तहस-नहस देश के नवनिर्माण में न केवल तीन अरब डालर की मदद से बुनियादी ढाँचा खड़ा किया, शिक्षा तथा स्वास्थ्य सेवाओं में भरपूर मदद की। चाहबहार बंदरगाह के सहारे व्यापार में सहायक बना।
हिन्दुस्थान समाचार/ ललित बंसल