अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा प्रयागराज
इलाहाबाद हाईकोर्ट जिसने पूरे उत्तर प्रदेश की न्यायिक व्यवस्था को सम्हाला हुआ है। पूरे प्रदेश भर से हज़ारों लोग न्यायिक प्रक्रिया के लिये इलाहाबाद आते हैं, शहर की अर्थव्यवस्था में जिसकी अहम भूमिका है।
प्रदेश सरकार के मुख्य विभागों को इलाहाबाद से स्थानांतरित किये जाने, जीएसटी, एडुकेशनल ट्रिब्यूनलों को लखनऊ में स्थापित करने और संवादहीनता के चलते औऱ तानाशाही पूर्ण फैसलों से
लगभग पिछले 15 दिनों से इलाहाबाद हाईकोर्ट में न्यायिक कार्य ठप पड़ा हुआ है।
वक़ील आंदोलनरत हैं….
रोज़ न्याय की आस में दूर दराज से इलाहाबाद आने वाले हज़ारों लोग न्यायालय के दरवाज़े से लौट जा रहे हैं,
न जाने कितने घर, कितनी ज़िन्दगी दाँव पर लगी हुई हैं??
एक तरफ़ न्यायिक व्यवस्था की प्रक्रिया भारी बोझ के चलते देश भर में बेहद धीमी है, दूसरी तरफ़ हड़ताल ।
लोग जाएं तो जायें कहाँ???
प्रदेशसरकार के कई नुमाइंदे कैबिनेट मंत्री, सांसद, विधायक शहर में मौजूद हैं पर न तो वो इतने ज़िम्मेदार है और न उनके अंदर इतनी काबिलियत की थोक के भाव मे होने के बावजूद इलाहाबाद की समस्यायों को सरकार के सामने रखकर उसे मनवा सकें….
कोई शास्त्री खानदान से है, तो कोई कथित राजमाता हैं, कोई विश्वास का नाम है, पर सबकी काबिलियत सिर्फ पुरखों की खड़ाऊ है…. जिस नाम पर चुनाव लड़े और जीते जा सकते हैं
पर इलाहाबाद जैसे गरिमामयी इतिहास लिए शहर का
नेतृत्व नहीं किया जा सकता।
नेतृत्व का बीड़ा स्वयं शहर की बार एसोसिएशन, इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ, प्रयागराज अस्तित्व बचाओ संघर्ष समिति, व्यापार मंडल आदि ने उठाया हुआ है।
सूबे के मुखिया के कानों में न्याय के लिये कराहते, अन्याय से लड़ते लोगों की आवाज़ नहीं पहुंच रही है….
सरकार की तरफ़ से हड़ताल को ख़त्म करने के कोई प्रयास न होकर आंदोलन को आंच देने का प्रयास किया जा रहा है।
क्योंकि आम जनमानस से इस लोकप्रिय सरकार को कुछ लेनादेना नहीं है।
सरकार से अपील है कि जल्द से जल्द इस हाईकोर्ट में चल रही हड़ताल का निराकरण कर ताकि लोगों को न्याय मिल सके और न्यायालय के दरवाजे से उन्हें निराश होकर वापस न जाना पड़े।
ऋचा सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय की छात्रसंघ अध्यक्ष रह चुकी हैं इसके अलावा वह समाजवादी पार्टी की इलाहाबाद शहर पश्चिमी की विधानसभा प्रत्याशी रह चुकी है वर्तमान में समाजवादी पार्टी की प्रदेश प्रवक्ता हैं।